Pitru Paksha 2023: काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है। यह वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे संसार के सबसे पुराने नगरों में से माना जाता है। ऐसा कहा जाता हैं कि यहीं से भगवान शिव ने सृष्टि रचना का प्रारंभ किया था। जो इंसान यहां अंतिम सांस लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हिंदू धर्म में पितरों की पूजा का अधिक महत्व माना गया है। हर साल पितृपक्ष के 15 दिन बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पंचांग के अनुसार इस साल पितृपक्ष 19 सितंबर 2023 से 14 अक्टूबर 2023 तक रहेगा। इन 15 दिनों में पितरों की आत्मा की शांति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए विधि विधान से श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष के दौरान काशी में स्थित पिशाच कुंड के पास हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं।
काशी जिसे मोक्ष की नगरी कहा जाता है वहां पितरों की आत्मा की शांति के लिए अनेक प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं। यहां की ऐसी मान्यता है कि काशी के चेतन गंज थाने के पास स्थित पिशाचमोचन कुंड के पास पूर्वजों को अकाल मृत्यु और प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए विशेष अनुष्ठान किया जाता है।यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद मुक्ति मिल जाती है।
काशी के पिशाच मोचन कुंड का महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार काशी या फिर वाराणसी में स्नान ध्यान और दान आदि का अधिक महत्व है। लेकिन इस प्राचीन नगरी में सबसे ज्यादा महत्व पितरों की पूजा का है। यही कारण है कि हर साल पितृपक्ष आते ही यहां लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। काशी के पिशाच मोचन कुंड की मान्यता यह है कि इस कुंड में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से भटकती आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है।
पितृ पूजा : पिशाच मोचन कुंड पूर्णमासी यानी पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से पितृ पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। पूर्णिमा के दिन यहां लाखों श्रद्धालु अग्नि के पास में पितृ पूजा करने आते हैं, जिससे कि उनके पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति मिल सके।
स्नान का महत्व: यह घाट वाराणसी में स्नान के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां की ऐसी मान्यताएं हैं की यहां स्नान करने से व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित होता है और शुद्धिकरण हो जाता है।
गुरु पुराण में पिशाच मोचन कुंड का वर्णन
गुरु पुराण में भी पिशाच मोचन कुंड का वर्णन मिलता है। काशी खंड की मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। कुंड के किनारे बैठकर अकाल मृत्यु के शिकार हुए पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
मान्यता के अनुसार यहां कुंड के पास एक पीपल का पेड़ है जिसको लेकर ऐसा कहा गया है कि इसपर असंतुष्ट आत्माओं को बैठाया जाता है। इसके लिए पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें।