मनी मैनेजमेंट की समझ रखना महिलाओं के लिए भी उतना ही आवश्यक है जितना पुरूषों के लिए। अभी भी महिलाएं इस क्षैत्र में ज्यादा रूचि नही लेती है। यदि महिलाएं कामकाजी भी हों तो भी वे इस मसले को अनदेखा करती है। और वित्तीय फैसलों की जिम्मेदारी पति, पिता या परिवार के अन्य सदस्य पर डाल देती है। लेकिन महिलाओं को यह बात समझनी चाहिए कि कुछ चुनौतियां ऐसी है जिनका सामना सिर्फ उन्हें ही करना होता है वे इनसे तभी निपट सकती है जब वित्तीय रूप से ज्यादा मजबूत हो और वित्तीय मामलों में फैसलें ले सके।
पुरूषों से अधिक जीती है महिलाएं
औसतन महिलाएं पुरूषों की तुलना में अधिक जीवन जीती है वही, आमतौर से महिलाओं का विवाह उनसे अधिक उम्र के पुरूषों से होता है। इन दो कारणों से रिटायरमेंट की प्लानिंग महिलाओं के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील और अहम हो जाती है । रिटायरमेंट के बाद के वर्षों में न सिर्फ ज्यादा पैसो की जरूरत होती है बल्कि बढती मंहगाई के बीच संपत्ति को संभालने की समझ होना भी जरूरी है अक्सर देखने में आया है कि व्यक्ति वसीयत लिखते समय अपनी सारी सम्पत्ति पत्नी बच्चों के नाम कर देता है लेकिन उसी व्यक्ति ने परिवार के वित्तीय फैसलों में न तो कभी पत्नी को शामिल किया होता है न ही वित्तीय मामलों में उसकी समझ बढाने का ध्यान रखा होता है। ऐसे में पत्नी अपने नाम की गई धन सम्पत्ति को संभालने के लिए बच्चों या किसी अन्य पर निर्भर रह जाती है। इसलिए परिवार की धन सम्पत्ति का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए व्यक्ति को वित्तीय फैसलों में पत्नी को भी सक्रीय रूप से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। वही, महिलाओं को भी आगे आकर अपनी बेहतरी के लिए मनी मैनेजमेंट को समझना चाहिए।
महिलाएं कम कमाती हैं -कामकाजी महिलाओं को कई परिस्थितियों में नौकरी छोड़कर घर पर ध्यान देना पड़ता है। बच्चे का जन्म, माता-पिता की देखभाल या बच्चे की देखभाल ऐसी ही कुछ परिस्थितियां हैं, जिसमें आमतौर पर पाया जाता है कि महिलाएं नौकरी छोड़कर घर-परिवार संभालती हैं। कुछ महिलाएं पूरी तरह से गृहिणी हो जाती हैं और फिर जीवन में नौकरी नहीं करती हैं। ऐसे में वे सभी सुविधाएं जैसे रिटायरमेंट के लाभ वगैरह छूट जाते हैं, जो उनको अपने लक्ष्यों में मदद करते। यही कारण है कि महिलाओं की आय पुरूषांे के मुकाबले कम रह जाती हैं।
रिटायरमेंट में पुरूष अहम – अधिकांश देखने में आया है कि रिटायरमेंट के बाद पैसे की आवक की जितनी जानकारी पुरूषों को होती है, महिलाओं को नहीं। यदि सरकारी नौकरी है तो बात अलग होती है, लेकिन निजी क्षेत्र में महिलाओं को इस पर ध्यान देना जरूरी है। क्योंकि अचानक पति की मृत्यु अथवा तलाक की स्थिति में जरूरी खर्च किस तरह से चलेंगे, इसकी जानकारी होनी चाहिए।
आत्मनिर्भर रहने के लिए – कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ रही है। वे परिवार की आमदनी में सक्रिय भूमिका अदा कर रही है। पति पत्नी दोनेो के अपने अपने लक्ष्य होते है बेहतर जीवन शैली, बच्चों की शिक्षा सालाना छुट्ठियों जैसे साझा लक्ष्य भी इन सभी के लिए प्लानिंग करते वक्त महिलाओं को समझना चाहिए कि निवेश कहां और क्यों किया जा रहा है। सलाहकार कौन है कौन कौन सी बीमा पाॅलिसियां खरीदी जा रही है। महत्वपूर्ण दस्तावेज कहाँ रखे गये है। उन्हें परिवार की फाईनेंशियल प्लानिंग में पूरी तरह भाग लेना चाहए इससे पति के नही रहने पर भी वे परिवार के वित्तीय मसलों को ज्यादा बेहतर तरीके से मैनेज कर सकेंगीं।
बीमा का मिथक – कामकाजी महिलाओं में बीमे की कुछ समझ जरूर रहती है, लेकिन हमारे देश में गृहिणियां को बीमे की कोई जरूरत नहीं ये एक बडा मिथक बना हुआ है। लेकिन जितना काम एक गृहिणी संभालती है, उसी का परिणाम होता है कि पुरूष अपने कामकाज का ध्यान दे पाता है। अगर गृहिणी को कुछ हो जाता है तो असर पुरूष पर पड़ता है। मसलन बच्चों की देखभाल से लेकर खाना बनाने तक के लिए कई परिस्थितियांें में अलग से पैसा खर्च करना पड़ता है। यही कारण है जो गृहिणियों के लिए जीवन बीमा को जरूरी है।
सामाजिक बदलाव के नजरिए से – समाज में देर से शादी, अविवाहित रहना, लिव इन रिलेशनशिप, तलाक के मामले बढ रहे है। यदि महिलाओ को पर्सनल मनी मैनेजमेंट की समझ हो तो वे मुश्किल वक्त का विश्वास के साथ सामना कर सकती है। महिलाओं को परिवार के लिए फाईनेंशियल प्लान और खुद के लिए ऐसा ही एक अलग प्लान बनाना चाहिए। आज की नारी को वित्तीय मामलों में अपनी समझ बढानी चाहिए।
असुरक्षा – महिलाएं पुरूषों के मुकाबले अच्छी मनी मैनेजर होनी चाहिए, लेकिन जब पैसे का मामला होता है तो वो वित्तीय रूप से अधिक असुरक्षित रहती है। वे बड़े निवेश के फैसले नहीं ले सकती, जैसे इक्विटी में इन्वेस्ट या मकान अथवा जमीन खरीदना।
अंतिम फैसला लेना – यदि पति की मृत्यु हो जाएं, तब भी संपत्ति वितरित करने का फैसला पत्नी ही करती है। ऐसे में कम जानकारी होने पर वह गलत फैसला ले सकती
फाइनेंशियल प्लानिंग के टिप्स –
पैसे का मूल्य समझें – महिलाओं को पैसे के मूल्य का अहसास होना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि वे जो भी कमा रहे हैं, वह उन्हंें किसी उत्पादक काम में लगाए समय के बदले मिल रहा है। मसलन, यदि आपकी आय 50 हजार रूपए महीना है तो आप 25 दिन या 200 घंटो में प्रति घंटे 250 रूपए कमा रही है। जब भी खर्च करें तो देखें कि उसका मूल्य आपकी मेहनत की कमाई के बराबर है या नहीं। पैसे की कीमत करना सीखें और वित्तीय अनुशासन हासिल करें।
आय का 20 फीसदी बचत करें: मासिक आमदनी का कम से कम 20 फीसदी हिस्सा बचाना शुरू करें। यह वित्तीय अनुशासन अपनाने के लिए जरूरी कदम है। इसके लिए आप रेकरिग डिपाॅजिट, म्यूचुअल फंड एसआईपी, पीपीएफ आदि कोई भी इंस्टूमेंट अपना सकते हैं। लेकिन निवेश करने से पहले इनके फायदे-नुकसान जरूर समझ लें। निवेश के लिए आसान तरीका अपनाएं और उस पर कायम रहें। प्रलोभन में आकर कभी भी बचत को खर्च करने के बारे में न सोचें।
इमरजेंसी फंड बनाएं: हर महीने आय का 20 फीसदी बचत कर कम से कम तीन माह की आमदनी के बराबर रकम जोड़ें। इस रकम को अलग जगह सुरक्षित रखें ताकि इमरजेंसी आने पर इसका इस्तेमाल कर सकें। इमरजेंसी जाॅब लाॅस या स्वास्थ्य समस्या समेत किसी भी रूप में आ सकती है। इसकी पूर्ति के लिए अलग से फंड होने पर आपको पैसे के इंतजाम की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।
पर्याप्त बीमा कराएं: बचत को पर्याप्त इंश्योरेंस कवर का सपोर्ट भी होना चाहिए। यदि वित्तीए रूप से आप पर कोई निर्भर है तो जीवन बीमा भी कराएं। भले कंपनी की ओर से गु्रप हेल्थ इंश्योरेंस कवर मिला हुआ हो, आपको पर्याप्त हेल्थ इंश्योरेंस और एक्सीडेंट इंश्योरेंस करना चाहिए। पर्याप्त बीमा कितना होना चाहिए, इसकी गणना करने की जरूरत होगी, लेकिन शुरूआत में आप सालाना आय के 20 गुना के बराबर बीमा करा सकते है।
टैक्स सेविंग का मतलब बीमा पाॅलिसी खरीदना नहीं: लगभग हर महिला यहीं समझताहै कि बीमा पाॅलिसी लेकर टैक्स बचाया जा सकता है। बीमा पाॅलिसी लें, लेकिन जोखिम कवर करने के लिए। टैक्स की बचत अपने-आप हो जाएगी। लेकिन सिर्फ टैक्स बचाने के उद्देश्य से पाॅलिसी नहीं लेनी चाहिए।
लोन लेने से बचें: आपके खाते में नियमित आय को देखते हुए बैंको की ओर से लोन के लिए कई आॅफर मिलते है। जब लक्ष्य तय न हों और जरूरतों के बारे में साफ-साफ पता न हो तब आप गैर-जरूरी चीजों के लिए लोन लेकर कर्ज के जाल में फंस भी सकते है। जब तक आमदनी और खर्च मैनेज करना न आ जाए, तब तक किसी भी तरह का लोन लेने से बचें। गुड और बैड लोन में फर्क करने की समझ भी जरूरी है।
यह सभी बातें समझ के इस नव वर्ष से आप वित्तीय प्लानिंग करें। आप सफल होगी।