हरतालिका तीज सुहागनों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह व्रत सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है। हरतालिका शब्द दो शब्दों से बना है- हरित और तालिका। हरित का अर्थ है- हरण करना और तालिका का अर्थ है सखी अर्थात सखी द्वारा हरण करना। यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के हस्त नक्षत्र के दिन होता है। मां पार्वती ने अपने पति के रूप में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए बड़ी ही कठोर तपस्या की, निर्जला व्रत किया। एक बार पार्वती जी को यह जानने की बड़ी ही तीव्र अभिलाषा हुई की उन्होंने पूर्व जन्म में ऐसे कौन से पुण्य किए थे कि उन्होंने महादेव जी जैसा पति पाया। जब शंकर भगवान पार्वती जी सहित कैलाश पर्वत पर बैठे हुए थे तब पार्वती जी ने इच्छा व्यक्त करते हुए कहा, ‘हे भगवान मेरे किन संचित कर्मों के कारण आप मुझे जीवन साथी के रूप में प्राप्त हुए?’ शंकर भगवान ने बताया ‘देवी तुम्हारे 108 जन्म हुए और प्रत्येक जन्म में तुमने मुझे ही प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। 108 वें जन्म में मैं तुम्हें पूर्ण रूप से प्राप्त हुआ। तुम राजा गिरिराज और रानी मैना की पुत्री थी। जब तुम युवा हुई तो तुम्हारे पिता को तुम्हारे विवाह की चिंता हुई। तब नारद ऋषि तुम्हारे यहां पधारे। उन्होंने कहा कि तुम्हारे लायक योग्य वर भगवान विष्णु हैं। इस बात पर तुम्हारे पिता अत्यंत प्रसन्न हुए। ये बात जब तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें बताई तो तुम अत्यंत दु:खी हुई। ये समस्या तुमने अपनी सखियों के सामने रखी। तुम्हारी सखियां तुम्हारे माता-पिता को बिना बताए तुम्हारा हरण करके ले गईं। तुमने हिमालय में अधोमुखी (हवा पीकर) होकर तप किया। यह बहुत ही कठोर व्रत था। तुमने निर्जल रहकर भाद्रपद तृतीय शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और मेरी स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब तुम्हारी इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मैंने तुम्हें दर्शन दिए और तुम्हारी इच्छानुसार तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।’ ऐसा लिंग पुराण में वर्णित है। 

ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं इस व्रत को करती हैं उनके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। इस दिन बेलपत्र चढ़ाया जाता है। इस व्रत में रात्रि जागरण के साथ भगवान शिव और मां पार्वती का भजन कीर्तन किया जाता है।

सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहते हैं। प्रदोषकाल दिन और रात्रि के मिलन का समय होता है। इस दिन बालू और रेत की प्रतिमा बनाई जाती है। काली मिट्टी की भी प्रतिमा बनाते हैं। केले के पत्ते पर प्रतिमा को रखा जाता है। शिव जी को धोती अर्पित करते हैं। इस व्रत में पवित्र चौकी पर शुद्घ मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, ऋद्घि, सिद्घि, गणेश, पार्वती जी सभी का प्रतीक रूप बनाते हैं। साथ ही मां पार्वती को सुहाग की वस्तुएं अर्पित करते हैं। 

पूजन विधि के लिए संकल्प मंत्र लेते हैं-

‘उमामहे श्रवराय सायुज्य सिद्घये हरतालिका व्रतमहं करिष्ये।’

देवताओं का आह्वïन करके पूर्ण पोडशोपचार करके रात्रि के प्रत्येक प्रहर में भगवान शंकर का पूजन आरती करते हैं।

वैसे तो शिव के बहुत मंत्र हैं पर महामंत्र 

ॐनम: शिवाय। 

ॐहराय नम:, ॐ शिवाये नम:, ॐ शांभे नम:, ॐ शूलपाणये नम:, ॐ पशुपतये नम: का भी जाप करते हैं।

मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए मंत्र-

ॐउमाये नम:, ॐ पार्वत्यै नम:, ॐ जगत्प्रतिष्ठयै नम: का जाप करें।

यह व्रत पति के दीर्घायु होने सुखी और दाम्पत्य जीवन की कामना की पूर्ति हेतु किया जाता है। 

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