डिजिटल रेप से कैसे बचें नौनिहाल: Digital Rape Meaning
Digital Rape Meaning

Digital Rape Meaning: समाज में डिजिटल रेप के प्रति जागरूकता की कमी तो है ही साथ ही बच्चों में डर के कारण इसका पता लगाना भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि बच्चों से अपने संवाद को बढ़ाया जाए और उन्हें इसके प्रति जागरूक बनाया जाए।

बलात्कार समाज पर ऐसा कलंक है, जिसे मिटा पाना आज के दौर में और मुश्किल नजर आता है। हम आए दिन  देखते और सुनते हैं कि कभी किसी युवती के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी जाती है तो कभी किसी छोटी बच्ची का अपने ही जानकारों द्वारा बलात्कार कर दिया जाता है। ये संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, साल दर साल हालत खराब होता चला जा रहा है। समाज औरत को तो ये बताने के लिए मौजूद है कि उसे क्या पहनना है, कहां जाना है, कहां नहीं जाना है लेकिन जब अपने बेटों की परवरिश की बात होती है तो वहां समाज अनुपस्थित नजर आता है। ये भेदभाव भी इसका कारण है, जिसे स्वीकारना कोई नहीं चाहता। आप रेप, मैरिटल रेप और गैंगरेप से परिचित होंगे ही लेकिन क्या आपने कभी डिजिटल रेप के बारे में सुना है। आइये जानते हैं समाज में फैल रही एक और गंदगी के बारे में, जो न जाने कितनी ही जिंदगियों पर अपना बुरा असर डाल रही है। 

डिजिटल रेप क्या है

Digital Rape Meaning
Meaning of Digital Rape

जब हम डिजिटल रेप जैसा कोई शब्द सुनते हैं तो इसका सीधा अर्थ निकालते हैं- डिजिटल यानी इंटरनेट के द्वारा बलात्कार करना, लेकिन इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं है। अंग्रेजी का डिजिटल शब्द ‘डिजिट’ से बना है, जिसका मतलब अंक के अलावा शारीरिक अंग भी है। डिजिटल रेप की परिभाषा ये है कि हाथ की उंगलियों और पैरों के अंगूठे से बलात्कार करना। जब पुरुष, किसी महिला की असहमति के बिना उसके गुप्तांग को उंगलियों या पैर के अंगूठे से छूता है तो ये डिजिटल रेप कहलाया जाएगा। 

क्या कहता है कानून

Digital Rape Meaning and Prevention
Under 2012, it has been kept under ‘Sexual Penetrative Assault’.

महिला की इजाजत के बगैर उसके अंग में अपना अंग डालना बलात्कार है। डिजिटल रेप की परिभाषा ये है कि हाथ की उंगलियों और पैरों के अंगूठों से बलात्कार करना। डिजिटल रेप पर 2013 से पहले कोई कानून नहीं था। निर्भया केस के बाद 2013 में डिजिटल रेप को बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया गया। प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉसको) 2012 के तहत इसे ‘सेक्सुअल पेनेट्रेटिव असॉल्ट’ के अंतर्गत रखा गया है। 

सजा का प्रावधान

आईपीसी की धारा 376 के तहत डिजिटल रेप में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को 5 साल तक की सजा हो सकती है। वहीं कुछ मामलों में ये सजा 10 साल और आजीवन कारावास की भी हो सकती है।

कैसे पहचाने की बच्चा है डिजिटल रेप/ शारीरिक शोषण का शिकार

Digital Rape Meaning
Digital Rape Prevention

किसी बच्चे का शारीरिक शोषण हो रहा है तो ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि बच्चे कई बार ये बर्ताव समझ नहीं पाते कि उनके साथ क्या हो रहा है। कई बार बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से शोषित होते हैं लेकिन उन्हें समय न दिए जाने के कारण वो कुछ कह नहीं पाते। ऐसे में ये जानना बहुत मुश्किल हो जाता है कि आपके बच्चे किस पीड़ा को सहन कर रहे हैं। कुछ आम बातें हैं जिनसे पता लगाया जा सकता है कि आपका बच्चा डिजिटल रेप जैसे शारीरिक शोषण से जूझ रहा है।
अवसाद: अवसाद का मुख्य कारण शोषण होता है फिर चाहे वो मानसिक रूप से हो या शारीरिक रूप से हो। बच्चे अपने साथ हो रहे इस अनुचित व्यवहार को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। वो डरते हैं कि आखिर कैसे अपनी बात कहें। इस सोच में रहने के कारण बच्चे अवसाद की ओर चले जाते हैं। धीरे-धीरे वो हंसना-बोलना बंद कर देते हैं। असल में वो खुद नहीं समझ पाते हैं कि वो क्या करें। 
व्यवहार में बदलाव: अपने प्रियजन के व्यवहार में बदलाव आ जाए तो आमतौर पर हम हैरान होते हैं। हमें ये बात कचोटती रहती है कि आखिर ऐसा क्या हो गया जिसने उस व्यक्ति को बदलने के लिए मजबूर कर दिया। जब बच्चों में बदलाव होने लगे तो ये और ज्यादा चिंता की बात है क्योंकि बच्चे हर मां-बाप के जीवन में बहुत अहम होते हैं। जब बच्चे दुखी या परेशान होते हैं तो उनके व्यवहार में बदलाव आता है, वो चुप रहने लगते हैं, उदास हो जाते हैं, जो कि काफी चिंता की बात है। अगर वो शोषित हो रहे हैं तो उनमें डर समा जाता है, जिसके कारण उनका व्यवहार बदल जाता है। 

इन हादसों से बच्चे को बाहर कैसे निकालें

बातचीत करना: अपने बच्चों से बातचीत बढ़ाएं ताकि उन्हें इस दुर्घटना से बाहर निकलने में मदद मिले। वो समझ पाएं की सब बेहतर होगा। उनकी बातों को सुनें और समझें इससे बच्चे अपने को अकेला नहीं पाएंगे और अकेला न होने के कारण उनके मन में कोई बुरी स्मृति नहीं आएगी। उनके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं।
काउंसलिंग: बच्चों का मन कोमल होता है, वो परेशानियों से उबरने में वक्त लेते हैं। कई बार माता-पिता उन्हें ठीक तरह से समझा नहीं पाते। अपनी कोशिश के बाद भी बच्चे पर कोई असर न हो तो जरूरी है कि उन्हें काउंसलिंग के लिए ले जाएं क्योंकि कई बार बच्चे माता-पिता की बात नहीं समझ पाते लेकिन काउंसलिंग से उन्हें काफी मदद मिलती है। ठ्ठ
(मनोवैज्ञानिक करिश्मा मेहरा से बातचीत पर आधारित)

सृष्टि मिश्रा, फीचर राइटर हैं , यूं तो लगभग हर विषय पर लिखती हैं लेकिन बॉलीवुड फीचर लेखन उनका प्रिय विषय है। सृष्टि का जन्म उनके ननिहाल फैज़ाबाद में हुआ, पढ़ाई लिखाई दिल्ली में हुई। हिंदी और बांग्ला कहानी और उपन्यास में ख़ास रुचि रखती...