Krishna Paksha and Shukla Paksha: हिंदू पंचांग में तिथियों का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म के सभी व्रत त्योहार तिथियों के अनुसार ही मनाएं जाते हैं। इन तिथियों की गणना चंद्रमा की गति के आधार पर की जाती है। हिंदू वर्ष के हर महीने में 30 दिन होते हैं। महीने के 30 दिनों को दो पक्षों में बांटा गया है। हर पक्ष में 15 दिन होते हैं। अमावस्या से पूर्णिमा तक के पक्ष को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के 15 दिन तक चंद्रमा का आकार घटता रहता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक के पक्ष को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। शुक्ल पक्ष के 15 दिन तक चंद्रमा का आकार बढ़ता रहता है। धार्मिक ग्रंथों में कृष्ण पक्ष में किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही है। जबकि शुक्ल पक्ष शुभ माना गया है। आज इस लेख के द्वारा हम चंद्रमा के दोनो पक्षों के शुरू होने के पीछे की पौराणिक कथा के बारे में जानेंगे।
कृष्ण पक्ष की पौराणिक कथा
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों के साथ विवाह किया था। दक्ष प्रजापति की ये 27 पुत्रियां ही महीने के 27 स्त्री नक्षत्र हैं। विवाह के बाद चंद्रदेव सिर्फ रोहिणी के साथ ही ज्यादा समय बिताते थे। बाकि की सभी 26 पत्नियों पर ध्यान न देने के कारण सभी ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्रदेव की शिकायत कर दी। सभी 26 पुत्रियों ने अपने पिता से कहा कि चंद्रदेव उन सभी को समय नहीं देते और अपना पति धर्म नही निभाते। सभी पुत्रियों की बात सुनकर दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव से इस समस्या को सुलझाने के लिए कहा। लेकिन चंद्रदेव ने दक्ष प्रजापति की बात नहीं मानी और चंद्रदेव रोहिणी के साथ ही ज्यादा समय बिताते रहे।
जब दक्ष प्रजापति को फिर से पता चला कि चंद्रदेव अब भी अपनी अन्य पत्नियों के साथ भेदभाव कर रहें हैं तब क्रोध में आकर दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को क्षय रोग होने का श्राप दिया। जिसके कारण चंद्रदेव के मुख का तेज धीरे धीरे फीका पड़ता गया। तभी से कृष्ण पक्ष की शुरुआत हुई। जिसमें चंद्रमा का तेज धीरे धीरे कम होता रहता है।
शुक्ल पक्ष की शुरुआत
श्राप के कारण चंद्रदेव का प्रकाश कम होने लगा, जिसके कारण चंद्रदेव ने परेशान होकर ब्रह्मदेव से सहायता मांगी। ब्रह्मदेव के सुझाव से चंद्रदेव ने शिव जी की आराधना की। चंद्रदेव की आराधना से प्रसन्न होकर शिव जी ने चंद्रदेव को अपने जटाओं में धारण किया। जिससे चंद्रदेव का तेज वापस लौटने लगा। लेकिन यह तेज सिर्फ 15 दिनों तक ही रहा। क्योंकि दक्ष एक प्रजापति थे, इसलिए उनके श्राप से मुक्ति नहीं मिल सकती थी। शिव जी ने दक्ष प्रजापति के श्राप में बदलाव कर चंद्रदेव को महीने के 15 दिन के लिए तेज वापस लौटाया। इसी कारण शुक्ल पक्ष की शुरुआत हुई।
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