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पिरामिड का निर्माण मिस्र के राजा पराह जोसर के काल 2605 से 2560 में हुआ था। मिस्र में आज भी जगह-जगह पर अनेक पिरामिड बने हुए हैं जो मुख्यत: घरेलू उपयोग में लाए जाते हैं। कुछ पिरामिड स्तूपाकार तो कुछ तीखे त्रिकोण वाले और कुछ झुके हुए हैं। इनमें से 30-35 पिरामिड ही ऐसे हैं जिनका लंबा इतिहास है।

पिरामिडों की संरचना

मिस्र के पिरामिड लगभग पांच हजार वर्ष पुराने हैं। मिस्र की राजधानी काहिरा से 10-12 कि.मी. दूर एक चट्टानी पठार स्थित है। इसकी ऊंचाई भूतल से 125-30 फीट है। वास्तव में यह एक मील लम्बा मानव निर्मित पठार है जिसे अरबी भाषा में ‘गाजा’ या ‘गीजा’ भी कहा जाता है। यहां पर तीन विशाल पिरामिड अद्भुत त्रिकोण में बने हैं। इनमें से पहले इन सब में गीजा के तो विशाल पिरामिड संसार के सात आश्चर्यों में से एक हैं। इन तीनों पिरामिडों को मिस्र के कारीगरों ने वहां के सम्राट चेयोप्स चेफ्रेंन और मायासीरिन के लिए बनाए थे।

इन तीनों पिरामिडों में सर्वाधिक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण सेसेफल के पुत्र चेयोप्स का पिरामिड है, इसे ‘गीजा के पिरामिड’ कहते हैं। मृत्यु के बाद चेयोप्स का शव इसी पिरामिड में रखा गया। यह वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। इस एकमात्र पिरामिड को बनाने में ही लगभग 20 वर्ष का समय लगा। सवा लाख मजदूरों ने इस पर रात दिन काम किया। दस वर्ष का समय इसके चारों ओर सड़क और मैदान ढूढ़ने में लग गए। जब यह पिरामिड बनकर तैयार हुआ तो इसकी ऊंचाई 481 फीट थी। परन्तु आज यह ऊपर से 38 फीट कम हो गया है। इसकी विशालता और क्षेत्रफल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शिकागो और न्यूयॉर्क की सभी 40-50 मंजिली इमारतें इसके अंदर समा सकती हैं। दिल्ली का कुतुबमीनार भी इससे लगभग 100 फीट छोटा है। इस अकेले पिरामिड का क्षेत्रफल 13.01 एकड़ है। धरती पर एक तरफ बनी दीवार की लंबाई 755 फीट है। इसका एक चक्कर लगाने में लगभग 2 कि.मी. चलना पड़ता है। ग्रेनाइट और चूने के पत्थर से बने इस पिरामिड में लगभग 25 लाख पत्थर लगे हैं। सभी पत्थर चौकोर और त्रिकोण आकार में काटे गए हैं। छोटे से छोटे पत्थर का वजन 18-20 टन है। अनुमान है कि एक पूरे पिरामिड में लगभग 65 से 70 टन पत्थर लगे हैं। विश्व की हजारों रेलगाड़ियां अगर जोड़ दी जाए तो भी वे इस पिरामिड को खींच नहीं पाएंगी। आज भी इन पत्थरों की चमक ऐसी है कि मानो इन्हें हाल ही में बनाया गया है। सूर्य की रोशनी में इनकी पॉलिश दूर से ही चमकती है।

नेपोलियन बोनापार्ट ने जब मिस्र पर हमला किया था तो इन पिरामिडों को देखकर उसने अनुमान लगाया था कि सभी पिरामिडों के पत्थरों को निकाल कर पूरे फ्रांस के चारों ओर 10 फीट ऊंची और 2 फीट चौड़ी दीवार बनाई जा सकती है। परंतु यह नेपोलियन का स्वप्न मात्र था। स्थापत्य कला की यह अद्भुत शैली प्राचीन मिस्रवासियों के अपूर्व ज्ञान का प्रतीक तो है ही साथ ही आज की वैज्ञानिक वास्तु तकनीक को भी मात देने वाली है। चेयोप्स के पिरामिड के अन्दर की संरचना में आठ भाग थे। पहला- राजा का कक्ष, दूसरा- हवा के आने-जाने का मार्ग, तीसरा- मध्य में स्थित कक्ष, चौड़ा- बड़ा गलियारा, पांचवा- ऊपर जाने का रास्ता, छठा- रानी के कमरे तक जाने का सीधा रास्ता, सातवां- रानी का निजी कक्ष तथा आठवां- तहखाना बना हुआ था। पिरामिड की प्रत्येक दीवार की सतह का क्षेत्रफल उसकी लम्बवत् ऊंचाई के बराबर है। अत: पिरामिड के ढाल का कोण 60 अंश ना होकर 51 अंश 51 ही है तथा इसके अवरोह मार्ग का कोण 26 अंश 17 है। इस प्रकार से अवरोह मार्ग कोण 26 अंश 17 बनाने का यही कारण है कि इस मार्ग से कोई भी दो बिन्दु ध्रुव तारे की सीध में सरल रेखा बनाते हैं। पिरामिड का निर्माण हुआ था लगभग 4600 वर्ष पूर्व। उस समय इकोनिस नामक तारे को ध्रुव तारा कहते थे। परन्तु प्रत्येक 25000 वर्ष में पृथ्वी की धुरी 45 अंश का कोण बनाती है, अत: अब यह ध्रुव तारा बदल चुका है। इसका नाम पालारस है। कई खगोलविदों ने पिरामडों का गहराई से निरीक्षण परीक्षण किया है। उनमें से एक चार्ल्स पियाजी स्मिथ के अनुसार पिरामिड से पाई का सही मान पृथ्वी का द्रव्यमान तथा परिधि और सूर्य की पृथ्वी से दूरी का भी पता लगाया जा सकता है। गीजा के पिरामिड का परिमाण पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है तथा उसके अर्धव्यास को बनाता है। ठीक उसी अनुपात में पिरामिड की सतह या आधार का क्षेत्रफल पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध का सूचक है। इस प्रकार की ऊंचाई तथा अनुपात इस बात का भी द्योतक है कि पिरामिड के निर्माणकर्ता पृथ्वी के गोल होने का सत्य भी जानते थे।

पिरामिड की अन्दरूनी शक्ति का रहस्य

यूनानी विजेताओं ने जब मिस्र की गगनचुम्बी त्रिभुजाकार पिरामिड की अद्भुत संरचना को देखा था, तो वे स्तम्भित हो देखते रह गये। उन्होंने ही विश्व के सात अजूबों में पिरामिड का नाम दर्ज कर दिया। आज इनकी उपयोगिता और चमत्कारिक शक्ति के बारे में जो तथ्य सामने आये हैं, वे इसकी महत्ता को कई गुना बढ़ा देते हैं। पिरामिड से होने वाले लाभों को जानने के लिए यह जानना भी जरूरी है कि पिरामिड की आकृति में ऐसी कौन सी खास बात है, जिसके कारण उसके अन्दर एक तिहाई ऊंचाई पर रखा शव विकृत नहीं होता, बल्कि ममी बन जाता है। 

आज वैज्ञानिक भी यह मानने लगे हैं कि पिरामिड की आकृति ही ऐसी है कि अद्भुत ऊर्जा उसकी चोटी पर आकर एकत्र हो जाती है और वहां से सब ओर समतल रूप में सभी दीवारों में फैलती हुई धरती तक आ जाती है। ऐसा पिरामिड की सभी ओर की दीवारों का एक ही आकार और एक ही ढलाव के होने की वजह से होता है। वास्तव में पिरामिड के अन्दर विलक्षण किस्म की जो ऊर्जा तरंगें कार्य करती हैं, वे जड़ और चेतन दोनों प्रकार की वस्तुओं पर प्रभाव डालती हैं।