जल ही जीवन है, ‘जल है तो हम हैं और जल है तो कल है’ जैसे नारों को लगाने के साथ-साथ अब इनका महत्त्व समझने की आवश्यकता आन पड़ी है। पेयजल की कमी और अनुपलब्धता के कारण ही आज हम उसे खरीदकर पीने को विवश हैं। दिनोंदिन वायु प्रदूषित हो रही है और जल अशुद्घ। आज सांस लेने को ना तो स्वच्छ हवा है और ना ही पीने को स्वच्छ जल और इसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं। पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। धरती का दो-तिहाई हिस्सा पानी से भरा हुआ है। लेकिन शुद्घ पेयजल पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 1 प्रतिशत हिस्सा ही है। 97 प्रतिशत जल महासागर में खारे पानी के रूप में मौजूद है, बाकी 2 प्रतिशत जल बर्फ के रूप में जमा है।

जल हमारे जीवन के लिए किसी अमृत से कम नहीं। प्रकृति के इस अनमोल धरोहर के संचयन और संरक्षण का गंभीर मुद्दा ही बना इस बार मोदी जी के बहुचर्चित कार्यक्रम ‘मन की बात’ का विषय। उन्होंने पानी की समस्या पर विशेष जोर देते हुए जनता से स्वच्छता आंदोलन की तरह ‘जल संरक्षण’ आंदोलन चलाने तथा जल संरक्षण के पारंपरिक तौर-तरीकों को साझा करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि, ‘वह जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का डाटा बैंक बनवाएंगे, जिसके तहत जल संरक्षण की दिशा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तियों, स्वयंसेवी संस्थाओं और इस क्षेत्र से जुड़े हर व्यक्ति की जानकारी को प्तजलशक्ति 4 जलशक्ति के साथ साझा किया जा सके ताकि उनका एक डाटाबेस बनाया जा सके।’

जल संचयन के लिए मोदी जी ने पोरबंदर के कीर्ति मंदिर का उदाहरण दिया, जहां 200 साल पुराने टांके में आज भी पानी है और बरसात के पानी को रोकने की व्यवस्था भी। ऐसे कई प्रयोग हर जगह किए जाएंगे।

जल की महत्ता को सर्वोपरि रखते हुए मोदी सरकार की ओर से नए जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है, जिसमें जल संबंधी विषयों पर तेजी से फैसले दिए जाएंगे। माननीय प्रधानमंत्री ने फिल्म जगत, मीडिया, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जगत की हस्तियों से जल संरक्षण के क्षेत्र में नवोन्मेषी अभियान चलाने का भी आग्रह किया। उन्होंने ग्राम प्रधानों को भी पानी के संरक्षण हेतु पत्र लिखा।

मोदी जी के आह्वïान से निश्चय ही कई प्रसिद्घ हस्तियां जल संरक्षण के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाएंगे, लेकिन एक हस्ती ऐसी भी है, जो पिछले 12 वर्षों से पानी बचाने के लिए प्रयासरत है और अभी तक उन्होंने करीब 3 करोड़ लीटर पानी बर्बाद होने से बचाया है। और यह शख्स है सुप्रसिद्घ लेखक एवं कार्टूनिस्ट आबिद सुरती। 84 साल के सुरती अपने कार्टून किरदार ढब्बूजी के कारण खासे लोकप्रिय हैं। आबिद हर रविवार की सुबह मुंबई के उपनगर मीरा रोड की सोसाइटियों में अपने साथ एक ह्रश्वलंबर और वॉलंटियर लेकर चलते हैं। हर फ्लैट की घंटी बजाते हैं और पूछते हैं, ‘क्या आपके नल से पानी टपकता है?’ जवाब हां में है तो मुफ्त में ही उसकी मरम्मत करते हैं। आबिद बताते हैं कि इस कार्य की प्रेरणा उन्हें 12 वर्ष पहले मिली जब उन्होंने अपने मित्र के घर पर नल से पानी टपकते देखा। उन्होंने अनुमान लगाया कि इस प्रकार टप-टप करके एक महीने में एक हजार लीटर पानी बह जाता होगा। उसी दिन उन्होंने ठान दिया कि टप-टप कर बहती इन बूंदों को रोकना होगा। आबिद ने इस काम के लिए वन मैन एनजीओ ‘ड्रॉप डेड फाउंडेशन’ बनाया। उनके साथ सिर्फ एक वालंटियर और एक ह्रश्वलंबर होता है।

आबिद की मुहिम की गूंज आज पूरे विश्व में है। उनके काम को हर तरफ सराहा गया और उनके फाउंडेशन को आर्थिक सहायता भी मिलती चली गई। आबिद का कहना है, ‘मैं गंगा तो नहीं बचा सकता, लेकिन पानी की बर्बादी तो रोक सकता हूं। आबिद के इस पहल को अगर हम सब भी स्वीकार करें तो वाकई हम कई लीटर पानी की बचत कर सकते हैं, विशेषकर गर्मी के मौसम के लिए। जैसे-जैसे गर्मी का प्रकोप बढ़ता है, जल संकट और भी विकराल रूप धारण कर लेता है। हम अपनी कुछ गलतियों को सुधारकर और कुछ सावधानियां बरतकर काफी हद तक पानी की बर्बादी रोक सकते हैंद्य सर्वप्रथम अपने घरों एवं आसपास के इलाकों में टपकते नलों की मरम्मत कराएं।

  • पीने के लिए उतना ही पानी लें जितना आप पी सकें। इसे व्यर्थ ना करें। हो सके तो अपने घर में पानी पीने के लिए छोटेछोटे ग्लास रखें ताकि आप आवश्यकतानुसार ही पानी लें या दूसरों को दें।
  • आर.ओ. या ए.सी. से निकलने वाले पानी को बागवानी और घर में पोंछा लगाने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। फ व्वारे या सीधे नल के नीचे बैठकर नहाने की बजाय बाल्टी और मग का प्रयोग करें।
  • हैंडपंप का इस्तेमाल करें। इससे उतना ही पानी निकलेगा जितनी आपको चाहिए।
  • आए दिन हम लोगों के छतों पर लगी टंकियों से पानी भरकर गिरने का दृश्य देखते हैं। यह दृश्य बहुत आम हो गया है। जहां पूरा विश्व पानी के संकट से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर ऐसे लापरवाह लोगों की भी कमी नहीं है, जो धड़ल्ले से पानी बर्बाद करते हैं। इसे रोकना होगा। उन्हें जागरूक करना होगा, नहीं तो कई लीटर पानी ऐसे ही बर्बाद होते रहेंगे।
  • शेविंग करते समय नल खुला छोड़ने की आदत बदलें।
  • वृक्षारोपण करें। ज्यादा से ज्यादा वृक्ष होंगे तभी हमें गर्मी से राहत मिलेगी और वर्षा भी होगी अन्यथा सूखे का सामना करना पड़ सकता है।
  • नदियों, तलाबों आदि इकाइयों को प्रदूषित होने से रोकना होगा। एक समय था, जब लोग इन नदियों के जल से अपनी ह्रश्वयास बुझाते थे, लेकिन आज हमने हानिकारक औद्योगिक कचरों को नदियों में प्रवाहित कर जल को इतना जहरीला बना दिया है कि जलीय जीव जंतुओं के लिए भी जानलेवा साबित हो रहा। इसके अतिरिक्त हम नदियों में कई घरेलू अपशिष्टïों को प्रवाहित कर इसे दूषित कर रहे हैं और इसका उदाहरण हमारे सामने हैं यमुना नदी के रूप में।
  • यदि हम वर्षा जल का संचयन करें तो यह जल संरक्षण के लिए मील का पत्थर सिद्घ हो सकती है और यह कोई मुश्किल कार्य भी नहीं है। हम अपने छतों पर पानी एकत्र करने के लिए हौज बनवा सकते हैं। यह पानी कपड़े धोने, बागवानी बर्तन धोने, नहाने आदि छोटे-मोटे घरेलू कार्यों के लिए तो उपयुक्त है ही साथ ही आप इसे पीने और खाना बनाने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि सामान्यत: वर्षा का जल शुद्घ होता है।
  • घरों में (Water Saving Device) जल को छत से निकासी करके पाईप द्वारा नीचे जमीन में भी पहुंचाया जा सकता है। इससे पानी का स्तर जो नीचे जा रहा है उसे ऊपर लाया जा सकता है।

विश्व के कई ऐसे देश हैं जो वर्षा जल संचयन प्रणाली पर निर्भर रहते हैं, जैसे- न्यूजीलैंड। वहां लोग वर्षा जल को अपने छतों पर एकत्र करते हैं और उसका प्रयोग विभिन्न कामों में करते हैं। भारत में भी राजस्थान के थार रेगिस्तान क्षेत्रों में लोग वर्षा जल को जमा करते हैं। यहां भी छतों पर जल संचयन किया जाता है। छतों पर वर्षा जल संचयन करना आसान एवं लागत प्रभावी तकनीक है, जो मरुस्थलों में हजारों वर्षों से चलाई जा रही है। सूखे की मार से निपटने के लिए जल संचयन कारगर उपाय है।

भारत में मॉनसून की आंख मिचौनी, सूखाग्रस्त इलाके और भीषण गर्मी के बीच वर्षा जल संचयन और संरक्षण ही बेहतरीन वैकल्पिक उपाय है। राजस्थान, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों ने यह कर दिखाया है। अब जरूरत है वर्षा जल संचयन को एक व्यापक अभियान का स्वरूप देना, जैसा कि मोदी जी ने भी कहा है। यदि हम अब भी घटते जल स्तर का मूल्य नहीं समझें तो हमें एक भीषण महासंकट के दौर से गुजरना होगा। इस जल संकट के जिम्मेदार हम स्वयं हैं तो इसका निराकरण भी हमें ही करना होगा, वो भी वक्त रहते क्योंकि-

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।

पानी गए न उबरे, मोती मानुस चून॥

हमें जल संरक्षण के लिए कदम बढ़ाना ही होगा अन्यथा कहीं अटल जी का कथन सच न हो जाए कि तीसरा विश्वयुद्घ पानी के लिए होगा।

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