पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है वट सावित्री व्रत,जानें तिथि,पूजन विधि,कथा और महत्व: Vat Savitri Vrat 2024
Vat Savitri Vrat 2024

Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री व्रत, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार कृष्ण पक्ष की तिथि होती है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए रखती हैं। इस साल यह व्रत 6 जून 2024 को रोहिणी नक्षत्र और धृति योग में रखा जाएगा। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा करती हैं, जो अमरत्व और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। वृक्ष को कलावा, मोली, सुपारी और फल चढ़ाए जाते हैं, और उसकी परिक्रमा की जाती है। इसके साथ ही, देवी सावित्री और सत्यवान की भी पूजा की जाती है। महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को व्रत का पारण करती हैं। वट सावित्री व्रत, पतिव्रता का प्रतीक है।

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व्रत विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थल को साफ करें और वट वृक्ष की पूजा करें।
वृक्ष को जल, दूध, घी और शहद अर्पित करें।
वृक्ष को कलावा, मोली, सुपारी और फल चढ़ाएं।
धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं।
व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
सावित्री और सत्यवान की आरती गाएं।
दिन भर निर्जला व्रत रखें।
सूर्यास्त के बाद व्रत का पारण करें।
वृक्ष को भोजन अर्पित करें और दक्षिणा दें।
पति के पैरों को छूकर उनका आशीर्वाद लें।

बरगद के पेड़ की पूजा का महत्त्व

हिंदू धर्म में, बरगद के पेड़ को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। इस वृक्ष को देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है, जिसके कारण इसकी पूजा का विशेष महत्व है। वट सावित्री व्रत के दौरान, विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक सुख की कामना से बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। यह व्रत स्त्री शक्ति, पतिव्रता और अटूट प्रेम का प्रतीक है। बरगद के पेड़ की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और धन-धान्य की वृद्धि होती है। विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस व्रत को करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम और स्नेह बढ़ता है, बरगद के पेड़ की पूजा करने से ग्रहों की शांति होती है, रोगों का नाश होता है और संतान प्राप्ति में भी सहायता मिलती है।

वट सावित्री व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए अद्भुत त्याग और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया था। सत्यवान को उनके पिता की मृत्यु का श्राप मिला था और ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को उनकी मृत्यु निश्चित थी। यह जानकर सावित्री ने अपने पति के साथ मृत्यु का फैसला लिया और यमराज के पीछे चल दीं। यमराज ने सावित्री के प्रेम, त्याग और पतिव्रता से प्रसन्न होकर सत्यवान को पुनर्जीवन प्रदान किया। यह घटना ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को ही हुई थी, और इसलिए इस तिथि को वट सावित्री व्रत के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत हमें सावित्री के त्याग और समर्पण की याद दिलाता है, जिन्होंने अपने पति के प्राणों को बचाने के लिए यमराज से भी हरा दिया था। यह व्रत हमें सिखाता है कि पति-पत्नी के बीच का रिश्ता अटूट होता है और विपत्ति में भी एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।

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