Parenting Tips: आजकल के माता-पिता की दुविधा थोड़ी ज्यादा ही बढ़ गई है, वह समझ नहीं पा रहे कि किस तरह, वह अपने बच्चों को मॉडर्न होने के साथ-साथ अपने संस्कारों से भी जोड़े रखें। आज के समय में पेरेंट्स को मुश्किलें तो हैं अपने बच्चों को संस्कारों से जुड़ा रखने में, पर नामुमकिन नहीं है। आज इस लेख में हम आपके साथ कुछ टिप्स साझा कर रहे हैं, जिसे अपना कर आप अपने बच्चों को मॉडर्न होने के साथ-साथ अपने संस्कारों से भी जोड़ कर रख सकते हैं। आईए जानते हैं इन टिप्स को;
अपनी भाषा सिखाएं
हमारे देश में भाषा और संस्कार दोनों ही समांतर चलते हैं। हमारे देश में लोक साहित्य, दादी-नानी की कहानियों के जरिए बच्चों को बहुत सा ज्ञान दिए जाने की संस्कृति है लेकिन धीरे-धीरे यह संस्कार कम या खत्म होता जा रहा है। आज का मॉडर्न समय कान्वेंट स्कूल और अंग्रेजी भाषा के वर्चस्व में है। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को सिर्फ अंग्रेजी सीखने के फेर में अपनी भाषा को तिलांजलि दे रहे हैं, या दे चुके हैं। ऐसे में जब लोक भाषा नहीं नहीं है, तो लोक कथाएं कहां से प्रचलित रहेंगी।
माता-पिता को अपने बच्चों के शिक्षा के दौरान यह याद रखना चाहिए कि अंग्रेजी केवल एक भाषा है, जिसे समय के साथ चलने के लिए सिखाना जरूरी है, परंतु अपने बच्चों में संस्कारों को जीवित रखने के लिए अपने लोक भाषा को सिखाना, बोलना और समझना आवश्यक है।
त्योहारों में बच्चों की उपस्थित

आजकल बच्चों के लिए त्योहार केवल स्कूल में छुट्टी के एक दिन के समान है। इसमें सारी गलती बच्चों की नहीं। माता-पिता, अध्यापकगण, समाज सब की समान रूप से है। ‘पहले पढ़ लो, त्योहार तो हर साल आते हैं, पर यह समय बार-बार नहीं आता’ बस इस एक सोच ने बच्चों के अंदर से त्योहार की खुशी को एक छुट्टी तक सीमित कर दिया है। आप अपने बच्चों को त्योहारों के महत्व के बारे में समझाएं। उससे जुड़ी कहानियों से उनका परिचय कराएं तथा त्योहार से जुड़ी तैयारी में उन्हें अपने साथ रखें तथा उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करें। त्योहार हमारे संस्कार हैं। बच्चे जब संस्कारों में भाग लेंगे, तभी संस्कारों को समझेंगे और सीखेंगे।
समाज और प्राकृतिक के प्रति संवेदना
आज के समय में टेक्नोलॉजी के वर्चस्व में बच्चे समाज के महत्व को नहीं समझ पा रहे हैं। उनका ज्यादातर समय घर के एक बंद कमरे में फोन या टीवी के साथ बिताता है। ऐसे में समाज और उनके बीच एक कटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिस कारण वह सामाजिक स्थितियों से चाहे तो अवगत नहीं होते या होते हैं तो वह नहीं जानते कि उन्हें किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। सच कहा जाए तो आज के समय में हमारे मॉडर्न बच्चे स्कूल, ट्यूशन या नई-नई स्किल डेवलपमेंट क्लास में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास परिवार, दोस्त या समाज को देने के लिए समय ही नहीं है।
जब हम उन्हें संवेदनाएं सीखने का समय ही नहीं दे रहे तो संवेदना होगी कैसे। माता-पिता को यह समझना आवश्यक है, बच्चों को अपने संस्कारों से बांधे रखने के लिए शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान देना भी जरूरी है।
परिवार का महत्व
मॉडर्न समय में शैक्षणिक ज्ञान का प्रेशर ज्यादा है। आज माता-पिता का ध्यान इस बात पर ज्यादा है कि कुछ भी छूट जाए जैसे; त्योहार, शादी, परिवार से मेल-मिलाव, सगे-संबंधियों का साथ, पर स्कूल, ट्यूशन नहीं छूटना चाहिए। जब आप अपने बच्चों को परिवार के साथ एकत्रित होने का, परिवार से मिलकर खुशियां साझा करने का महत्व ही नहीं समझा रहे, तो संस्कारों में तो कमी आएगी।
अपने बच्चों को पारिवारिक कार्यक्रम में अपने साथ रखें तथा उस कार्यक्रम के महत्व और जरूरत दोनों के बारे में समझ दे। ताकि वह बड़ा होकर अपनी नौकरी से ज्यादा परिवार के साथ एकत्रित होकर समय बिताने के महत्व को समझे। जब आप उसके बचपन में परिवार के महत्व का संस्कार उसे देंगे, तभी वह बड़ा होकर इस संस्कार का पालन करेगा।
शिक्षा हर युग में महत्वपूर्ण रहा है,आज भी है। पर आज सम्पूर्ण शिक्षा को नहीं, बस कुछ एक ज्ञान को मॉडर्न होने के चिन्ह के रूप में अपनाया गया है। आप भी मॉडर्न होना चुने, लेकिन वास्तविक शिक्षा को ना भूले और व्यावहारिक शिक्षा का ही एक रूप है, संस्कार। जो हमारे परिवार और समाज से हमें मिलता है।
