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एकलव्य की गुरु- दक्षिणा

Guru-Dakshina: निषादराज हिरण्यधनु का पुत्र एकलव्य एक दिन हस्तिनापुर आया और उसने उस समय के धनुर्विद्या के सर्वश्रेष्ठ आचार्य, कौरव-पाण्डवों के शस्त्र-गुरु द्रोणाचार्यजी के चरणों में दूर से साष्टांग प्रणाम किया। आचार्य द्रोण ने जब उससे आने का कारण पूछा, तब उसने प्रार्थनापूर्वक कहा: ‘मैं आपके श्रीचरणों के समीप रहकर धनुर्विद्या की शिक्षा लेने आया […]

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