Secret to Happiness: क्या आप हमेशा निराशा से घिरे रहते हैं और हंसना तो शायद आप भूल ही गए हैं। अगर ऐसा है तो निश्चित तौर पर आपको अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है। इस लेख के माध्यम से हम
एक कोशिश कर रहे हैं जिससे आपको सकारात्मक दिशा की ओर मुड़ने में मदद
मिले।
अमेरिका की मशहूर लेखिका हेलेन केलर का एक कथन जो जीवन में खुशियों को बेहतर ढंग से परिभाषित करता है। हेलन ने लिखा है कि ‘जब खुशी का एक दरवाजा बंद होता है, तो दूसरा खुल जाता है, लेकिन अक्सर हम बंद दरवाजे को इतनी देर तक देखते रहते हैं कि हम उस दरवाजे को नहीं देख पाते जो हमारे लिए खुला है।’
वर्तमान समय में मनुष्य सबकुछ पाकर भी जिस चीज से दूर है, वह है- खुशी। हर किसी के जीवन में कुछ-न-कुछ छूट ही जाता है। मनुष्य को यह चीज स्वीकार करना ही होगा। अपने आपको खुश रखने की जिम्मेदारी आपकी स्वयं है। आपको अपनी प्राथमिकता की सूची बनानी होगी जिसकी वजह से आप खुश रहते हैं। खुशियां ढूंढ़ने के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं होती हैं व्यक्ति को अपने आप ही खुशियां ढूंढ़नी होंगी। जीवन में हमेशा आगे बढ़ने की होड़ में हम पीछे बहुत कुछ छोड़ देते हैं जिसकी वजह से हम दुख के रास्ते पर आगे बढ़ने लगते हैं।
हार्मोन्स और संतोष का अनुभव

जब कोई व्यक्ति खुशी महसूस करता है तो उसके दिमाग और शरीर में कुछ खास रसायन और हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं, जो न सिर्फ उसे अच्छा महसूस कराते हैं, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी फायदा पहुंचाते हैं। इन रसायनों में सबसे अहम है डोपामिन, जिसे आमतौर पर ‘रिवॉर्ड/प्रतिफल देने वाला केमिकल’ कहा जाता है। जब हम कोई लक्ष्य हासिल करते हैं, स्वादिष्ट खाना
खाते हैं या कोई अच्छा अनुभव होता है, तब डोपामिन निकलता है और हमें संतोष और उत्साह का अनुभव होता है। इसके अतिरिक्त सेरोटोनिन, जो हमारे मूड को संतुलित रखता है और मानसिक स्थिरता देता है। यह धूप, व्यायाम और सही खानपान से बेहतर होता है और इसकी कमी से व्यक्ति उदास या चिड़चिड़ा महसूस कर सकता है। एंडोॢफन भी एक महत्वपूर्ण रसायन है, जो शरीर के
प्राकृतिक दर्द निवारक के रूप में काम करता है। यह ज्यादातर व्यायाम या तनाव के समय निकलता है और ऊर्जा का एहसास कराता है, जैसे- रनिंग के बाद अक्सर लोग जिस ‘हाई’ को महसूस करते हैं, वह एंडोॢफन की वजह से होता है। ऑक्सीटोसिन को अक्सर ‘प्यार का हार्मोन’ कहा जाता है, जो किसी के साथ जुड़ाव, अपनापन और भावनात्मक नजदीकी के समय निकलता है। यह रिश्तों में भरोसे और आत्मीयता को मजबूत करता है। वहीं गाबा यानी गामा एमिनोब्यूट्रिक
एसिड एक ऐसा रसायन है जो दिमाग को शांत करता है, तनाव कम करता है और मन
को स्थिर बनाता है।
मानसिक स्वास्थ्य और हार्मोन्स

इन सभी रसायनों का संतुलन हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। जब ये संतुलन बिगड़ता है, तब व्यक्ति को चिंता या तनाव जैसी मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, खुश रहने के लिए सिर्फ बाहरी परिस्थितियां नहीं बल्कि हमारे दिमाग के ये रसायन भी अहम भूमिका निभाते हैं। इन्हें बेहतर बनाए रखने के लिए संतुलित जीवनशैली, व्यायाम, अच्छे संबंध और सकारात्मक सोच जरूरी है। हर बार जब हम खुश होते हैं, हमारे शरीर में जो हार्मोन और न्यूरोट्रांसमीटर सक्रिय होते हैं, उनका काम केवल खुशी तक सीमित नहीं होता। एक मनोचिकित्सक के नजरिए से देखें तो ये रसायन मानसिक ही नहीं, शारीरिक स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
डोपामिन एक ऐसा न्यूरोट्रांसमीटर है जो प्रेरणा, लक्ष्य प्राप्ति और एकाग्रता को बढ़ाता है। सेरोटोनिन मूड को संतुलित रखने में मदद करता है। एंडोॢफन हमारे शरीर के प्राकृतिक पेनकिलर होते हैं। ऑक्सीटोसिन तनाव घटाने और घाव भरने की प्रक्रिया को तेज करने में भी मदद कर सकता है। गाबा यानी गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड, मस्तिष्क का मुख्य शांतिदायक न्यूरोट्रांसमीटर है। इन
सभी रसायनों का संतुलन हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। जब ये संतुलन में होते हैं, तो न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है, बल्कि नींद, प्रतिरक्षा तंत्र और सोचने-समझने की क्षमता भी सुधरती है।
मूड कैसे रखें अच्छा

रोजमर्रा की जिंदगी में तनाव एवं अशांति भरे माहौल में स्वयं को शांत व खुश रखना अपने आप में एक चुनौती पूर्ण काम है परंतु हम अपने जीवन में कुछ अच्छी आदतों को अपनाकर रोजमर्रा का जीवन सुगम बना सकते है जैसे की प्रतिदिन व्यायाम/योग करे, मैडिटेशन/ध्यान लगाना सीख कर
इसका अभ्यास कर सकते है जिससे हमें प्रतिदिन की घबराहट अथवा बेचैनी से राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त पौष्टिक आहार जैसे- पत्तेदार सब्जियों, फल एवं नट्स युक्त ले, अपनी नींद को प्राथमिकता दे। अपने कार्यस्थल, घर व अन्य सामाजिक स्थानों पर लोगों के प्रति आभार व्यक्त करे,
सामाजिक जीवन में भागीदार बने। इन सभी उपायों को अपना कर हम रोजमर्रा के जीवन में नकारात्मकता एवं मानसिक अशांति से दूर रह सकते हैं।
सबसे पहले, स्थिति को स्वीकार करना सीखिए। कई बार हम समस्या से इनकार करते हैं या खुद को दोष देते हैं, जिससे तनाव और बढ़ता है। स्वीकार्यता से मन हल्का होता है और समाधान की दिशा में सोचना शुरू होता है। दूसरा, अत्यधिक तनाव अथवा घबराहट महसूस करने पर सांसों पर ध्यान देना बहुत प्रभावी तरीका है। जब मन अशांत हो, तो धीमी सांसें लें। इससे शरीर का तनाव घटता है, हृदय गति सामान्य होती है और मस्तिष्क को एक संकेत मिलता है कि सब कुछ नियंत्रण में
है। जब हम परेशान होते हैं, तब हमारी सोच अक्सर नकारात्मक, अतिशयोक्तिपूर्ण और भय आधारित हो जाती है। खुद से सवाल पूछें ‘क्या यह स्थिति वाकई इतनी बुरी है जितनी मैं सोच रहा हूं?’ यह
आत्मनिरीक्षण मन को तर्क और संतुलन की ओर वापस लाता है।
किसी विश्वासपात्र से बात करना चाहे वह परिवार का सदस्य हो, मित्र हो या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, यह उपाय मन के बोझ को कम करता है और भावनात्मक सहारा देता है। इसके अलावा, रोजमर्रा के छोटेछोटे शांतिप्रद अभ्यास जैसे- ध्यान (मेडिटेशन), प्रार्थना या डायरी लिखना भी
अत्यंत प्रभावी होते हैं। ये मस्तिष्क में गाबा और सेरोटोनिन जैसे रसायनों का संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं, जिससे तनाव नियंत्रित रहता है।
अंत में, यह समझना जरूरी है कि हर परिस्थिति स्थायी नहीं होती। समय के साथ हालात बदलते हैं और यदि मन शांत और स्थिर रहे, तो हम किसी भी चुनौती को बेहतर तरीके से पार कर सकते हैं। अगर लगातार बेचैनी, घबराहट या नींद की समस्या बनी रहे, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श लेने में बिल्कुल संकोच न करें, यह आत्मबल की निशानी है, कमजोरी की नहीं।
सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग- खासकर रात में, नींद के पैटर्न को बिगाड़ता
है। देर रात तक स्क्रीन देखने से मस्तिष्क का सेरोटोनिन और मेलाटोनिन स्तर गड़बड़ाता है, जिससे व्यक्ति चिड़चिड़ा और मानसिक रूप से थका हुआ महसूस करता है और यह तनाव के जोखिम को और बढ़ा देता है।
अंत में, यह जरूरी है कि हम सोशल मीडिया का संतुलित उपयोग करें। दिन में सीमित समय ही इसका उपयोग करें, दूसरों की जिंदगी से तुलना करने की बजाय अपनी वास्तविकता को स्वीकार करें और अगर सोशल मीडिया आपको बार-बार उदास या बेचैन कर रहा है, तो कुछ समय
के लिए डिजिटल डिटॉक्स लेना एक अच्छा निर्णय हो सकता है।
(आलेख डॉ. समीर भार्गव, एमबीबीएस, एमडी, (साइकाइट्री), फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल, फरीदाबाद से बातचीत पर आधारित है।)
“जब मन अशांत हो, तो धीमी सांसें लें। इससे शरीर का तनाव घटता है, हृदय गति सामान्य होती है और मस्तिष्क को एक संकेत मिलता है कि सब कुछ नियंत्रण में है।”
