कोई भी ऐसी गतिविधि जिस कारण महिला या किसी भी व्यक्ति की कुशल मांगलता को ठेस पहुंचे, उसे एब्यूज कहा जाता है। भारतीय समाज में पुरुष खुद को महिलाओं से अधीन ताकतवर और श्रेष्ठ समझते है। इसलिए वह महिलाओं पर घरेलू हिंसा करने से डरते नहीं है। हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं होती बल्कि, मानसिक, जज्बाती रूप से और आर्थिक रूप से भी की जा सकती है। भारत में महिलाएं इस माहौल से बाहर निकलने में सामाजिक शर्मिंदगी से डरती हैं इसलिए वह एक्शन नहीं ले पाती। महिलाएं पैसों के लिए अपने पति पर निर्भर होती हैं यह भी हिंसा सहन करने का एक मुख्य कारण है।

हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज हैं यहां पुरुष महिलाओं को खुद से कमजोर समझते हैं। लेकिन आज समय बदल चुका है। अब महिलाएं न केवल पुरुषों के बराबर हैं बल्कि उन्हें बहुत आगे भी निकल चुकी हैं और यही बात पुरुषों से सहन नहीं होती है इसलिए अगर पुरुषों की पत्नी उनसे आगे है तो वह अपनी मेल ईगो को संतुष्ट करने के लिए घरेलू हिंसा जैसी चीजों का प्रयोग करते हैं।।

कुछ कारण जिनकी वजह से पुरुष महिलाओं को पीटते हैं

  • उनकी खुद की असुरक्षा की कहीं उनकी पत्नी उनसे आगे न निकल जाए।
  • समाज में उनका महिला से अधीन रौब और पहचान न बन पाना।
  • समाज ने उनकी सोच ऐसी बना दी हो कि वह खुद को श्रेष्ठ और महिला को हीन समझते है ।
  • समाज से इंटरेक्ट करने की क्षमता का कम होना।
  • जब पति पत्नी के बीच इगो आ जाए
  • अपनी पत्नी के प्रति पक्ष पाती होना और इसलिए उनके साथ ऐसा बर्ताव करना।
  • महिला के प्रति नियंत्रण करना, उन पर अपना मालिकाना अधिकार जमाने की सोच।

हम सभी को ऐसे व्यक्तियों के बारे में पता होगा जो अपनी पत्नियों पर घरेलू हिंसा करते हैं या हम जरूर ऐसे लोगों को अपने आसपास देखते होंगे। लेकिन क्या हम महिला को इस दलदल से बचाने के लिए कुछ करते हैं या क्या वह महिला कोई एक्शन लेती है? शायद इसका जवाब न होगा क्योंकि किसी को ठीक से पता नहीं होता है की इस स्थिति में क्या किया जाए। आइए जानते हैं इस स्थिति में आप क्या एक्शन ले सकते हैं?

महिलाएं आम तौर पर लीगल एक्शन लेने से इसलिए डरती हैं क्योंकि उन्हें समाज के लोग क्या कहेंगे इससे शर्मिंदगी महसूस होती है। इसलिए ही एक स्पेशल सेल बनाया गया है जिसमें महिला और उसके पति को एक काउंसलर प्रदान किया जाता है वह दोनों को समझता है कि वह कैसे इस शादी को बचा सकते हैं और सब कुछ ठीक कर सकते हैं। लेकिन अगर महिला फिर भी अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती हैं तो वह आगे एक्शन ले सकती है।

अगर महिला को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है तो वह प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास जा सकती है। हर राज्य सरकार हर जिले में प्रोटेक्शन ऑफिसर नियुक्त करती है। यह पीओ महिला को रहने सहने और मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध करवाने में मदद करता है। पीओ के कुछ निम्न काम होते हैं : 

  • अगर महिला केस करना चाहती है तो इस कार्य में पीओ उसकी मदद करता है।
  • महिला के अधिकारों  के बारे में उसे सही जानकारी प्रदान करवाता है।
  • महिला के लिए एक सेफ्टी प्लान बनाता है ताकि वह भविष्य में हिंसा से बच सके।
  • मेडिकल सुविधाएं प्रदान करता है।
  • अगर महिला मजिस्ट्रेट को एप्लीकेशन लिखना चाहती है तो उस काम में मदद करता है।
  • पीओ के जैसे ही सर्विस प्रोवाइडर भी नियुक्त किए जाते हैं जो ऐसी महिलाओं को रहने सहने, खाने पीने और मेडिकल सुविधाओं को उपलब्ध करवाते हैं।

भारत में कुछ ऐसे नियम भी हैं जो डायरेक्ट घरेलू हिंसा से निपटते हैं : 

भारत में महिलाओं की घरेलू हिंसा से सुरक्षा के लिए पहला एक्ट डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट 2005 में बना था। इसका प्रयोग करके महिलाएं खुद को अपने पति द्वारा की हिंसा से बचा सकती हैं, अगर पति घर से बाहर निकाल देता है तो उसकी कंप्लेंट कर सकती है और न केवल शादी शुदा महिलाएं बल्कि लिव इन रिलेशन में रहने वाली लड़कियां भी इस कानून का प्रयोग कर सकती हैं।

दूसरा कानून इंडियन पेनल एक्ट के सेक्शन 498 ए है। यह एक क्रिमिनल एक्ट है और अगर इसमें महिला का पति या उसके रिश्तेदार उसके साथ कोई ऐसी गतिविधि करते हैं जिससे उससे चोट पहुंचती है या वह सुसाइड करने की सोचती है तो उन्हें 3 साल तक की जेल हो सकती है।

घरेलू हिंसा समाज के लिए एक अभिशाप है और अगर आप या आपका कोई जानकार इसका सामना कर रही है तो उन्हें सही जानकारी प्रदान करके एक्शन लेने में मदद जरूर करें ताकि वह इस दलदल से खुद को बाहर निकाल सके।

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