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क्या हम धार्मिक हैं? – ओशो

एक बहुत पुराने नगर में एक बहुत पुराना चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था। कि उस चर्च में भीतर जाने से, उसमें प्रार्थना करने वाले भयभीत होते थे, तो चर्च के अस्थि-पंजर कांप जाते थे। हवाएं चलती थीं, तो लगता था, चर्च अब गिरा, अब गिरा! ऐसे चर्च में कौन प्रवेश करता, कौन प्रार्थना करता? धीरे-धीरे उपासक आने बंद हो गये।

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धर्म का अर्थ – ओशो

वास्तविक धर्म को ईश्वर और शैतान, स्वर्ग और नरक से कुछ लेना-देना नहीं है। धर्म के लिए अंग्रेजी में जो शब्द है ‘रिलीजन’ वह महत्त्वपूर्ण है। उसे समझो, उसका मतलब है खंडों को, हिस्सों को संयुक्त करना; ताकि खंड-खंड न रह जाएं वरन पूर्ण हो जाएं। ‘रिलीजन’ का मूल अर्थ है एक ऐसा संयोजन बिठाना कि अंश-अंश न रहे बल्कि पूर्ण हो जाए। जुड़ कर प्रत्येक अंश स्वयं में संपूर्ण हो जाता है। पृथक रहते हुए प्रत्येक भाग निष्प्राण है। संयुक्त होते ही, अभिन्न होते ही एक नई गुणवत्ता प्रकट होती है-पूर्णता की गुणवत्ता। और जीवन में उस गुणवत्ता को जन्माना ही धर्म का लक्ष्य है। ईश्वर या शैतान से धर्म का कोई संबंध नहीं है।

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