Mirabai Chanu: छोटी-छोटी सफलताएं किस तरह से बड़ी सफलता बनती है इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण मीराबाई चानू है। आज मीराबाई चानू देश के लिए कोई अनजाना नाम नहीं है। जापान के टोक्यो ओलंपिक 2020 में देश के लिए सिल्वर मेडल जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया और मैरीकॉम के बाद दूसरी नॉर्थईस्टर्न खिलाड़ी बन गई हैं जिन्होंने ओलंपिक में मेडल जीता है। इस मेडल को जीतने की शुरुआत उन्होंने बचपन में जंगल से लकड़ियों के गट्ठर को उठाते हुए की थी। ओलंपिक के पहले से ही खेल विशेषज्ञ मीराबाई चानू के लिए पदक पक्का समझ रहे थे। क्योंकि उन्होंने क्लीन एंड जर्क केटेगरी में वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किया है। इस विश्वास को भी मीराबाई चानू ने बनाए रखा और टोक्यो ओलंपिक के दूसरे दिन ही देश को सिल्वर मेडल जीता दिया।
49 किलोग्राम की कैटिगरी में जीती पदक
जापान के टोक्यो ओलंपिक में पदकों का खाता मीरा ने ही खोला थो। इन्होंने टोक्यो ओलंपिक के दूसरे दिन भारत को 2020 के ओलंपिक का पहला पदक जीत कर भारत के लिए पदकों का खाता खोला था। 26 साल की मीरा ने 49 किलोग्राम की कैटिगरी में सिल्वर मेडल हासिल किया। मीरा भारोत्तोलन में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय हैं। आज हम इस पहली ओलंपिक मेडलिस्ट भारोत्तोलन खिलाड़ी के बारे में ही बात करेंगे और इनके जिंदगी के अनजाने पहलूओं को जानेंगे कि किस तरह से सूदूर नॉर्थ ईस्ट की खिलाड़ी होने के बावजूद ये मुख्याधारा की खिलाड़ी बनीं और देश के लिए ओलंपिक पदक जीता।

खाना पकाने के लिए जंगल से काटकर लकड़ियां लाती थीं
वजन उठाने का सिलसिला खाना बनाने के लिए जंगल से लकड़ियां उठाकर लाने से शुरू हुआ। मीराबाई का जन्म 8 अगस्त 1994 को नोंगपोक काकचिंग, इंफाल, मणिपुर में एक मैतेई हिंदू परिवार में हुआ था। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी कि वे खाना बनाने के लिए एलपीजी गैस का उपयोग कर सकें। वैसे भी कुछ सालों पहले तक नॉर्थईस्ट राज्यों में एलपीजी सिलेंडर की पहुंच जल्दी नहीं हो पाती थी। ग्रामीण इलाके से आने के कारण भी उनके घर में लकड़ियां जलाकर ही खाना बनाया जाता था।
मीरा को वजन उठाना शुरू से ही अच्छा लगता था और उनके परिवार को भी मीरा की इस ताकत का अहसास उनके कम उम्र में ही हो गया था। क्योंकि मीरा लकड़ियों के उन बड़े-बड़े गठ्ठरों को भी आसानी से उठा लेती थीं जिन्हें उनका भाई मुश्किल से ही उठा पाता था। उनकी इस ताकत का अहसास होते ही उन्होंने वेटलिफ्टिंग में करियर बनाने का फैसला किया।
इसके अलावा महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी भी कारण थीं। क्योंकि वे भी मणिपुर की थीं और एथेंस ओलंपिक में खेल चुकी थीं। उन्हें देख मीरा ने अपने परिवारवालों से वेटलिफ्टिंग में करियर बनाने की बात कही। पहले पहल तो परिवार ने मना कर दिया लेकिन अंत में उन्हें मीरा की जिद के आगे झुकना पड़ा।
बाँसों से की प्रैक्टिस
2007 में मीरा ने प्रैक्टिस शुरु की। उस समय उनके पास लोहे के बार भी नहीं थे इसलिए उन्होंने बाँसों के बड़े-बड़े गट्ठर उठाने शुरू किए। गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं थे तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं। वह भी सामान ले जाने वाले ट्रकों में बैठकर। इन ट्रक वालों को धन्यवाद देने के लिए मीरा ने ओलंपिक पदक जीतने के बाद पार्टी भी दी थी। डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन न था। लेकिन उन्होंने इस परेशानी को भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी और अपनी प्रैक्टिस में लगी रही।

अपनी आइडल का ही तोड़ा रिकॉर्ड
11 साल की उम्र में मीरा अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन। खुशी का वक्त उस समय आया जब उन्होंने अपने ही आइडल कुंजुरानी देवी का रिकॉर्ड तोड़ा। 2016 में कुंजुरानी के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ते हुए मीरा ने 192 किलोग्राम वज़न उठाया। लेकिन इसके बाद भी मुश्किलें खत्म नहीं हुईं थीं। बल्कि मुश्किलें तो शुरू हुईं थीं। क्योंकि उनके परिवार के पास उनको खेल में आगे बढ़ाने के लिए संसाधनों और पैसे की कमी थी। ऐसे में फैसला हुआ कि अगर मीरा रियो ओलंपिक में नहीं क्वालीफाई कर पाई तो खेल छोड़ देंगी।
लेकिन रियो में हुईं असफल
21 साल की उम्र में कुंजारानी देवी के 192 किग्रा की संयुक्त लिफ्ट के साथ 190 किग्रा भार उठाने के रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद मीरा को रियो ओलंपिक 2016 में स्थान मिल गया। रियो ओलिम्पिक स्नैच इवेंट में 82kg वजन उठाकर तीसरा स्थान प्राप्त किया लेकिन वो क्लीन एंड जर्क में पहले प्रयास में 103kg वजन उठाने में असफल रहीं थी। यहीं से उन्होंने अपने ऊपर शायद ज्यादा दबाव डालना शुरू किया जिसके कारण उनको रियो में असफलता मिली।
इसे दबाव ही कहा जाएगा क्योंकि रियो ओलंपिक में वह ऐसी दूसरी खिलाड़ी थीं जिनके नाम के आगे “डिड नॉट फिनिश” लिखा था। जो भार मीरा रोज प्रैक्टिस में उठाती थीं वह ओलंपिक में नहीं उठा पाईं। उस दिन उनके हाथ बिल्कुल सुन्न पड़ गए थे। उस समय भारत में रात थी और रियो में दिन। अगले दिन जब भारतीयों को यह पता चला तो मीरा उस क्षण से भारतीयों के लिए विलेन बन गईं। उनके प्रशंसक उनकी आलोचना करने लगे।

मनोवैज्ञानिक से कराया इलाज
रियो ओलंपिक की असफलता और प्रशंसकों की आलोचना ने मीरा को डिप्रेशन में जकड़ दिया। जिसके कारण उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े। इस दौरान तो उन्होंने खेल से अलविदा लेने का भी मन बना लिया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और उसके बाद अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में धमाकेदार वापसी की। मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 49 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता।
अब मीरा का अगला लक्ष्य केवल और केवल ओलंपिक मेडल था।
मीरा की हाइट केवल 4 फ़ुट 11 इंच है। पहली बार में मीरा को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि एक छोटी सी लड़की इतना भारी वजन कैसे उठा सकती है। लेकिन मीराबाई चानू हर किसी के हैरानी का जवाब देते हुए आसानी से 150 किलोग्राम के ऊपर से वजन को उठा लेती हैं। 49 किलोग्राम के अपने वज़न से क़रीब चार गुना ज़्यादा वज़न यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता।

ओलंपिक के अपने प्रतियोगिता के दिन नहीं खाया था खाना
टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतकर मीरा ने पिछले 22 साल का सूखा खत्म कम दिया था। मीरा से पहले कर्णम मल्लेशवरी ने ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली मीरा पहली भारोत्तोलक हैं। इस पदक को जीतने के लिए मीरा ने उस दिन 49 किलो का वज़न बनाए रखने के लिए खाना भी नहीं खाया था।
इस दिन की तैयारी के लिए मीराबाई पिछले दो साल से अपने घर भी नहीं गईं थीं। इस दौरान पिछले साल उनकी सगी बहन की भी शादी हो गई लेकिन मीराबाई चानू नहीं गईं। पदक जीतने के बाद उनके आंखों में आंसू थे।
अब तक जीत चुकीं हैं कई मेडल
अब तक मीराबाई चानू ने देश के लिए कई सारे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीते हैं। इसमें 2014 के राष्ट्रमंडल खेल, ग्लासगो में जीता गया रजत पदक शामिल है। इसके अलावा उन्होंने गोल्ड कोस्ट में आयोजित कार्यक्रम के 2018 संस्करण में स्वर्ण पदक जीता। 2017 में भी संयुक्त राज्य अमेरिका के अनाहेम में आयोजित विश्व वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
पद्मश्री से हो चुकी हैं सम्मानित
मीराबाई चानू द्वारा खेल में दिए गए उनके योगदान के लिए भारत सरकार उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी हैं। उसके बाद वर्ष 2018 में भारत सरकार ने उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया।

नया भार वर्ग 55 किलोग्राम
टोक्यो ओलंपिक में भारत को सिल्वर मेडल जिताने के बाद मीरा की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई है। वे अब भारत का जाना पहचाना नाम है। लोग उन्हें पहचानने लगे हैं और वे अब जब भी घर से बाहर निकलती हैं तो बच्चे उन्हें घेर कर कई सारे सवाल करते हैं। ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब देते हुए यह बात निकलकर सामने आई है कि मीरा ने अपना भारवर्ग बदल लिया है। अब वे आगे 55 किलोग्राम में खेलेंगी। उन्होंने कहा कि नया भारवर्ग चुनौती भरा है लेकिन इसके लिए वे पूरी तरह से तैयार हैं और रोज प्रैक्टिस करती हैं। 55 किलोग्राम में वर्ल्ड रिकॉर्ड 225 किलोग्राम का है जो मीरा के लिए मुश्किल साबित हो सकता है। लेकिन नामुमकिन नहीं। क्योंकि मीरा ने इसके लिए जी जान लगाकर प्रैक्टिस शुरू कर दी है।
अनुशासन में रहना जीत का राज
मीराबाई चानू अनुशासन को अपनी जीत का राज बताती है। उनके अनुसार किसी भी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अनुशासन में रहना जरूरी है। अगर आप अनुशासन में नहीं है और उस लक्ष्य तक पहुंच गए तो भी उसे मेंटेन नहीं कर पाएंगे। इसलिए अनुशासन में रहना हर जीत की पहली शर्त है। आप कुछ भी
बन सकती है बायोपिक
बीते महिला दिवस पर मीडिया से बात करते हुए मीराबाई चानू ने बताया कि उन्हें बॉलीवुड से उन पर बायोपिक बनाने के लिए कॉल भी आ चुके हैं। वे चाहती हैं कि कभी उनकी बायोपिक बनीं तो दीपिका पादुकोण या आलिया भट्ट उसमें काम करें। दीपिका पादुकोण मीरा को बहुत पसंद है और उनके फेवरेट एक्टर सलमान खान हैं। मीरा को डांस करना बहुत पसंद है और वे फुर्सत के पलों में अपने कमरे को बंद कर अकेले में डांस करती हैं।
