कबीर के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है। वहां पांडित्य का कोई अर्थ नहीं है। कबीर खुद भी पंडित नहीं हैं। कहा है कबीर ने ‘मसि कागद छूयौ नहीं, कलम नहीं गही हाथ।’ कागज-कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है। लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात- कहा है कबीर ने। देखा है, वही कहा है। जो चखा है, वही कहा है। उधार नहीं है।
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सभी जन्मों का सारभूत हैं कृष्ण – ओशो
कृष्ण का जन्म होता है अंधेरी रात में, अमावस में। सभी का जन्म अंधेरी रात में होता है और अमावस में होता है। असल में जगत की कोई भी चीज उजाले में नहीं जन्मती, सब कुछ का जन्म अंधेरे में ही होता है। एक बीज भी फूटता है तो जमीन के अंधेरे में जन्मता। फूल खिलते हैं प्रकाश में, जन्म अंधेरे में होता है। असल में जन्म की प्रक्रिया इतनी रहस्यपूर्ण है कि अंधेरे में ही हो सकती है।
विश्वास की जड़ें उखाड़ फेको – ओशो
इस देश का मन-मानस, प्रतिभा-पूरे अतीत के इतिहास में, विचार पर नहीं विश्वास पर आधारित रही है। और जो देश, जो मन, जो चेतना विश्वास पर आधारित होती है, वह अनिवार्यरूपेण अंधी हो जाती है, उसके पास सोच-विचार की क्षमता क्षीण हो जाती है।
राजनेताओं को मूल्य देना बंद करो – ओशो
तुमने पूछा है राजनैतिक लुच्चे-लफंगों से देश का छुटकारा कब होगा?
