अरे राहुल कितनी बार मना किया है कि बारिश के पानी में मत खेलो तबियत खराब हो जाएगी लेकिन ये लड़का कोई बात सुनता ही नहीं है । सौम्या ने अपने बेटे राहुल को फिर से झुंझलाते हुए डांट लगा दी और राहुल अपनी मस्ती में पानी से खेलता रहा।
आमतौर पर ऐसा माना जाता है की बच्चों को जिस चीज़ के लिए मना किया जाता है वो वही करते हैं और बच्चों के ऐसे व्यवहार से माता -पिता भी अपना धैर्य खो देते हैं। अपने काम के प्रेशर की वजह से झुंझलाए हुए माता-पिता बच्चों के इस व्यवहार की वजह से ज्यादा चिढ़चिढे हो जाते हैं और बच्चों के साथ ज्यादा सख़्त रवैया अपना लेते हैं। परिणामस्वरूप बच्चों और माता-पिता के बीच की दूरियां बढ़ने लगती हैं। आइए आपको बताते हैं पेरेंटिंग के कुछ ऐसे टिप्स जिनकी वजह से आपके और बच्चे के बीच की बॉन्डिंग और ज्यादा स्ट्रांग हो जाएगी।
दूसरे बच्चों के साथ तुलना न करें
एक हाथ की सभी उंगलियां बराबर नहीं होती हैं। उसी तरह हर बच्चा दूसरे बच्चे से अलग ही होता है। ज़रूरी नहीं है कि आपका बच्चा एक्स्ट्राऑर्डिनरी हो ऐसा भी हो सकता है कि वो पढ़ाई में सामान्य हो लेकिन खेलकूद और अन्य एक्टिविटीज़ में नंबर वन हो। ऐसे में अपने बच्चे की अन्य बच्चों से तुलना करने की बजाय उसके हुनर को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए और निरंतर उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए।
नकारात्मक शब्दों का प्रयोग न करें
ऐसा माना जाता है कि बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। नकारात्मक शब्दों का प्रयोग बच्चों के कोमल मन को झकझोर कर रख देता है और बच्चे हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं। तुमसे कुछ नहीं होगा , तुम जो भी करते हो ग़लत ही करते हो, खुद पर थोड़ी शर्म करो जैसे नकारात्मक शब्दों का प्रयोग बच्चों से नहीं करना चाहिए इससे बच्चे मानसिक रूप से टूट जाते हैं और अपने आपको बेकार समझने लगते हैं।
बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें
आजकल की भागदौड़ की जीवनशैली में सामान्यतौर पर माता-पिता दोनों ही वर्किंग होते हैं ऐसे में बच्चों को पूरा टाइम दे पाना मुश्किल हो जाता है जिसकी वजह से वो अपने आपको इग्नोर फील करने लगते हैं । ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वो बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश करें जैसे वीकेंड में बच्चों की मनपसंद जगह पर घूमने जाएं। खाने में या कपड़ों में बच्चों की पसंद नापसंद का भी ध्यान रखें।
ज्यादा से ज्यादा कम्युनिकेशन होना चाहिए
कोशिश करनी चाहिए की बच्चों और माता -पिता के बीच किसी तरह का कम्युनिकेशन गैप न हो। बच्चों के साथ बैठकर ज्यादा से ज्यादा बातें करें और उनसे दिनभर की गतिविधियों के बारे में पूछें। खासतौर पर किशोरावस्था की तरफ बढ़ते हुए बच्चों से ज्यादा से ज्यादा बातें करें और उनकी जिज्ञासा को जानने का प्रयास करें। किशोरावस्था ऐसी अवस्था है जिसमे हार्मोन्स में परिवर्तन होता है और मन में बहुत सारे सवाल होते हैं जिनके जवाब बच्चा बाहर ढूंढ़ता है और कई बार ग़लत रास्ते पर चला जाता है। माता -पिता को चाहिए कि बच्चों का सबसे करीबी दोस्त बनकर उनकी सभी समस्याओं का समाधान करें। बच्चों के साथ ऐसी बॉन्डिंग बना के रखें कि वो हर एक बात आपसे शेयर करे।