Kartik Purnima 2022 : दीपावली के ठीक पंद्रह दिन बाद मनाए जाने वाले इस त्योहार को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता स्वर्गलोक से धरती पर उतरते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाने वाली देव दीपावली के दिन प्रदोष काल में दीपदान करने का विधान है। देव दीपावली एक ऐसा पर्व है, जब गंगा और काशी के घाट पर खूब रौनक देखी जा सकती है। यहां पर रोजाना की भांति संध्याकाल में गंगा आरती की जाती है और उसके बाद स्थानीय लोग घाटों के निकट दीपों का प्रज्वलित करते हैं। इस खास दिन यहां के घाटों और तटों की खूबसूरती देखते ही बनती है।
शुभ मुहूर्त
कार्तिक पूर्णिमा आरंभ : 7 नवंबर 2022 संध्याकाल 4 बजकर 15 मिनट से
कार्तिक पूर्णिमा तिथि समाप्त : 8 नवंबर 2022 संध्याकाल 4 बजकर 31 मिनट तक
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
- इस दिन गंगा स्नान करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से देवताओं की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। साथ ही श्री हरि आपको सभी पापों से मुक्ति दिलाते हैं।
- देव दिवाली के दिन शिवलिंग के सामने दीप प्रज्वलित करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से जीवन कष्ट मुक्त हो जाता है।
- ऐसी मान्यता है कि देव दिवाली के दिन मुखी दीपक जलाने से गुणवान संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा तीन मुखी दीपक जलाने से घर परिवार बुरी नजर से बच जाता है।
- देव दिवाली के दिन घर पर घी के दीए या तिल के तेल के दीए जलाने की मान्यता है। माना जाता है इस दिन दीप दान करना शुभ होता है। इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

क्यों मनाते हैं कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता दीपावली?
राक्षस त्रिपुरासुर का संहार
पौराणिक कथाओं के मुताबिक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस के अत्याचारों से तीनों लोकों में डर का माहौल था। राक्षस के आतंक से मुक्त होने के लिए सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और अपनी रक्षा के लिए उनके प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने रा़क्षस त्रिपुरासुर का संहार कर दिया। अब सभी देव काशी आए और यहां दीप जलाए गए और उत्सव मनाया गया। तभी से यहां देव दीपावली की प्रथा चली आ रही हैं। इस दिन भगवान शिव की अराधना करने और दीपदान का विशेष विधान हैं।
भगवान विष्णु का मतस्य अवतार
ऐसा माना जाता है कि आज ही के दिन भगवान विष्णु ने मतस्य अवतार लिया था, जो भगवान विष्णु का प्रथम अवतार कहा जाता है। जहां वे एक मछली के रूप में प्रकट हुए। पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार शंखासुर नामक रा़क्षस ने सभी वेदों और ग्रंथों को समुद्र के अंदर सबसे छुपाकर रख दिया था और खुद को बचाने के लिए उसने जल में प्रवेश किया लेकिन भगवान श्री हरि ने अपने दिव्य नेत्रों से शंखासुर का पता लगा लिया और उस वक्त विष्णु जी ने मत्स्य अवतार को धारण कर राक्षस का वध किया। इसके बाद उन सभी वेदों को ढूंढ कर देवताओं को सौंप दिया।
