विदेशों में भी होती है शिव की आराधना: Shiva Temple Outside India
Shiva Temple Outside India

Shiva Temple Outside India: देवों के देव महादेव को न केवल हमारे देश में पूजा जाता है अपितु विदेशों में भी बड़ी श्रद्धा से उनकी ऌपूजा- अर्चना की जाती है। शिव भक्ति में डूबे देशों के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें यह लेख।

मस्त संसार में शिव ही एक ऐसे देवता हैं जिनको ‘अंतर्राष्ट्रीय देव की संज्ञा प्रदान की जा सकती है। वजह कि शिव की पूजा न केवल भारत में अपितु संसार के कई देशों में की जाती है।
वर्तमान समय में भारत में जिन देवी-देवताओं की अर्चना की जाती है, उन समस्त देवी-देवताओं की उपासना दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों विशेष रूप से जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, सेलीवीज, जापान आदि देशों में भी की जाती है तथा इनमें ‘शिव खासतौर से लोकप्रिय हुए हैं।

जकार्ता

जकार्ता में शिव की अर्चना बड़ी धूमधाम से की जाती है। यहां अनेक शिव मंदिर हैं। ऐसी मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि भारत से यात्रा शुरू कर बाली द्वीप तक गए थे तथा इन्होंने जकार्ता समेत दूसरे द्वीपों में भी शिव-आराधना का श्री गणेश किया। इस बारे में यह भी कहा जाता है कि शिव का गोत्र भृगु है और मार्कंडेय ऋषि भी भृगुवंशी ही थे, इसलिए उन्होंने शिव उपासना का प्रचलन खासतौर से किया होगा। जकार्ता में एक ‘ब्रीललोहित शिव मंदिर है। यह मंदिर काले पत्थरों से बना है। यहां के शिव ‘पाटामायासन (कमल के पर आसीन) हैं। यहां ऐसी मान्यता है कि ब्रह्म जन्म शक्ति में, विष्णु पालन शक्ति में और संहारक शक्ति में शिव हैं। शिव स्वत: कल्याण के द्योतक हैं। यहां के शिव आठ पंखुड़ियों वाले कमल पर आसीन हैं जो अष्ट शक्ति का परिचायक माना गया है। जकार्ता में भी सोमनाथ, बद्रीनाथ, पुरीनाथ और रामेश्वर को बड़ा महात्म्य प्रदान किया जाता है। ‘नील लोहित शिव मंदिर के खुले प्रांगण में काले पत्थर से निर्मित चौकोर चबूतरे पर लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, त्रिदेवी की खड़ी प्रतिमाएं खास वास्तुशिल्प में बनी हैं और ठीक मध्य में शिव की प्रतिमा है तथा उनकी जटा से निकला पानी उस भर रहा है। ठीक सामने एक शिव की मूर्ति 11 पटल पुष्प पर निर्मित है। मध्य वाले शिव को ‘सागर गिरि शिव कहा जाता है।

उपनिवेश

कम्बुज (कम्पूचिया), यवद्वीप (जावा), चम्पा, थाइलैंड, सुमात्रा आदि में पुरातन काल से शिव, शिवपद और दुर्गा की अर्चना खासतौर से की जाती है। यह परम्परा आज भी बरकरार है। बारहवीं सदी तक पौराणिक हिंदू धर्म के असर और शैव-वैष्णव मत के असर से इन देशों में बड़े-बड़े शिव मंदिरों समेत दूसरे देवी-देवताओं के मंदिरों का निर्माण हो चुका था। जावा द्वीप में पौराणिक हिंदू धर्म के शैव मत का विशेष असर था। त्रिशूल, शंख, गदा, कमल और कुंभ आदि के परिचायक आज भी मौजूद हैं और यहां भी शिव की आराधना की जाती है। बाली द्वीप तो पूर्णतया हिंदुओं का शरण-स्थल था और वर्तमान समय में यहां हिंदू धर्म के अनुयायी रह रहे हैं, जो शिव की खास अर्चना करते हैं।

नेपाल

भारत के पड़ोसी देश नेपाल का कोई नागरिक ऐसा नहीं है जो शिव का भक्त न हो। काठमांडू में स्थापित ‘पशुपति नाथ का मंदिर संसार के प्रख्यात शिव मंदिरों में से एक है। यहां हरदम अपार भीड़ लगी रहती है। भारत के लोग भी पशुपतिनाथ के दर्शन और अर्चन हेतु जाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन तो यहां इतना अपार जनसमूह उमड़ पड़ता है कि दर्शन करना भी कठिन हो जाता है।

जापान

जापान में भी शिव की उपासना अत्यंत ही धूमधाम से की जाती है। जापान में भगवान शिव को ‘फूडो (अचल) कहा जाता है। शिव(अचल) जापान के सर्वाधिक लोकप्रिय देवता हैं। शिव के विभिन्न छह स्वरूपों की आराधना जापान में की जाती है। यहां के लोगों का कहना है कि ‘फूडो (अचल)रुद्र, अग्नि तथा वायु को धारण किए हुए हैं। जापान में कई शिव मंदिर हैं जिनमें ‘काशीकोवा शान फूडो (अचल) का मंदिर 1198 ई. में महंत ‘गाई ओशो द्वारा स्वयं निर्माण करवाया गया था। इसका स्थापत्य बेहद ही मनभावन है। ‘कामाकुरा काल के विख्यात शिल्पी उनकी ने इस मंदिर में शिव की प्रतिमा के साथ 8 अनुचर देवों को भी प्रतिष्ठित किया। इसके बाद यदि हम देखें तो जापान का ही नहीं अपितु विश्व विख्यात अचल (शिव) का मंदिर ‘कोयाके नोन इन में स्थित है। इसका निर्माण महान शिल्पी एवं संत ‘कोबोदाईशी ने किया था, जिन्होंने पहाड़ी पर मौजूद इस मठ की स्थापना की थी। इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिव को ‘नामाकिरी कहा जाता है।
इस शिव प्रतिमा का निर्माण वैसे तो चीन में आरंभ हुआ था तथा जब उसे जापान लाया जा रहा था तो समुद्र में भयंकर तूफान आ गया। कोबोदाईशी, जो इस प्रतिमा को ला रहे थे उनकी नाव डूबने लगी। इस संकट की घड़ी में उन्होंने भगवान शिव का स्मरण किया तो तूफान रुक गया। इसलिए शिव की इस प्रतिमा को ‘नामाकिरी (समुद्र को शांत करने वाला) अचल कहा जाने लगा। इस ‘नामाकिरी अचल के अद्भुत की एक दूसरी घटना का भी जिक्र मिलता है। जब सन् 1281 ई. में आतताई कुबलई खां के साहसी मंगोल सैनिक जापानी द्वीप ‘क्युशू पर हमला करने का इरादा कर रहे थे तो अचल की इस प्रतिमा को समुद्र के किनारे लाया गया तथा जैसे ही शिव की आराधना प्रारंभ हुई, समुद्र में भयंकर तूफान उठा और सब मंगोल सैनिकों को अपनी चपेट में लेकर काल-कलवित कर दिया। ‘कोयाकेनानइन मंदिर में स्थापित ‘लाल अचल की ही तरह विशाल शिव प्रतिमा जिसे ‘पीला अचल कहा जाता है, निदेरा में प्रतिष्ठित है और अन्य ‘नील अचल की प्रतिमा टोकियों के ‘जोरेन इन में प्रतिष्ठित है। इस प्रतिमा में शिव पालथी मारकर धीर-गंभीर मुद्रा में पीठ के पीछे अग्नि की लपट, गले में एक काला और अति विकराल सांप लिपटा हुआ है और बाएं हाथ में दुष्टों के विनाश हेतु गोल रस्सी है।

रूस

रूस में भी शिव की उपासना अति पुरातन काल से ही होती चली आ रही है। रूस से भी भारत का पुरातन काल से सांस्कृतिक और व्यापारिक रिश्ता रहा तथा संभवत: इसीलिए रूस में भी शिव की प्रतिमा स्थापित हुई हैं। रूस में कैस्पियन सागर के किनारे बाकू नामक स्थान पर एक अति पुरातन शिव मंदिर है। इस मंदिर का कब निर्माण हुआ और किसने बनवाया, यह निश्चित रूप से विदित नहीं है, लेकिन ऐसा विश्वास है कि पुरातन काल में यहां पर धरा के अंदर से प्राकृतिक गैस जलती हुई प्रकट हुई थी, जिसको लोगों ने अलौकिक शक्ति समझकर उसकी अर्चना करना शुरू कर दिया। ऐसा सुनने में आता है कि ज्यूर स्तरन सातवीं सदी में यहां आया था। उसके दो सदी बाद भारतीय हिंदू व्यापारी भी यहां आए, जिन्होंने इस जलती हुई गैस के ऊपर मंदिर बनवाया। इस मंदिर के ऊपर एक त्रिशूल भी लगा हुआ है, जिससे यह एहसास होता है कि यह शिव मंदिर है। जब यह मंदिर ज्यादा प्रसिद्धि पा गया तो भारतीय साधु-संत यहां आकर तपस्या-साधना करने लगे। इन साधु-संतों के रहने हेतु इस मंदिर के चहुं ओर गोलाकार रूप में 26 गोल कमरे भी बने हुए हैं। मंदिर के प्रांगण में स्थित शयनागार कक्ष और प्रार्थना कक्ष में शिव लीलाओं से संबंधित कई चित्र बने हुए हैं।

सूरीनाम

सूरीनाम में पर्याप्त हिंदू मंदिर हैं, जहां शिव, राम, दुर्गा, कृष्ण आदि समस्त देवी-देवताओं की अर्चना की जाती है। पारामारीबो, निकेरी, सरमक्का और सूरीनाम आदि जिलों और दूसरे दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में शिव के सैकड़ों मंदिर हैं, जहां शिवरात्रि बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। शिवरात्रि के दिन भक्तगण मंदिरों में जाकर शिव की आराधना करते हैं, भेंट चढ़ाते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। शिवरात्रि के दिन ‘शिव स्तोत्र का खासतौर से पाठ किया जाता है। फिलाडैल्फिया की संसार प्रसिद्ध पुरातत्वविद महिला क्रेमरिश ने समस्त यूरोप में शैव आंदोलन चला रखा है। भारत, नेपाल, श्रीलंका और दूसरे एशियाई देशों और तमाम यूरोपीय संग्रहालय, मंदिरों और घरों में शिव की विभिन्न मुद्राओं में प्राप्त प्रतिमाओं की चलती-फिरती प्रदर्शनी का आयोजन कर क्रेमरिश शिव के कल्याणकारी रूप को उजागर करने की कोशिश कर रही हैं। न्यूयार्क के संग्रहालय में शिव की सद्गृहस्थ रूप में अर्द्धांगिनी उमा को आलिंगन करती हुई एक अति मनोरम प्रतिमा है, जिसकी छवि परम आह्लादकारी और कल्याणकारी है। मॉरीशस, फिजी, श्रीलंका आदि देशों में भी तमाम शिव मंदिर, शिव प्रतिमाएं तथा शिवलिंग हैं, जहां शिव की उपासना की जाती है। इसके अलावा भी संसार में जहां भी हिंदू संस्कृति का प्रभाव रहा है वहां अन्य देवी-देवताओं के साथ शिव की भी उपासना की
जाती है।