Maa Siddhidatri Katha: नवदुर्गा की अंतिम देवी मां सिद्धिदात्री अपनी सिद्धियों के लिए विशेष रूप से पूजी जाती हैं। जैसा कि इनके नाम से ही हमें मालूम चलता है सिद्धि प्रदान करने वाली देवी सिद्धिदात्री। नवरात्रि के इस आखिरी दिन साधक यदि पूरी निष्ठा के साथ पूजा-अर्चना करता है तो देवी प्रसन्न होकर उन्हें सिद्धियां प्रदान करती हैं। ऐसी आठ सिद्धियां हैं जिनपर विजय प्राप्त कर साधक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर विजय पा सकता है।
मार्कण्डेय पुराण सिद्धिदात्री की आठ सिद्धियां कुछ इस प्रकार है :
- अणिमा : इस सिद्धि की शक्ति से योगी एक सूक्ष्म रुप धारण कर अदृश्य हो जाते हैं।
- महिमा : इसमें साधक स्वयं को विशाल बना लेने की क्षमता रखता है।
- गरिमा : इस सिद्धि में साधक अपना भार बढ़ा लेता है और कोई भी उसे टस से मस नहीं कर सकता।
- लघिमा : यह साधक के भारहीन होने की स्थिति है, इसके प्रयोग से साधक कोई भी वस्तु बुला सकता है।
- प्राप्ति : सब कुछ प्राप्त करने की क्षमता रखना इस सिद्धि की शक्ति है।
- प्राकाम्य : अपनी इच्छानुसार किसी भी रूप को धारण करने की क्षमता रखना।
- ईशित्व : किसी पर भी अपना नियंत्रण कर लेने का सामर्थ्य ईशित्व है।
- वशित्व : जीवन और मृत्यु तक की स्थिति को अपने वश में कर लेने की सिद्धि ही वशित्व कहलाती है।
वहीं ब्रह्मवैवर्त पुराण में इन सिद्धियों की संख्या 18 बताई गई है। ऊपर दी गई उन आठ सिद्धियों के अलावा यहां बाकी सिद्धियों का वर्णन किया गया है :
- सर्वकामावसायिता
- सर्वज्ञत्व
- दूरश्रवण
- परकायप्रवेशन
- वाक्सिद्धि
- कल्पवृक्षत्व
- सृष्टि
- संहारकरणसामर्थ्य
- अमरत्व
- सर्वन्यायकत्व
मां सिद्धिदात्री का रूप

मां सिद्धिदात्री के रूप का वर्णन करें तो देवी दाहिने हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाईं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर के हाथ में कमल पुष्प लिए हुए हैं। मां की सवारी सिंह होने के साथ ही वे कमल पुष्प पर भी विराजमान रहती हैं।
मां सिद्धिदात्री की कथा
ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि देवी सिद्धिदात्री की सच्चे मन से पूजा कर लेने के बाद साधक के मन में कोई इच्छा बचती ही नहीं है। वे शून्य को प्राप्त होते हुए लोक-परलोक की समस्त प्रकार की कामनाओं से पूर्ण हो जाता है। माना जाता है मां का ध्यान, स्मरण और आराधना हमें संसार की दशा का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदा की ओर ले जाती है। देवी पुराण में इस बात का वर्णन हमें मिलता हैं कि भगवान शिव ने इन्हीं की उपासना कर सिद्धियों को प्राप्त किया था और अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया था।
सिद्धिदात्री मंत्र
”ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।”
सिद्धिदात्री श्लोक
‘‘सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमसुरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||”
