कैसे जाएं?
कोणार्क सड़क रेल एवं वायुमार्ग से जुड़ा है। निकटतम रेलवे स्टेशन भुवनेश्वर है। भुवनेश्वर से 65 कि.मी. दूर कोणार्क पहुंचने के लिए पुरी के रेलवे स्टेशन से टैक्सी आदि मिल जाती हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि से भुवनेश्वर तक टे्रनें आती हैं। बसें भी मिलती हैं। निकटतम हवाई अड्डïा भुवनेश्वर है।

कहां ठहरें?
ठहरने के लिए भुवनेश्वर में धर्मशालाएं, होटल, गैस्ट-हाउस तथा टूरिस्ट-बंगले मिल जाते हैं। पंडों के पास भी ठहरा जा सकता है। कोणार्क में ठहरने की व्यवस्था नहीं है।

महत्व
सूर्य देवता को समर्पित यह मंदिर उड़ीसा राज्य के पवित्र शहर पुरी के पास स्थित है। कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है तथा भारत का  प्रसिद्घ तीर्थ स्थल है। मंदिर सूर्य देव की भव्य यात्रा को दर्शाता है। इस मंदिर का निर्माण राजा नरसिंह देव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। जिसे कोर्णाक मंदिर के नाम से जाना जाता है। 

कोणार्क शब्द, ‘कोणÓ और ‘अर्कÓ शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य और कोण का अर्थ होता है किनारा। यह मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के करीब निर्मित है। इसलिए इसका

नाम कोणार्क मंदिर पड़ा।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है। ये वह स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को अर्पण करने के लिए नृत्य किया करती थीं। पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है। इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की आकृतियां भी एन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित हैं। इनकी मुद्राएं कामुक हैं और कामसूत्र से ली गईं हैं।
हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं। सूर्य देवता के रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में भी पत्थर के पहिए और घोड़े हैं, साथ ही इन पर उत्तम नक्काशी भी की गई है। ऐसा शानदार मंदिर विश्व में शायद ही कहीं हो! इसीलिए इसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं। यहां की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है और अब यहां कोई भी देव मूर्ति नहीं है।

सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 तीलियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप हैं। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।
इस मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं-

द्य बाल्यावस्था-उदित सूर्य- 8 फीट
द्य युवावस्था-मध्याह्न सूर्य- 9.5 फीट
द्य प्रौढ़ावस्था-अस्त सूर्य-3.5 फीट

इस मंदिर के तीन ओर ऊंचे-ऊंचे प्रवेशद्वार हैं। मंदिर के तीन भाग हैं। नट मंडप, जगमोहन मंडप और गर्भगृह। मंदिर के ठीक सामने समुद्र से सूर्याेदय का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है। कहा जाता है कि कोणार्क मंदिर के ऊपर एक चुंबक था, जो समुद्र में जाने वाले जहाजों को अपनी ओर खींच लेता था। इसलिए दूसरे देशों के नाविक उसे निकालकर ले गए। मंदिर का शिखर गिर गया है, मगर दक्षिण, पश्चिम और उत्तरी कोणों में नवोदित सूर्य, मध्याह्न सूर्य और अस्ताचलगामी सूर्य की मूर्तियां मौजूद हैं। मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण देवी-देवताओं, अप्सराओं, पशु-पक्षियों की मूॢतयां और प्राकृतिक दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाले हैं।
मंदिर के प्रवेश पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं। ये 28 टन की 8.4 फीट लंबी 4.9 फीट चौड़ी तथा 9.2 फीट ऊंची हैं। मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें उड़ीसा सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में भी अंगीकार किया है।

15वीं शताब्दी में मुस्लिम सेना ने लूटपाट मचा दी थी, तब सूर्य मंदिर के पुजारियों ने यहां स्थापित सूर्य देवता की मूर्ति को पुरी में ले जाकर सुरक्षित रख दिया, लेकिन पूरा मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद धीरे-धीरे मंदिर पर रेत जमा होने लगी और यह पूरी तरह रेत से ढक गया था। बाद में 20वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान इस मंदिर को पुन: खोज निकाला गया।

श्री सूर्यदेव जी की आरती

जय जय जय रविदेव  जय जय जय रविदेव।

रजनीपति मदहारी शतलद जीवन दाता,

पटपद मन मदुकारी हे दिनमण दाता,

जग के हे रविदेव जय जय जय स्वदेव,

नभ मंडल के वाणी ज्योति प्रकाशक देवा,

निज जन हित सुखराशी तेरी हम सब सेवा,

करते हैं रविदेव जय जय जय रविदेव,

कनक बदन मन मोहित रुचिर प्रभा प्यारी,

नित मंडल से मंडित अजर अमर छविधारी,

हेसुरवररविदेवजयजयजयरविदेव।

सूर्यदेव के मंत्र:

 ‘ऊं घृणि: सूर्य आदिव्योमÓ