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ग्रहलक्ष्मी की कहानियां : सुनंदा – एक नया सूरज

आजकल के माहौल को देख सुनंदा ने पिता ने उसे बारहवीं से आगे पढ़ने से रोक दिया। लेकिन सुनंदा ने तरह-तरह की दलीलें देकर किसी तरह पिता को मना ही लिया एक नई उम्मीद के साथ सही रास्ते पर चलने के लिए…

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वो हमें अंगूठा दिखा गई

अंगूठे का जिक्र आया तो कॉलेज के जमाने का जख्म हरा हो गया। जिस हसीना से मुहब्बत की पींगे बढ़ाई थी, वही एक दिन हमें अंगूठा दिखा गई। आज तक वह अंगूठा दर्द से सालता है।

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