एक अपराधी की जिंदगी जीने को मजबूर अजय के साथ समय हर कदम पर एक नई चुनौती रख रहा था। नाउम्मीदी से भरी इस जिंदगी में अंशु उसकी एकमात्र उम्मीद थी, लेकिन क्या आज ये उम्मीद भी कोई मोड़ लेने वाली थी?
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बोझिल पलकें, भाग-18
अजय के पिता अपने बंदीघर में उसकी आंखों के ठीक सामने बेबस से खड़े थे, इतने पास कि अजय उन्हें देख सकता है, लेकिन इतने दूर कि अजय उन्हें छू तक नहीं सकता है। एक बाप और बेटे की तड़प और प्यार से भरा था ये लम्हा। दोनों ही को एक-दूसरे की जिंदगी की फिक्र खाए जा रही थी, लेकिन मजबूर दोनों ही थे।
