Parenting Tips
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Parenting Tips: आमतौर पर बच्चों को मासूम, भोला-भाला और दुनियादारी से अनजान माना जाता है और बच्चे होते भी हैं, लेकिन जब वही बच्चे झूठ बोलते मिलें, तो सवाल उठ ही जाता है कि बच्चे झूठ क्यों बोलते हैं।

आमतौर पर बच्चों को मासूम, भोला-भाला और दुनियादारी से अनजान माना जाता है और बच्चे होते भी हैं, लेकिन जब वही बच्चे झूठ बोलते मिलें, तो सवाल उठ ही जाता है कि बच्चे झूठ क्यों बोलते हैं। इस सवाल के जवाब की शुरुआत एक पुराने चुटकुले से करते हैं। एक सज्जन किसी के यहां उनसे मिलने पहुंचे। बाहर उनका बच्चा खेल रहा था। स्वाभाविक रूप से उन सज्जन ने बच्चे से पूछा कि क्या पापा घर पर हैं। अभी देखकर बताता हूं, कहकर बच्चा घर के अंदर चला गया और दो मिनट बाद ही बाहर आकर बोला, अंकल पापा कह रहे हैं कि जाकर कह दो कि पापा घर पर नहीं हैं। हालांकि यह बच्चे द्वारा बोला गया बल्कि कहा जाए कि बुलवाया गया झूठ नहीं, बल्कि सच है, लेकिन इसी सच में झूठ के बीज छुपे हुए हैं।

जब पेरेंट्स ही झूठ बोलें

बच्चे के द्वारा झूठ बोलने का दूसरा कारण है, डर। कुछ परिवारों में पिता या मां की ऐसी कठोर छवि बन जाती है कि उनसे बच्चों को डर लगने लगता है। पिता या मां यह समझते हैं कि डर के कारण बच्चा अनुशासित रहेगा, उनके कंट्रोल में रहेगा, लेकिन यह डर बच्चे के अंदर झूठ बोलने की आदत विकसित करने का कारण बन जाता है।
उदाहरण के लिए बिल्लू के एग्जाम में कुछ कम नंबर आए। बस घर पर जैसे ही उसने मार्कशीट दिखाई, पिताजी जुट गए और बिल्लू की तबीयत से पिटाई हुई। अब बिल्लू का छोटा भाई पप्पू यह दृश्य देख रहा था और वह इस दृश्य को देखकर इतना डर गया कि जब उसका रिजल्ट मिला तो घर आकर उसने सीधे यही कहा कि उसकी मार्कशीट तो रास्ते में कहीं गिर गई। हालांकि बात तो बाद में खुलनी ही थी और जब खुली तो जाहिर है कि उसकी भी तबीयत से खबर ली गई। लेकिन इस बार पप्पू को यह समझ में आ गया कि झूठ बोलना भी है तो ऐसा कि पकड़ा ना जाए। फिर धीरे-धीरे झूठ बोलने में वह इतना  माहिर हो गया कि मां-बाप क्या लाई डिटेक्टर तक धोखा खा जाएं।

आत्मविश्वास में कमी

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Lack of confidence in the child is the third reason for the habit of lying

बच्चे में आत्मविश्वास की कमी झूठ बोलने की आदत  का तीसरा कारण है। हर आदमी में कुछ ना कुछ कमी तो होती ही है। कोई मि. परफेक्ट नहीं होता तो जाहिर है कि बच्चे में भी कोई ना कोई कमी हो सकती है। अब अगर उसमें इतना आत्मविश्वास नहीं है कि वह अपनी कमी को स्वीकार कर सके तो वह उस कमी को छुपाने के लिए झूठ बोलना शुरू कर देता है।
रमेश को ही लीजिए। रमेश शरीर से कुछ ज्यादा ही दुबला पतला था, इस वजह से किसी भी खेल में वह जल्दी थक जाता था।
इस पर उसके साथी कभी-कभी उसका मजाक उड़ाते थे। जैसे ही उसे लगा कि उसके साथी उसके जल्दी थक जाने के कारण उसका मजाक उड़ाते हैं तो वह खेल के मैदान में जाने से ही कतराने लगा और टीचर के कहने पर बहाना करने की आदत डाल ली। कभी कहता कि उसे कल रात बुखार आ गया और कभी कहता कि उसे घर जल्दी जाना है क्योंकि घर में उसकी बुआ आई हुई है।
इसी तरह अंजलि को वैसे तो बहुत सारी कविताएं याद थीं लेकिन उसमें यह आत्मविश्वास नहीं था कि वह उन्हें ठीक से किसी के सामने सुना पाएगी। इसी वजह से अगर कभी उसकी मां उसे किसी के सामने कविता सुनाने को कहती तो मम्मी अभी मुझे बहुत सारा होमवर्क करना है, कहकर वह कविता सुनाने से बच जाती थी।

अब तो लत लग गई

बच्चे में झूठ बोलने की आदत जब बढ़ जाती है, तो वह इतना माहिर हो जाता है कि उसे सबसे ज्यादा झूठ बोलने में मजा आता है। बड़े होने के बाद भी उसमें यह आदत जाती नहीं है। कभी वह अपनी बात में वजन लाने के लिए झूठ बोलता है, तो कभी अपने आपको अच्छा, सच्चा और ईमानदार साबित करने के लिए झूठ बोलता है। कभी अपने विरोधी को नीचा दिखाने के लिए झूठ बोलता है, तो कभी अपना काम बनाने के लिए झूठ बोलता है।
अपने छोटे-मोटे स्वार्थ सिद्ध करने के लिए झूठ बोलना तो उसकी स्वाभाविक आदत बन जाती है। यह अलग बात है कि जब झूठ खुलता है तो ना केवल उसे शॄमदा होना पड़ता है, वरन् आगे के लिए उस पर से लोगों का विश्वास भी उठ जाता है।
लोग बेशक कहें कि सच्चाई का जमाना नहीं है, लेकिन सच्चाई यही है, कि झूठ के पांव नहीं होते और अगर यही बात बचपन में ही बच्चे के मन में स्थापित कर दी जाए तो निश्चित रूप से उसका विकास बेहतर होगा।
इसके लिए सबसे पहली आवश्यकता तो इस बात की है कि परिवार के लोग चाहे वह मां-बाप हों या अन्य बड़े, उसके सामने ऐसे उदाहरण पेश न करें जिससे झूठ बोलने की स्वीकार्यता को बल मिलता हो। बहुत संभव है की व्यवहारिक जीवन में किन्हीं विशेष परिस्थितियों में, उन्हें अपने ऑफिस या समाज में झूठ बोलना पड़े, लेकिन कम-से-कम उसका जिक्र तो बच्चों के सामने भूल कर भी नहीं करना चाहिए। 

समझें बच्चे की मनोभावना

Parenting Tips: Understand the child's feelings
Understand the child’s feelings

बच्चे के अंदर अगर कोई कमी है, तो कोई ना कोई विशेषता भी जरूर होगी। मतलब शरीर से कमजोर बच्चा मैथ में बेहद तेज हो सकता है और मैथ में कमजोर बच्चा में डांस में बहुत अच्छा परफार्मर हो सकता है। तो उसकी उस विशेषता को पहचान कर और उसे एहसास दिला कर कि अगर उसमें फलानी कमी है तो क्या हुआ कमी तो सभी में होती है, लेकिन उसमें अमुख विशेषता भी तो है, कहकर उसे उसी उसकी विशेष योग्यता वाले क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया जाए और उसे समझाया जाए की कमी होना कोई अपराध नहीं है, सभी में कोई ना कोई कमी होती है, उसमें आत्मविश्वास पैदा करेगा और वह पूरे आत्मविश्वास से सच बोल सकेगा।
डर कभी भी अच्छा हथियार साबित नहीं होता। स्वयं को कठोर अभिभावक के रूप में बच्चे के सामने प्रस्तुत करके बेशक आप यह समझें कि बच्चा इससे अनुशासित रहेगा, आपकी बात बिना ना नुकर के मानेगा तो ये आपकी बड़ी भूल होगी। इससे या तो वह इतना दब्बू हो जाएगा कि अपनी समस्या किसी के सामने कह ही नहीं पाएगा या उसके अंदर ही अंदर एक विद्रोह पनपने लगेगा, जिसका जब भी विस्फोट होगा तो वह ना बच्चे के लिए हितकारी होगा ना ही समाज के लिए, दूसरी ओर कभी-कभी बच्चे के मन में बैठा यह डर इस सीमा तक बैठ जाता है कि वह मानसिक रूप से बीमार हो सकता है।
एक और बात जो बेहद जरूरी है, वह है बच्चे के अंदर अपने मां-बाप के प्रति विश्वास पैदा होना। बचपन से ही अगर बच्चे को यह एहसास करा दिया जाए कि वह अगर अपनी गलती छिपाएगा नहीं और मां-बाप को सच सच बता देगा तो मां-बाप न केवल उसे माफ कर देंगे, बल्कि उसकी गलती को सुधारने का मौका भी उसे देंगे तो बच्चे के मन में सच बोलने के प्रति विश्वास पैदा हो जाता है।
बच्चे से किसी भी काम में गलती हो जाना उतना ही स्वाभाविक है, जितना हम सब से। कोई भी व्यक्ति वह किसी भी उम्र का हो, गलती कर ही सकता है, ऐसे में बच्चों को शुरू से ही यह समझाना कि बेटा गलती करना पाप नहीं है, लेकिन गलती को छुपाना या उसके लिए झूठ बोलना पाप है, अगर गलती करके गलती बता दोगे तो हम सब मिलकर उसे सुधारने की कोशिश करेंगे, बच्चे के अंदर मां बाप के प्रति विश्वास पैदा करता है। इससे न केवल वह गलती छुपाने के लिए झूठ नहीं बोलता, वरन  गलती को कैसे सुधारना है, इस दिशा में भी उसके अंदर सोच जागृत होता है। झूठ बोलने की आदत विकसित ना हो इसके लिए मां-बाप के अतिरिक्त बच्चे के टीचर की भी बहुत बड़ी भूमिका है।
क्योंकि मां-बाप के बाद बच्चा न केवल सबसे ज्यादा अपनी टीचर के संपर्क में रहता है वरन  सबसे ज्यादा टीचर से ही सीखता भी है और टीचर के व्यक्तित्व को फॉलो भी करता है। बच्चे की प्रॉब्लम को समझे बिना टीचर के द्वारा उसके प्रति अनुशासनात्मक कार्यवाही या डांट डपट बच्चे को झूठ बोलने पर मजबूर कर देती है और फिर धीरे-धीरे यह उसकी आदत में शामिल हो जाता है।
झूठ बोलना किसी समस्या का हल नहीं है और एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। इसकी जगह अगर सच बोला जाए, अपनी प्रॉब्लम  या अपनी कमी को स्पष्ट बता दिया जाए तो रास्ता खोज सकते हैं। बस इसी बात का बच्चे को विश्वास दिलाना, बच्चे के अंदर झूठ बोलने की आदत को दूर कर सकता है और यह सब बच्चे के साथ दोस्त बनकर बात करने से ही संभव है।

शान समझते हैं झूठ बोलना

कभी-कभी बच्चे दूसरे बच्चों के सामने अपनी आर्थिक स्थिति या पैरेंटल स्टेटस छुपाने के लिए और अपनी शान दिखाने के लिए भी झूठ बोलते हैं। जैसे हमारी ही कॉलोनी में एक सामान्य रोड कांस्टेबल का लड़का राजू अपने दूसरे दोस्तों के सामने यही हांकता था कि उसके पिता थानेदार हैं और वह किसी को भी कभी भी बंद करा सकता है। इससे उसका रौब भी पड़ता था और उसके दोस्त भी उससे ठीक व्यवहार रखते थे। यही नहीं अपने आपको पैसे वाला बड़ा आदमी सिद्ध करने के लिए वह यह भी कहता था कि शहर में बेशक उसके पास किराए का मकान है, लेकिन गांव में उसके पास 50 बीघा खेत और तीन पक्की हवेलियां है। स्पष्ट है कि अपने घर की कमजोर आर्थिक स्थिति या पिता की सामान्य नौकरी की हीन भावना ने रमेश को झूठ बोलने को मजबूर किया।

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