मन चाहता है आनंद की प्राप्ति और आनंद की तलाश में कहां-कहां भटकता है। हर आगंतुक इच्छा इसी आनंद की पूर्ति के लिए तो करता है लेकिन वो बात अलग है कि इच्छा तो पूरी हो जाती है, पर आनंद नहीं मिलता।
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सुख की अनुभूति – आनंदमूर्ति गुरु मां
वो जरा सा सेकेंड निर्विकल्पता का। वह जो भीतर निर्विकल्पता होती है सबसे प्यारी होती है क्योंकि उसमें हम अपने मन में अपना प्रतिबिंब नहीं देख रहे, मन ही को उड़ा दिया है, सीधे-सीधे अपने आपको देख रहे हैं।
