Gangajal Astro Tips: हिन्दू धर्म में गंगा जल को अत्यधिक मान्यता प्राप्त है और इसे पवित्रता, शुभता, और मोक्ष के प्रति प्रेम का प्रतीक माना जाता है। गंगा नदी को माँ गंगा के रूप में पूजा जाता है और इसे भगवान शिव की तांडव नृत्य की धारिणी माना जाता है। गंगा जल को सबसे पवित्र मानकर, हिन्दू धर्म में इसका सेवन धार्मिक कर्मों, पूजा-अर्चना, और यात्राओं में किया जाता है। गंगा स्नान को पावन करार दिया जाता है और लोग इसे अपने प्रार्थनाओं, व्रतों, और पूजाओं के लिए ब्रज, सोने, ताम्र, और चाँदी के पात्रों में रखने का प्रयास करते हैं।
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जिसे संबोधित करते हुए ‘गंगा मैया’ या ‘गंगा माता’ कहा जाता है। गंगा जल एकमात्र विश्वव्यापी ऐसा जल हैं जो कभी सड़ता नहीं, लाखो टन हड्डियां गंगा में यू ही छोड़ दी जाती हैं फिर भी गंगा सर्वोपवित्र ही रहती हैं। इसका कारण गंगा जल में पाया जाने वाला पारा और गंधक इस जल को सड़ने नहीं देता पारा के कुछ यौगिक जैसे पारद ये हड्डियों को गलाने का काम करते हैं और विशेष तौर से इसे एंटी-बैक्टीरियल भी बना देते है। इस पानी में सल्फर का होना इसे एंटी-फंगल भी बना देता हैं।
ऐसी मान्यता है,कि गंगा में डुबकी लगाने एवं स्नान करने से व्यक्ति के सभी अपने सभी पापो से मुक्त हो जाता है। इस दौरान लोग गंगा जल अपने घर भी लाते है। मगर ऐसे में कुछ लोग इसे प्लास्टिक की बोतल में या किसी भी प्रकार के पात्र में गंगा जल लेकर आ जाते हैं। जो अशुभ माना जाता है। यदि गंगा जल को नियम और विधि विधान के साथ न रखा जाए तो इसके परिणाम बर्बादी की ओर अग्रसर होते हैं:
गंगाजल को किस बर्तन में रखना शुभ माना जाता है?
ताम्र (ताम्रायण)
ताम्र पत्र या ताम्र बर्तन (ताम्रायण) में गंगा जल को रखना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। ताम्र को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है और इसे पूजा-अर्चना के लिए उपयोग किया जाता है। गंगा जल को शुभ माना जाता है जब इसे ताम्र पात्रों में रखा जाता है। ताम्र से बने पात्रों में गंगा जल को रखकर इसे धार्मिक एवं सांस्कृतिक संरक्षण के लिए सुरक्षित रखा जाता है। ताम्र पत्र में गंगा जल रखना एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथा है जो आदिकाल से चली आ रही है। पूजा के दौरान संकल्प लेते समय गंगाजल को प्रयोग में लाना चाहिए और इसे हमेशा कांसे या तांबे (तांबे के लोटे का उपाय) के बर्तन में ही रखना चाहिए। इसे बेहद पवित्र माना जाता है।
सोना और चाँदी
सोने और चाँदी के पात्रों में भी गंगा जल को रखना शुभ माना जाता है। इन मेटल्स को हिन्दू धर्म में पवित्रता के प्रति आदर्श माना जाता है। यही कारण है कि तीज-त्योहरों और धार्मिक अवसरों पर बड़ी लाखो करोडों की मात्रा मे लोग गंगा तट पर स्नान एवं डुबकी लगाने जाते हैं,और अपने साथ पवित्र गंगाजल लेकर घर जाते हैं। सोने के पात्रों में गंगा जल को रखने से शुभता और समृद्धि का संकेत होता है। यह पात्र धन, सौभाग्य, और कल्याण का प्रतीक माने जाते हैं। सोने और चाँदी में इसे रखकर ध्यान, पूजा, जप, या किसी धार्मिक क्रिया के दौरान उपयोग करने से आशीर्वाद मिलता है। भारतीय परंपरा में गंगा को बेहद पवित्र माना जाता है। गंगा जल का सेवन हिन्दू धर्म में आत्मशुद्धि, पापमुक्ति, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय माना जाता है।
पार्थिव (भूमि) पात्र
कुछ स्थानों पर गंगा जल को पार्थिव (भूमि) पात्र में रखने का अनुसरण किया जा सकता है। इसमें भूमि से बने पात्र का उपयोग किया जाता है। इन पात्रों का उपयोग गंगा जल को पवित्रता, शुभता, और सकारात्मक ऊर्जा से भर देने के लिए होता है, और इसे धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों में उपयोग करने का एक प्रमुख तरीका है। पार्थिव (भूमि) पात्र हिन्दू धर्म में पवित्रता के प्रति आदर्श में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन को उपयोग करना धार्मिक और श्रद्धांजलि के कार्यों में आदर्श माना जाता है। इन पत्रों में गंगा का जल पूजा, धार्मिक अनुष्ठानों, विवाह, श्राद्ध, अन्तिम संस्कार, आदि में उपयोग किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा स्वर्ग से बहती है।
गंगाजल को प्लास्टिक के डिब्बे या बोतल में रखना कितना सही?
गंगाजल को कभी भी प्लास्टिक के डिब्बे में नहीं रखना चाहिए। गंगा जल को प्लास्टिक में रखने से बचने के कई कारण हो सकते हैं। पहले तो, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में गंगा जल को ताम्र, सोने, चांदी जैसे पवित्र धातुओं में ही रखने की प्राथमिकता होती है।
दूसरे, प्लास्टिक का उपयोग पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है और यह जल को प्रदूषित कर सकता है। प्लास्टिक द्रव्य से निकलने वाले रासायनिक सतहों के कारण जल में कठिनाईयाँ आ सकती हैं और प्राकृतिक संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए, गंगा जल को प्राकृतिक और पवित्र धातुओं में रखना धार्मिक और पर्यावरण संरक्षण के दृष्टि से उत्तम होता है।
इस प्रकार, गंगा जल को सोने, चांदी, और ताम्र के पात्रों में रखना हिन्दू धर्म में एक श्रेष्ठ और पुरातात्विक परंपरा है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। कांसे और तांबे को शुद्ध, पवित्र धातु माना जाता है जो पानी को प्राणिक ऊर्जा से भर देती है। गंगा माँ को पवित्रता और मोक्ष का प्रतीक माना जाता है, और इसे श्रद्धाभावपूर्वक और सावधानी से संरक्षित रखना चाहिए।
इसे पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। सच्चाई और ईमानदारी का पालन करना हमेशा शुभ कार्यों और संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है। अगर आप किसी पात्र में गंगाजल भर रहे हैं, तो इस दौरान कुछ मंत्रों का जाप करना बेहद जरूरी माना जाता है। गंगाजल भरने के दौरान मंत्र का जाप गंगा जल भरते समय व्यक्ति अपनी भक्ति और श्रद्धांजलि व्यक्त करने के लिए मंत्रों का जाप कर सकता है।
