बसंत में माता प्रकृति अपने समस्त रहस्यों को छिपा हुआ करके केवल एक मुस्कुराहट भरे रहस्य को घिरा हुआ करती है और स्वाभाविक है कि जो प्रकृति से गहरे एवं प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होते हैं, उनके जीवन में इसके परिणाम परिलक्षित होते हैं, लेकिन जो प्रकृति के विपरीत आचरण करते हैं प्राकृतिक जीवन से कटे रहते हैं, उन्हें इसके सुखद अनुभव की शीतल छांह से महरूम होना पड़ता है।

बसंत में पौधों, पादपों, वृक्षों एवं लताओं में सुंदर, सुगंधित एवं सुरभित पुष्पों की रंग- बिरंगी छटाएं मन मोहक एव मनभावन होती हैं। आम जैसे पेड़ वर्ष भर यूं ही केवल हरियाली की प्रतिमूर्ति बन खड़े रहते हैं, लेकिन बसंत के आगमन के साथ ही ये पेड़ भी अपनी मंजरी की भीनी-भीनी गंध से प्रकृति के सभी घटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल एवं समर्थ हो जाते हैं। जिन लताओं में केवल पत्तियों के अतिरिक्त कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होता है, उनमें गुच्छे-गुच्छे में विभिन्न रंगों के इतने पुष्प खिल उठते हैं कि उनके भार से लताएं झुक जाती हैं। बसंत में सन्नाटा फैलाने वाले घन्ने जंगल के सभी प्रकार के वृक्ष एवं पादप अपने पुष्पों की विभिन्न सुरभियों से वातावरण में एक नया उल्लास भरते हैं, विचारों में एक नए उत्साह का संचार होता है एवं हृदय भावों से छलकने लगता है। ठूंठ वृक्ष भी फलों से अटे पड़े रहते हैं। चहुं ओर वातावरण में बसंत के मोहक एवं मन भावन दृश्यों का नजारा एक नई दिव्यता एवं पावनता का अनुभव कराता है। इससे मन एवं भाव प्रसन्न, पुलकित एवं चैतन्य होकर आनंदोत्सव मनाते हैं।

बसंत प्रकृति एवं मानव के बीच एक नए संबंध की उत्पत्ति करता है और इस संबंध में जाने कितने नए आयाम प्रकट होते हैं इस प्रकार हर आयाम मानव जीवन विकास की नई कहानी गढ़ता है। यह तो ज्ञातव्य है कि बसंत में पेड़-पौधों का विकास अपने चरम पर होता है। चरम पर होने का मतलब है कि पेड़ एवं पादप पुष्पों का उपहार देते हैं प्रकृति को। वैज्ञानिक तथ्य भी प्रमाणित करते हैं कि इस ऋतु में पादप एवं प्राणी विकास के सर्वोच्च आयाम को स्पर्श करते हैं। यही बात मानव जाति पर भी लागू होती है इस ऋतु की मोहकता एवं मादकता में मन एवं भाव उत्साह एवं उल्लास-उमंग से सराबोर होते हैं। उत्साहित मन में श्रेष्ष्ठ विचारों का उदय होता है, जिससे जीवन एवं समाज में रचनात्मकता एवं सृजनात्मकता का पथ प्रशस्त होता है। बसंत में हृदय स्वत: पुलकित हो जाता है, भावनाओं एवं संवेदनशीलता से लबरेज होता है। इससे संबंधों एवं रिश्तों की प्रगाढ़ता एवं आत्मीयता के विकास के साथ-साथ कलात्मकता का भी सृजन होता है।

भावों में नए-नए स्वर उभरते हैं और समस्त भाव क्षेत्र को संगीतमय कर देते हैं। इस तरह जीवन दिव्य संगीत का अनुक्रम बन जाता है। जीवन में कुछ नया करने की आशा ही नहीं जगती बल्कि एक नए संकल्प के उभरने की पृष्ठभूमि का निर्माण भी होता है। यह संकल्प खूद स्फूर्त होता है कि जो जीवन मिला है उसे कैसे सफल किया जाए। बसंत पर्व में संकल्प उभरना और इस संकल्प के लिए खुद को कटिबद्घ कर देना जीवन की सबसे बड़ी घटना है।

संकल्प का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि बसंत पर्व के दिन ही हमारे आराध्य के जीवन में ऐसा संकल्प उभरा, जिससे कि इतना बड़ा व्यापक गायत्री परिवार का परिकर खड़ा हो गया। एक नया जन आंदोलन, एक नई क्रांति का सूत्रपात हुआ, जिसके असर से मानव जीवन को एक नई दिशा मिली एवं समाज में फैली कुरीतियों एवं अंधविश्वासों का उन्मूलन संभव हो सका और एक सभ्य समाज व नूतन संसार की परिकल्पनाएं साकार एवं सिद्घ होने लगी। आओ, हम सब बसंत पर्व के इस बासंती रंग में रंगकर एक नया संकल्प लें कि मानवता के कल्याण के लिए हमारा समस्त जीवन उत्सर्ग हो, पीड़ितों के कल्याण के लिए हमारी ऊर्जा न्योछावर हो, गिरे हुओं को उठाने के लिए हमारे कर्ममय हाथ हमेशा तत्पर हों तथा हमारे कदम उज्ज्वल भविष्य के लिए हमेशा प्रगतिशील होते रहें। हमारा जीवन भी सदा बासंती उल्लास से भरा हुआ हो। 

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