जिसे तुम छू न सको, जो शब्द से तुम्हें सुनायी न देगा। अदृश्यम्ï जो कभी दृश्य बनकर तुम्हारी आंखों के सामने आने वाला नहीं है। ऐसा सूक्ष्म, अति सूक्ष्म परमात्मा की सत्ता के बोध के लिए, अनुभव के लिए संन्यास है।
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सवाल सिर्फ भावना का है – आनंदमूर्ति गुरु मां
ज्ञान किसको मिले? जो श्रद्घाभाव से शरणागत हो और अपना आप समर्पित करके कहे कि ‘गुरुदेव! ज्ञान दीजिए!’ ‘उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं’ तो ही गुरु उपदेश दे। ‘ज्ञानिन: तत्त्वदर्शिन: तो ही तत्त्व का दर्शन तुमको होता है।
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स्वयं को जानों – आनंदमूर्ति गुरु मां
भक्ति मार्ग सारा जीवोऽहं के भाव पर चलता है और तत्त्वज्ञान सारा शिवोऽहं के भाव पर चलता है, आत्मोऽहं के भाव पर चलता है। सीधे शिवोऽहं की समझ न आती हो, तो आत्मोऽहं के भाव पर चलता है।
