भोपाल में हो रहे 10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन के विषय में विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज से अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका ‘प्रवासी संसार’ के संपादक राकेश पाण्डेय ने बातचीत की। इस बातचीत में न केवल हिन्दी को लेकर सरकारी प्रयासों पर प्रकाश डाला गया है बल्कि समूचे हिन्दी समाज को हिन्दी के वैश्विक संदर्भों पर नई जानकारी भी मिलती है।
लंबे अंतराल के बाद दसवां विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन हो रहा है। कैसा अनुभव कर रही हैं?
वर्ष 1983 में नई दिल्ली में आयोजित तीसरे विश्व हिंदी सम्‍मेलन के लगभग 32 वर्ष बाद 10 से 12 सितंबर तक दसवां विश्व हिंदी सम्‍मेलन देश की सांस्कृतिक राजधानी ‘भोपाल’ में हो रहा है, जिसके लिए मैं बहुत उत्साहित हूं। भोपाल के चुनाव के पीछे इस शहर के प्रति मेरा मोह भी रहा है।

विश्वभाषा के रूप मे हिंदी की वर्तमान स्थिति आपको क्या लगती हैं?
हिंदी का प्रयोग अनेक महाद्वीपों में किया जा रहा है। भाषा के प्रयोग की सीमा से ही भाषा के विस्तार का पता चलता है और इस दृष्टि से मैंडेरिन (चीन की भाषा) और अंग्रेजी के बाद हिंदी बोलने-समझने वाले लोग ही सबसे अधिक होंगे। पूर्वी एशिया और लगभग सभी यूरोपीय देशों में हिंदी बोलने और समझने वाले लोग हैं इसलिए कहा जा सकता है कि आज हिंदी पूरे विश्व में अपने अस्तित्व को आकार दे रही है।
हिंदी शिक्षण पाठ्यक्रम में एकरूपता के लिए क्या किया जा रहा है?
नवें विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी शिक्षण का एक मानक पाठ्यक्रम तैयार करने पर संकल्प पारित किया गया था और अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने एक मानक पाठ्यक्रम तैयार भी किया है जिसकी उपयोगिता का आकलन किया जा रहा है।
हिंदी के संवर्धन में विश्व हिंदी सम्मेलनों की क्या भूमिका है?
विश्व हिंदी सम्मेलन ऐसा मंच प्रदान करते हैं, जहां से विश्व के हिंदी विद्वानों को एक दूसरे को जानने-समझने तथा भविष्य में हिंदी कैसे आगे बढ़े, इस पर चर्चा करने का अवसर मिलता है। यही विचार-विमर्श हिंदी के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विश्‍व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस को अभी और अधिक सक्रिय एवं सक्ष्म करने की आवश्‍यकता महसूस होती है। भारत सरकार इसके लिए क्या प्रयास कर रही है?
हिंदी को एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रसारित करने और विश्व हिंदी सम्मेलनों के आयोजन के उद्देश्य से मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय स्थापित किया गया है। सचिवालय फिलहाल किराए के भवन में कार्यरत है। सचिवालय अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु पूर्ण रूप से कार्य करे इसके लिए इसका स् वयं का भवन और स् थान होना बहुत आवश्यक है। मॉरीशस सरकार द्वारा इसके लिए प्लॉट आबंटित कर दिया गया है और हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी द्वारा इसके भवन निर्माण की आधारशिला भी रखी जा चुकी है। विदेश मंत्रालय भवन निर्माण की दिशा में प्रत्यनशील है। मेरे विचार में सचिवालय का भवन तैयार होने पर इसके कार्यों में विस्तार और प्रगति स्वाभाविक रूप से होगी और इसे और सुदृढ़ किया जाएगा।
आपने कहा है कि जिन देशों के राष्ट्राध्यक्ष अंग्रेजी में संवाद नहीं करेंगे उनसे आप हिंदी में बात करेंगी। यह सराहनीय है।
यदि विदेशी गण्यमान्य अतिथि हिंदी में बात कर पाते हैं तो मुझे भी उनसे हिंदी में बात करने में बहुत प्रसन्नता होती है। वे यदि अंग्रेजी में बात करते हैं तो मैं अंग्रेजी में बात करती हूं परंतु यदि वे अपने देश की भाषा में या किसी अन्य भाषा में बात करते हैं तो मेरे ऊपर अंग्रेजी में बात करने की बाध्‍यता क्यों हो। फिर मैं भी हिंदी में बात करती हूं और समझने-समझाने के लिए दुभाषिए की सहायता ली जाती है। इसीलिए भविष्य में बड़ी संख्या में दुभाषियों की आवश्यकता पड़ सकती है। इसीलिए मैंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति से आग्रह किया है कि वे अपने विश्वविद्यालय में विदेशी भाषाओं के शिक्षण का भी कार्य आरंभ करें तथा विदेशी भाषाओं से हिन्दी के भाषांतरकार तैयार करें। उन्होंने सूचित किया है कि विश्वविद्यालय में चार भाषाओं- स्पेनिश, फ्रेंच, जापानी एवं चीनी का अध्यापन आरंभ हो गया है। आशा है इसके सकारात्मक परिणाम कुछ वर्षों बाद हमारे सामने अवश्य आएंगे।
इस विश्व हिंदी सम्मेलन में कोई विशेष प्रस्ताव पारित करने का विचार है?
पिछले सम्मेलनों में अनेक मंतव्य पारित हुए जो कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। इस सम्मेलन में जिन विषयों से संबंधित सत्र रहेंगे जैसे- विदेश नीति में हिंदी, प्रशासन में हिंदी, विज्ञान में हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी, इन विषयों पर सरकार को अनुसंशाएं देते हुए संकल्प पारित किए जाएंगे।