प्रकृति और मनुष्य का संबंध आज से नहीं अपितु मानव जीवन की उत्पत्ति से ही रहा है। प्रकृति की गोद में बैठकर ही मानव सभ्यता फली-फूली। प्रकृति के बिना मनुष्य जीवन या उसके विकास की भी कल्पना नहीं की जा सकती। परन्तु फिर भी आज मनुष्य अपने स्वार्थ में अंधा होकर निरन्तर प्रकृति का दोहन कर अपने ही विनाश को निमंत्रण दे रहा है। कितनी शर्म की बात है कि आज हमें अपनी जीवनदायिनी इसी प्रकृति की रक्षा के लिए पर्यावरण दिवस मनाना पड़ रहा है, वायु, जल तथा अन्न प्रदान कर जो प्रकृति हमारे जीवन को पोषण देती आई है, आज उसी के संरक्षण के लिए हमें नियम व अधिनियम बनाने पड़ रहे हैं, इससे ज्यादा निंदनीय स्थिति किसी समाज की नहीं हो सकती।
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Posted inदादी माँ के नुस्खे
पर्यावरण और महिलाएं
स्वच्छ पर्यावरण हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है, लेकिन कहीं न कहीं महिलाएं पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका अधिक कुशलता से निभा सकती हैं।