अनु जरा जल्दी जल्दी हाथ चला, मुझे देर हो रही है। हां मम्मी, बस काम खत्म होने वाला है , मैंने सब्जी काट दी और किचेन का सारा काम भी निबटा दिया है।
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अभिलाषा कि विश्वगुरु बनने का सपना हो सच
एक समय ऐसा भी था, जब इस भारतवर्ष में सारे विश्व से छात्र पढऩे आते थे, अध्यात्म की खोज में और हमारा देश विश्वगुरु कहलाता था।
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ग्रहलक्ष्मी की कहानियां : सुनंदा – एक नया सूरज
आजकल के माहौल को देख सुनंदा ने पिता ने उसे बारहवीं से आगे पढ़ने से रोक दिया। लेकिन सुनंदा ने तरह-तरह की दलीलें देकर किसी तरह पिता को मना ही लिया एक नई उम्मीद के साथ सही रास्ते पर चलने के लिए…
