सपनों के रंगों से खुशियां बिखेरती कला चितेरी: Kshama Urmila Journey
Kshama Urmila Journey

Kshama Urmila Journey: हाथों में कूची, चश्मे से झांकती, आंखों में छिपे दर्द के सैलाब से उपजी, चेहरे पर स्मित मुस्कान,  समेटे हुये क्षमा उर्मिल से मिलने जब मैं उनके घर पहुंची तो अंदर जाते ही ड्राइंग रूम और कमरे की दीवारों पर चारों तरफ करीने से सजी पेंटिंग्स, कैनवास, ब्रश, कलर्स, मूर्तियां, रैक में रखी किताबें, एक बेहद कलात्मक परिवेश। बिस्तर पर बैठी क्षमा ने मुस्कुरा कर स्वागत किया।

भोपाल की आर्टिस्ट क्षमा उॢमल कुलश्रेष्ठ एक कलाकार के साथ कवियित्री, मूर्तिकार और इलस्ट्रेटर भी हैं। क्षमा ने अपने बुलंद हौसले से ना केवल मौत को मात दी बल्कि दर्द से जूझते हुए अपने जीवन के कैनवास में खुशियों के नये रंग भरे। अपनी अद्भुत पेंंटिंग के जरिये लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाली क्षमा अभी तक लगभग 7,000 से भी अधिक पेंटिंग्स बना चुकी है। क्षमा को अब तक ढेरों अवॉर्ड मिल चुके हैं। अनेक कला प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं तो आइये मिलते हैं कला चितेरी क्षमा से।

दो ढाई साल की उम्र से ही मैंने खेल ही खेल में चित्र बनाना शुरू कर दिया था। खिलौने की बजाय मेरे पास होते थे पेन्सिल, कागज, कलर्स फिर धीरे-धीरे रंग और ब्रश और कैनवास मेरे जीवन का एक अहम् हिस्सा बन गया। यही वजह रही कि मैंने पीड़ा व दर्द के रंगों को पराजित खुशी का रंग खोज लिया।

सन 1998 की बात है मैं जब 12वीं कक्षा की छात्रा थी तब एक हादसे की शिकार हो गई। छत से नीचे गिरने से मेरे स्पाइनल कॉर्ड में लगभग 12 फ्रेक्चर हो गये। उसका आधा शरीर सुन्न हो गया और आधे शरीर में असहनीय दर्द व पीड़ा। मेरे अस्सी से भी ज्यादा ऑपरेशन हुए। लगभग दो साल तक मैं बिस्तर पर ही रही। डॉ. निगम व मेरी मां ने दर्द से जूझती हुये मेरे अंदर जीने का जज्बा जगाया।

Kshama Urmila Journey
sapno ke rangon se khushiyaan bikheratee kala chitr

बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं शारीरिक दर्द और मानसिक तनाव से गुजर रही थी, ऐसे में मैंने कलम व कूची को ही अपने दर्द को दूर करने का जरिया बनाने की सोची। वो मेरे जीवन का सबसे कष्टदायक समय था। असहनीय पीड़ा से जूझते हुये मैंने एक पेंटिंग ‘फीलिंग ऑफ डेथ यही सोच कर बनाई कि वो मेरी जिंदगी की शायद आखिरी पेंटिंग होगी। बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं कूची से रंग बिखेरती और घंटो मेरी मम्मी व दीदी कैनवास को पकड़ कर खड़ी रहतीं। इसके बीच मेरे लगभग 50-60 ऑपरेशन भी हुए।

बिस्तर पर लंबा समय बीता मेरा। अपने दर्द व अहसास को मैंने कविताओं के जरिये बयां करना शुरू कर दिया। मेरा काव्य संग्रह ‘रोशनी का पेड़Ó प्रकाशित हो चुका है। आर्ट थेरेपी पर भी एक किताब लिखी है।

बीमारी के दौरान और बाद में भी मेरी मां ने हर पल मेरे साथ रहते हुए दर्द से उबारने के लिए संघर्ष किया। उनके जाने के बाद भी आज भी वो मेरे मन से जुड़ी हैं। मां के जाने के बाद मेरी बड़ी दीदी गरिमा मेरी ताकत है।  

पेंटिंग बनाने की प्रेरणा तो मुझे अन्त:करण मन से मिलती है।

मेरी पेंटिंग अद्भुत को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल होने के साथ गिनीज बुक में भी दर्ज किया जा चुका है। अद्भुत पेंटिंग की खासियत ये है कि इसमें 1248 गणपति की सूक्ष्म कलाकृतियां कुछ 4215 रंगों के शेड से तैयार की गई है।
इस कलाकृति के लिए मुझे सन् 2008 में उपराष्ट्रपति माननीय हामिद अली अंसारी के हाथों 50,000 राशि का चेक व राष्ट्रीय पुरस्कार नेशनल क्रिएविटी अवॉर्ड मिल चुका है। इसके अलावा कल्पवृक्ष, रेड माउन्टेन, विंग्स ऑफ फेथ, रोशनी का कुआं, रोशनी का पेड़, चमकीली खुशी, पिंक मून, शांति की तलाश और मां पर बनाए गए स्केच एपोट्रेट मेरी पसंदीदा पेंटिंग्स हैं।

सन् 2006 में भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम एपीजे. कलाम से हुई मुलाकात जीवन का यादगार पल है। जब मैंने डॉ. कलाम के व्यक्तित्व पर ‘एक इन्सान अग्नि के समान 100 पंक्तियों की एक कविता रचते हुए उनके स्केच भी तैयार किए व उनको एक पोट्रेट भी बनाकर भेंट किया।

मेरी दुनिया वैसे तो मेरे घर के एक ही कमरे तक सिमटी है। मैं सुबह उठते ही बालकनी में व्हील चेयर पर बैठ कर ही योगा, प्राणायाम करती हूं। कॉफी बनाकर पीती हूं। अपनी डायरी देखने के बाद मैं ब्रश और कैनवास के संग रंगों की दुनिया में खो जाती हूं। अपने पेंटिंग ऑर्डर पूरे करती हूं।

Kshama Urmila
Kshama Urmila

मैं हमेशा सोचती थी कि मां-बाप बच्चों को आल राउन्डर बनाने की कोशिश में उसके बचपन को छीन लेते है। बच्चे स्ट्रेस का शिकार हो जाते हैं, ये ही सोचते हुये एक बार मैंंने प्यूपा की खूबसूरत पेंटिंग बनाई। धीरे-धीरे उसे कहानी के रूप में कैरेक्टर को ढालती गई और कोराना काल के दौरीन ही बालीवुड कलाकार भाई यशपाल शर्मा और प्रतिभा शर्मा के सहयोग से द प्यूपा एंड एंजेलीना शार्ट एनीमेशन फिल्म बन कर तैयार हुई। जिसे बालीवुड इंटरनेशनल ïिफल्म फेस्टिवल द्वारा फाउंडर्स चाइस अवॉर्ड मिला।

अपने आपको कमजोर ना समझें। जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखें। साथ ही मैं अपनी कविता की दो पंक्तियां सिर्फ महिला पाठकों को ही नहीं, हर इन्सान को समर्पित करना चाहूंगी-
अपने सपनों को, पलकों के दायरे में, सिमटने ना देना।
सच होंगे, एक दिन वो, उन्हें हर निगाह में हंसने देना।

हमें सपने ऐसे देखना चाहिए जिसके सच होने पर और भी बहुत सारे लोगों को सकून मिल सके, खुशियां मिल सके।