प्राचीन काल से ही हमारे यहां यह परंपरा रही है कि होली के अवसर पर छोटे-बड़े, गरीब-अमीर या छूत-अछूत में किसी प्रकार का कोई अन्तर नहीं किया जाता। इस दिन राजा और रैयत एक साथ मिलकर होली खेलते थे।
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उत्साह, उमंग और रंग…
फागुन के शुरू होते ही पूरा देश होली की मस्ती में डूब जाता है। लोकगीतों के सुरों पर झूमने का दौर शुरू हो जाता है। बेशक देश के अलग-अलग हिस्सों में होली अलग-अलग ढंग से बनाई जाती है पर उद्देश्य सबका एक ही है- रंगों और गीतों की मस्ती में सरोबार रहना।
