Kanwar Yatra 2023: सावन का महीना बहुत ही पावन माना जाता है। हिंदू धर्म में इस महीने का खास महत्व है। इस साल सावन का पर्व 4 जुलाई से शुरू होने वाला है। इसके साथ ही कांवड़ यात्रा की भी शुरूआत हो जाती है। इस साल मलमास की वजह से सावन का महीना दो महीने तक माना जाएगा। धर्म शास्त्रियों की मानें तो ये योग 19 सालों के बाद बना है।
19 सालों के बाद 2 महीने का सावन आया है। इन वजहों से इस साल ये महीना और भी खास माना जा रहा है। इस मौसम में होने वाली कांवड़ यात्रा का भी अपना एक विशेष महत्व है। श्रद्धालु इस महीने में कठीन कांवड़ यात्रा करके अपने भोलेनाथ को प्रसन्न करते हैं। इस यात्रा का जीवन पर बहुत ही खास असर पड़ता है। माना जाता है इससे जीवन के कई कष्ट दूर हो सकते हैं।
कौन था पहला कांवड़िया

क्या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर इस धरती का पहला कांवड़िया कौन था। आज के हमारे इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर इस धरती का पहला कांवड़िया किसे माना जाता है। इसका इतिहास क्या है।
श्रवण कुमार था पहला कावड़ यात्रा
शास्त्रों की मानें तो इस धरती का पहला कांवड़िया श्रवण कुमार को माना जाता है। दरअसल इस बात का जिक्र रामायण में मिलता है। रामायण में इस बात का उल्लेख है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता के साथ पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। ये वही श्रवण कुमार हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता को तीर्थ कराने के लिए उन्हें कांवड़ से अपने कंधों पर उठाया था।
श्रवण कुमार ने कांवड़ पर बिठाकर अपने माता-पिता को हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया था। उनकी इस यात्रा को दुनिया की पहली कांवड़ यात्रा माना जाता है। बाद में ये सावन मास और शिव पूजन से जुड़ गई।
परशुराम ने भी की कावड़ यात्रा

इसके अलावा एक और कहानी का जिक्र मिलता है, जो कावड़ यात्रा के इतिहास के बारे में बताती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार परशुराम को दुनिया का पहला कांवड़िया माना जाता है। भगवान परशुराम जी ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाकर पूजा की थी।
श्री राम ने भी की थी कावड़ यात्रा
बहुत से लोग इस बारे में नहीं जानते कि श्री राम ने भी कावड़ यात्रा की थी। भगवान राम ने परशुराम जी के बाद कांवड़ यात्रा की थी। जिसके बाद उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। मान्यताएं कहती हैं कि राम जी ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरा था। इसके बाद उन्होंने बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। आज भी इस मंदिर में कांवड़ियों की भारी भीड़ उमड़ती है।
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रावण भी कर चुका है कावड़ यात्रा

आपको जानकर शायद हैरत हो सकती है कि रावण ने भी कांवड़ यात्रा की थी। ऐसी मान्यताएं हैं कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने हलाहल विष पिया था, जिसके बाद उनके कंठ में जलन होने लगी थी। उस वक्त भगवान शिव की पीड़ा को शांत करने के लिए रावण कावड़ में भरकर शीतल जल शिवजी के लिए लाए थे।
