Himalaya Mountain: हिमालय धरती पर देवनगरी कही जाती है। क्योंकि हिमालय ने अपने अंदर अनेक अनकही कहानियां समेटी हुई है। वह इंसान के लिए पालक व प्रहरी दोनों ही है। हिमालय ने मानव जाति के अस्तित्व को पोषण दिया है। ये जीवंत व जागृत रूप में हमें प्राण वायु देता है। हिमालय का आभा मंडल विशाल है। ये सृष्टि का एक अमूल्य, रहस्य, रोमांच से भरपूर, तपस्वियों को संरक्षण प्रदान करने वाला सशक्त माध्यम है।
हिमालय से निकलने वाली नदियां जहां एक ओर अनेक जीवन का आधार बनती हैं वहीं दूसरी ओर उसके पर्वत प्रकृति व पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करते हैं। अदम्य आकर्षण, रहस्य रोमांच तो इसके गुणधर्मों में से है ही। इसके अतिरिक्त ऐसे भी न जाने कितने ही लाभ हैं जिनको गिनाना कठिन है।
हिमालय का रहस्य तो अनावृत होता है- भगवान शिव व माता गौरी के स्वरूप में। क्योंकि इसका केंद्र नयनाभिराम कैलाश में है। कैलाश में हिमालय सिमट गया है और कैलाश से ही हिमालय का प्रारंभ हुआ है।
हिमालय की खूबसूरती को देखकर कालीदास ने कहा था हिमालय कोई और नहीं स्वयं शिव ही है। चारों ओर फैली हिमालय की चोटियां मानो महादेव का घनीभूत अट्टाहन हैं। कालीदास की कृति हिमालय गंगा सदाशिव के बिना अधूरी है। कुमार संभव, ऋतुसंहार, रघुवंशम, मेघदूतम, अभिज्ञान शांकुतलम आदि रचनाओं में हिमालय अपने संपूर्ण वैभव विराट रूप के साथ है। कालीदास प्राकृतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक, आत्मिक, पौराणिक रंगों के साथ हिमालय की छवि को उकेरते हैं। कालीदास हिमालय को शिव का घर, पार्वती का आंगन, कस्तूरी मृगों और सिंहों का जीवन मानते हैं।
कोहरे व शीतल चंद्र किरणों में हिमालय की शोभा अप्रितम है। हिमालय के अद्भुत सौन्दर्य को विस्तार से बताने में कालीदास ही नहीं बल्कि अनेक साहित्यकारों ने अपनी लेखनी चलाई है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि हिमालय को अगर भारतीय इतिहास से हटा दें तो वो निष्प्राण हो जाएगा। हिमालय प्रहरी है, देवभूमि है, रत्नों की खान है इतिहास विधाता है, सांस्कृतिक मेरुदंड है।
प्रख्यात साहित्यकार राम अवध शास्त्री लिखते हैं जब मैं हिमालय के शिखरों को नीले आकाश से बातें करते हुए तथा उनके पैरों तले रंग-बिरंगे बादलों को नाक रगड़ते हुए देखता हूं तो मुझे सात बादलों की तह में रहने वाले भगवान की स्थिति का कुछ-कुछ आभास होने लगता है और मैं हॢषत होकर हिमालय के उस सौन्दर्य को बार-बार निहारने लगता हूं। मेरे मन में फिर हिमालय का रूप बस जाता है।
जी हां, हिमालय को देखकर किसने-किसने क्या-क्या नहीं कहा पर सब कितना छोटा लग रहा है। भारत की विशाल एकता व गरिमामयी संस्कृति के उत्थान का प्रतीक है हिमालय। परन्तु हिमालय का अनुपम सौन्दर्य ही उसका दुश्मन बन गया है, मूर्ख इंसान विकास के नाम पर हिमालय के आसपास के जंगल काट रहे हैं। पहाड़ों को काटकर सुरंगें बना रहे हैं। हिमालय की सुंदर वादियों में भ्रमण करने के लिए बड़ी मात्रा में बारुद का प्रयोग कर रहे हैं। हिमालय का सीना छलनी करके सड़कें बनाई जा रही हैं। इन सड़कों से गुजरने वाले हजारों वाहनों के धुएं से हिमालय की शुद्ध प्राण वायु दूषित हो रही है। हिमालय से निकलने वाली नदियां नालों का रूप लेने को मजबूर हो रही हैं विकास के नाम पर अतिक्रमण से। तीर्थाटन के नाम पर मौज-मस्ती से हिमालय का क्रोध उमड़ पड़ा है। पर्वतों का राजा हिमालय देवात्मा हिमालय आज कुपित हो चला है। आज हमारे ही कुकृत्यों के कारण हमसे रूठता प्रतीत हो रहा है। जिसकी घनी चोटियों के संरक्षण में हम अमन की नींद सो रहे हैं भला उसी पितातुल्य पर्वत को रौंदकर सुखी कैसे हो सकते हैं। यदि हमें खुद को सुरक्षित करना है तो विकास के नाम पर चली आ रही इस अंधी दौड़ को रोकना होगा तभी हिमालय का क्रोध शान्त होगा और हिमालय का सौन्दर्य, ऐश्वर्य, वैभव बचाया जा सकता है।
