यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि भवन निर्माण एवं गृहसज्जा में वास्तु-शास्त्र का पालन करने से विभिन्न दैवीय शक्तियां उन सब व्यक्तियों के सोच विचार एवं कार्यशैली में मदद करती हैं जो इन स्थलों से जुड़े होते हैं। मूल संस्कृत साहित्य में वास्तु का तात्पर्य है – घर में मनुष्य और देवताओं का आवास होना। यह पूरा ब्रह्मïण्ड पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और अंतरिक्ष नाम के पांच तत्त्वों से मिलकर बना है। वास्तु का मूल सिद्धांत है इन पांचों तत्त्वों में संतुलन स्थापित करके स्वास्थयवर्द्धक और सुखी जीवन का निर्माण करना। यही वास्तु चीन, जापान, सिंगापुर, हांगकांग, मलेशिया और अन्य अनेक एशियाई देशों में फेंग शुई के नाम से विख्यात है, जो भीतरी सजावट के द्वारा ऊर्जा के संतुलन और प्राकृतिक समन्वय में एकरूपता लाती है। यह चमत्कारी विज्ञान शनै: शनै: यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विश्व के अनेक भागों में फैलता जा रहा है।

हम सभी जानते हैं कि मनुष्य के जीवन को-भाग्य, कर्म और आसपास का वातावरण सभी प्रभावित करते हैं। फिर भी समरस वास्तु/फेंग शुई सुखद चीजों को और अधिक सुखदायक तथा कष्टकारी चीजों को अपेक्षाकृत कम कष्टमय बना देती है। वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार भवन निर्माण और उनकी सज्जा में रंगों का भी विशेष महत्त्व है। घर, परिसर में उचित रंगों के चुनाव तथा वास्तु/फेंग शुई के सरल उपायों द्वारा ब्रह्मïड के प्रत्येक अणु में व्याप्त असीम ऊर्जा द्वारा सभी रुके कार्य अल्प प्रयास से थोड़े ही समय में पूर्ण किये जा सकते हैं। सर्वव्यापी मान्यता के अनुसार प्रकृति के विभिन्न तत्त्वों का स्थानन अथवा वर्गीकरण आठ मुख्य दिशाओं में किया जाता है। (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम)

वास्तु/फेंग शुई और पिरामिड शक्ति के सभी दिशा-निर्देश तथ्यों पर आधारित हैं। उदाहरण के तौर पर वास्तु -रसोईघरों, चिमनियों, भट्टियों, बॉयलरों आदि को हवा की दिशाओं के आधार पर निश्चित कोणों में लगाने का सुझाव देता है, ताकि इनका धुआं अथवा उबलता पदार्थ आवासीय अथवा कार्य क्षेत्र में किसी को हानि न पहुंचाये और चुम्बकीय ऊर्जा तथा धूप को प्रभावित न करे। चूंकि सूर्य महत्त्वपूर्ण ब्रह्मïडीय अस्तित्व है और पृथ्वी माता के समान सभी का पालन-पोषण करती है और सभी प्रकार की सुख-सम्पत्तियों का खजाना हैं। 

पृथ्वी माता के समान हमारा पालन करती है और सूर्य पिता के समान हमारी रक्षा करता है, फेंग शुई भी इन्हीं सिद्धांतों का पालन करते हुए हमारी उन्नति में सहायक बनती है। जो शुरू में इनमें विश्वास नहीं करते थे, वे भी प्रकृति की सूक्ष्म ऊर्जा और इससे बने वातावरण से मनुष्य के प्रभावित होने की बात की प्रशंसा करते हुए इसको प्रमाणित करते हैं। इस प्रकार एक वास्तुकार और वास्तु-विशेषज्ञ को परस्पर समन्वय की आवश्यकता है, चूंकि वास्तुकार सौंदर्य से परिपूर्ण भव्य मकान तो बना सकता है, किन्तु उसमें रहने वालों के सुखी जीवन का आश्वासन नहीं दे सकता, जबकि वास्तु-विज्ञान वहां रहने वालों को शांति, संपन्नता और उन्नति का आश्वासन दे सकता है। 

प्राचीन विरासत और आधुनिक विज्ञान का सुखद योग दूर तक जाकर भवन-निर्माण विज्ञान को पुनर्जीवित करके मानव जीवन और समाज को अनंत ऊर्जा स्त्रोत से जोड़कर जीवन संतुष्ट बना सकता है। 

कुछ विद्वानों के अनुसार सौभाग्य व प्रसन्नता प्राप्ति हेतु रंग योजना गृहस्वामी की राशि के अनुसार होनी चाहिए। इस विचार के अनुसार निम्नलिखित रंगों का सुझाव दिया जा रहा है। 

राशि प्रस्तावित रंग

मेष

रक्त वर्ण की विभिन्न शेड्स

वृष

श्वेत वर्ण, दूधिया वर्ण 

मिथुन

हरित वर्ण (हरा)

कर्क

गुलाबी, मोतिया-सफेद

सिंह

हल्का-सफेद, मणि लाल, पाण्डू वर्ण

कन्या

विभिन्न हरे शेड्स

तुला

सीमेंट रंग, दूधिया सफेद (कृष्ण वर्ण)

वृश्चिक

मूंगिया लाल, गुलाबी

धनु

सुनहरा पीला (पिंगल वर्ण)

मकर

हल्का लाल, सीमेंट रंग (भूरा वर्ण)

कुंभ 

नीला या सीमेंट रंग (भूरा वर्ण)

मीन 

पीला, चमकीला सफेद

कुछ अन्य विद्वान भवन की दिशा के अनुसार विभिन्न रंग सुझाते हैं। वास्तव में यह उन ग्रहों के रंग हैं जो इन दिशाओं को नियंत्रित करते हैं।

दिशा

स्वामी

प्रस्तावित रंग

पूर्व

सूर्य 

ताम्र लाल वर्ण, चमकीला सफेद

पश्चिम

शनि 

नीला

उत्तर

बुध 

सभी प्रकार के हरे

दक्षिण

मंगल 

रक्तवर्ण

उत्तर-पूर्व

बृहस्पति

सुनहरा पीला

दक्षिण-पश्चिम

राहु 

श्यामल हरा (दूर्वा के सदृश)

दक्षिण-पूर्व

शुक्र

इन्द्रधनुषी

उत्तर-पश्चिम 

चन्द्रमा

मोतिया सफेद, हल्का पीला

 

● वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार की साज-सज्जा के लिए भी निर्देश दिए गए हैं। घर की बाहरी दीवारों पर सामान्यत: सफेद, हल्का पीला, क्रीम रंगों का प्रयोग करना चाहिए। यदि आप घर की दीवारों पर कलाकृतियां लगाते हैं उसके लिए आप सुसज्जित देवी श्री लक्ष्मी, गाय और बछड़ा, कमल के फूल, मोर का जोड़ा अथवा शंख, स्वास्तिक चिह्नï और युग्म मीन की कलाकृतियां ही होनी चाहिए। वहीं सुअर, चील, सांप, राक्षस, गिद्ध, उल्लू, हाथी, बाघ, शेर, भेड़िया, रीछ, गीदड़ आदि जंगली जानवरों की कलाकृतियों से बचना चाहिए। इसी के साथ रामायण और महाभारत के हिंसक दृश्य, तलवारों के प्रयोग वाले लड़ाई के दृश्य, इंद्रजाल, भयानक दैत्यों या राक्षसों की पत्थर, काष्ठ या धातु की मूर्तियों और रोते हुए और अश्रुपूरित चिल्लाते हुए लोगों के दृश्यों से संबंधित प्रदर्शन घरों में अच्छे नहीं होते।

● घरों या भवनों में वही प्रदर्शित किया जाना चाहिए जो देखने वालों की आंखों को अच्छा लगे। उन्हें प्रसन्नता देने वाला हो। सजावट के लिए वस्तुएं या तस्वीर और चित्रों के चयन करते समय सौन्दर्य और सांस्कृतिक पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए। सुसज्जित लाइटें, झाड़-फानूस, पुस्तकों की अलमारी, कमलदान, फूलदान, सोफा, मेज, और कुर्सी आदि बड़ी सावधानी से रुचिपूर्वक चुनने चाहिए और उपयुक्त स्थानों पर रखने चाहिए ताकि वे आकर्षक दिखें।

भवन की आंतरिक दीवारों के रंग

 1 रसोई घर – पीला, क्रीम, छत सफेद

 2 डाइनिंग रूम – पीला, क्रीम, छत सफेद

 3 भंडारण – पीला, हल्का ब्राउन, छत सफेद

 4 शयन-कक्ष (बच्चों का) – हल्का हरा, सफेद, गुलाबी, छत सफेद

 5 बाथरूम (स्नानागार) – भूरा, मेहरून, क्रीम, पीला, छत सफेद

 6 शयन कक्ष (अतिथि) – हल्का हरा, पीला, सफेद, क्रीम, छत सफेद

 7 शयन-कक्ष (मुख्य) – आसमानी नीला, रॉयल नीला, रॉयल ब्राउन, गुलाबी

 8 पूजा कक्ष – पीतांबरी, नारंगी, पीला, क्रीम, हल्का ब्राउन, छत सफेद

 9 ड्रांईग रूम – रॉयल ब्राउन, हल्का नीला, सफेद, पीला, क्रीम, छत सफेद

नोट:  छत का रंग हमेशा सफेद तथा कॉर्निश का रंग सुनहरा रखवाना ही शुभ होता है।

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