A combination of unique abilities and extraordinary personalities – we are no less than anyone.
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Empowerment of Women: खेल हो या राजनीति, या फिर तकनीक और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र, सभी में महिलाएं अपनी भूमिका पूरी जिम्मेदारी और क्षमता के साथ निभा रही हैं, जिसके लिए देश ही नहीं ‘गृहलक्ष्मी’ भी उन पर गर्व महसूस करती है। इसलिए उनकी उपलब्धियों को इस मंच पर साझा करने का प्रयास किया गया है।

कुछ दशकों से तकनीकी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ गई है। इंटरसिटी स्मार्टबस की मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) अपराजिता मुखोपाध्याय टेक इंडस्ट्री में अपने प्रयासों की बदौलत आज एक ऐसे मुकाम पर मौजूद हैं जो अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा है और न सिर्फ प्रेरणा है बल्कि वह जुड़ाव, मेहनत और लगातार सीखते रहने की मिसाल भी हैं।

अक्सर बस में सफर के दौरान महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन अपराजिता और उनकी टीम ने बस यात्रा को महिलाओं के लिए सुरक्षित, आरामदायक और भरोसेमंद बनाने पर जोर दिया है। इसके लिए उन्होंने इंटरसिटी स्मार्टबस की शुरुआत की। उनका मानना है कि जब महिलाएं अकेले सफर करती हैं, तो उन्हें सबसे ज्यादा चिंता सुरक्षा, साफ-सफाई, समय पर बस मिलना और अनजानी जगहों पर फंस जाने की होती है। इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखकर अपराजिता ने इंटरसिटी स्मार्टबस की शुरुआत की।
इंटरसिटी स्मार्टबस की हर बस जीपीएस से ट्रैक होती है और 24&7 कमांड सेंटर से मॉनिटर की जाती है। यात्रियों के लिए सुरक्षित और साफ-सुथरे लाउंज बनाए गए हैं, जहां से सफर शुरू होता है। बसों में सीसीटीवी, प्रशिक्षित बस कैप्टन, साफ वॉशरूम और तय किए गए स्टॉप महिलाओं को भरोसा और सुरक्षा का अहसास कराते हैं। अपराजिता के लिए प्रेडिक्टेबिलिटी और डिग्निटी ये दो चीजें सबसे महत्वपूर्ण हैं। हर महिला यात्री को पता हो कि बस कहां से चलेगी, कब पहुंचेगी और सफर में कैसा माहौल रहेगा।
इसके लिए इंटरसिटी ने रियल-टाइम ट्रैकिंग, स्मार्टबस लाउंज और सटीक समय का भरोसा दिया है। वहीं, डिग्निटी का मतलब है- साफ वॉशरूम, शिष्ट व्यवहार और बिना किसी अव्यवस्था के यात्रा। अपराजिता का टेक इंडस्ट्री में 31 साल का लंबा सफर रहा है। इतने वर्षों में ऐसा समय भी आया जब उन्हें अपने करियर में कुछ खास सफलता नहीं मिली। लेकिन सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के प्रति उनका जुनून हमेशा उन्हें आगे बढ़ाता रहा। धीरे-धीरे उन्होंने उम्र के साथ अपने काम में टेक का नया आयाम जोड़ा। उनका मानना है कि टेक्नोलॉजी के साथ बने रहना आसान नहीं है। बदलते दिन के साथ टेक्नोलॉजी के कई बदलाव आते हैं जिन्हें लगातार सीखना पड़ता है।

अपराजिता बताती हैं कि आम बस स्टॉप अक्सर भीड़-भाड़, गंदगी और अंधेरे में असुरक्षित लगते हैं। जबकि इंटरसिटी के स्मार्टबस लाउंज यात्रियों को आराम और सुरक्षा दोनों देते हैं। यहां आरामदायक
बैठने की जगह, साफ टॉयलेट, मोबाइल चार्जिंग पॉइंट और स्टाफ की मदद मिलती है। महिलाएं खासकर रात के सफर में यहां खुद को सुरक्षित और सहज महसूस करती हैं। लंबी दूरी की बसों में
साफ टॉयलेट मिलना मुश्किल होता है। लेकिन इंटरसिटी ने इसे अपनी खासियत बना लिया है। हर बस में साफ और हाइजीनिक वॉशरूम उपलब्ध हैं।
अपराजिता के अनुसार, ‘कई महिलाएं हमें यही कहती हैं कि हमारी बसें चुनने की एक बड़ी वजह यही वॉशरूम सुविधा है।’ आजकल महिलाएं न सिर्फ नौकरी या पढ़ाई के लिए, बल्कि अपने सपनों और आत्म-खोज के लिए भी
यात्रा कर रही हैं। अपराजिता मानती हैं कि सुरक्षित इंटरसिटी बसों ने इस बदलाव को आसान बनाया है। जब महिलाओं को भरोसा मिलता है कि उनका सफर सुरक्षित और आरामदायक
होगा, तो वे बेझिझक नए अवसरों की तरफ बढ़ती हैं।’ वे खुद को अपडेटेड रखने के लिए रीडिंग और सेल्फ लर्निंग करती हैं, ताकि अपनी टीम से अच्छे से संवाद कर सकें। लेकिन असली प्रेरणा
उन्हें उन यंग टैलेंटेड लोगों से मिलती है

जिनके साथ वे रोज काम करती हैं। अपराजिता का मानना है कि टेक के क्षेत्र से जुड़ी महिलाएं हार्डकोर टेक भूमिका निभाने से शरमाती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह पुरुष प्रधान क्षेत्र है। जबकि उन्हें हर प्रकार की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपनी क्षमताओं का सदुपयोग
करना चाहिए।

अपराजिता का मानना है कि महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण है। हर महिला को हक है कि वह अपने तरीके से पढ़ाई करे, काम करे, दुनिया देखे और लोगों से जुड़े। भले ही समाज के लोग कहते हों कि महिलाओं के लिए आज का वक्त बदल गया है पर ये सोच सिर्फ जुबान पर है दिमाग पर नहीं। कहीं-न-कहीं आज भी घर से जब बेटी या बहू घर से बाहर जाती है तो उसकी सुरक्षा को लेकर चिंता बनी ही रहती है। लगातार महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों में कमी देखने को नहीं मिल रही। ऐसे में जब घर की महिला बसों या पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करती है तो उनकी
सुरक्षा को लेकर चिंता और अधिक बढ़ जाती है। इन सभी समस्याओं को देखते हुए मैंने महिलाओं को सुरक्षित यात्रा देने के इस प्रयास पर काम करना शुरू किया।

Mirabai Chanu is the real gold of Commonwealth Games 2025
Mirabai Chanu is the real gold of Commonwealth Games 2025

छोटी-छोटी सफलताएं किस तरह से बड़ी सफलता बनती है इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण मीराबाई चानू है। पूर्व विश्व चैंपियन मीराबाई चानू ने हाल ही में अहमदाबाद में हुए कॉमनवेल्थ वेट
लिफ्टिंग चैंपियनशिप 2025 में स्वर्ग पदक जीतकर शानदार वापसी की है। इससे पहले वह
टोक्यो ओलंपिक 2020 में देश के लिए सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। मीराबाई का जन्म 8 अगस्त
1994 को नोंगपोक काकचिंग, इंफाल, मणिपुर में एक मैतेई हिंदू परिवार में हुआ था।
मीरा को वजन उठाना शुरू से ही अच्छा लगता था और उनके परिवार को भी मीरा की इस ताकत का अहसास उनके कम उम्र में ही हो गया था। क्योंकि मीरा लकड़ियों के उन बड़े-बड़े गठ्ठरों को भी आसानी से उठा लेती थीं जिन्हें उनका भाई मुश्किल से ही उठा पाता था। आगे चलकर मीरा ने अपने परिवारवालों से वेटलिफ्टिंग में करियर बनाने की बात कही।
पहले तो परिवार ने मना कर दिया लेकिन अंत में उन्हें मीरा की जिद के आगे झुकना पड़ा। 2007 में मीरा ने प्रैक्टिस शुरू की।
11 साल की उम्र में मीरा अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन। 2016 में कुंजुरानी के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ते हुए मीरा ने 192 किलोग्राम वजन उठाया।
मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 49 किलोवर्ग के भारोत्तोलन
में गोल्ड मेडल जीता।

Became world chess champion at the age of 19
Became world chess champion at the age of 19

दिव्या देशमुख, फिडे महिला विश्व कप जीतने वाली मात्र 19 साल की भारतीय शतरंज ग्रैंडमास्टर हैं।
उन्होंने अखिल भारतीय फाइनल में अनुभवी ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी को टाईब्रे कर में हराकर न सिर्फ प्रतिष्ठित खिताब अपने नाम किया, बल्कि भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर भी बन गईं। दिव्या की यह सफलता भारतीय शतरंज के लिए एक स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत मानी जा रही है। दिव्या का जन्म 9 दिसंबर, 2005 को नागपुर में हुआ था। दिव्या देशमुख के मातापिता का नाम डॉ. जितेंद्र और डॉ. नम्रता है।
दोनों ही पेशे से डॉक्टर हैं। दिव्या ने केवल पांच साल की उम्र से ही शतरंज खेलना शुरू कर दिया था और जल्द ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उनकी उपलब्धियों का सफर 2012 में शुरू हुआ, जब उन्होंने सात साल की उम्र में अंडर-7 नेशनल चैंपियनशिप जीती। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2014 में डरबन में आयोजित अंडर1

0 विश्व युवा खिताब और 2017 में ब्राजील में अंडर-12 कैटेगरी में भी विश्व युवा खिताब अपने नाम किए। ये शुरुआती सफलताएं दिव्या के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बढ़ते कद का संकेत थीं। दिव्या ने 2023 में इंटरनेशनल मास्टर का खिताब प्राप्त किया, जो उनकी निरंतर प्रगति का प्रमाण था। 2024 में उन्होंने विश्व जूनियर गर्ल्स अंडर2 0 चैंपियनशिप में 11 में से 10 अंक जुटाकर शीर्ष स्थान हासिल किया।

(पिंकी नायक के साथ गृहलक्ष्मी टीम)