एकादशी तिथियों के नाम

प्रत्येक मास में अलग-अलग एकादशी होती है। एक वर्ष में कुल छब्बीस एकादशी होती हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से आरम्भ करके कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चौबीस एकादशी तिथियां एवं दो एकादशी तिथियां मलमास की होती हैं। एकादशी तिथियों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं – उत्पन्ना एकादशी, मोक्षा, सफला, पुत्रदा, षटतिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोंचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, अपरा, निर्जला, योगिनी, देवशयनी, कामिनी, पवित्रा, अजा, पद्मा, इन्दिरा, पापाकुंशा, रमा तथा प्रबोधिनी। मलमास की दोनों एकादशियों का नाम सर्वसम्मत प्रदा है। जो व्यक्ति एकादशी के छब्बीस नामों का पाठ करता है, वह भी वर्ष भर की द्वादशी (एकादशी) तिथियों के व्रत का फल प्राप्त कर लेता है।

एकादशी का पुण्य फल समस्त तीर्थों के बराबर

एक बार भीमसेन ने पितामह से कहा कि भ्राता युधिष्ठिर, माताकुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी एकादशी के दिन व्रत करते हैं और मुझ से एकादशी के दिन भोजन करने को मना करते हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूं, दान-पुण्य कर सकता हूं परन्तु में भूखा नहीं रह सकता क्योंकि मेरे पेट में अग्नि का वास है जो अधिक अन्न खाने पर शान्त होती है। पितामह मैं केवल एक एकादशी का व्रत अवश्य कर सकता हूं, सभी एकादशी का नहीं। इस पर व्यास जी ने बताया कि तुम ज्येष्ठï मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों के पुण्य का फल मिलता है। इस एकादशी का पुण्य फल समस्त तीर्थों के बराबर है।

संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत

संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इस व्रत में व्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष को ‘ओम् नमो भगवते वासुदेवाय à¤®à¤‚à¤¤à¥à¤°Ó à¤•à¤¾ 108 बार जाप करना चाहिए, इससे अक्षय पुण्य-फल की प्राप्ति होती है। इधर गोपियों ने भगवान कृष्ण को प्राप्त करने के लिए राधा से पूछा था कि  हम कौन सा व्रत रखें। राधा जी ने एकादशी व्रत रखने को कहा और उसके पुण्य फल के बारे में बताया कि एकादशी व्रत के बारे में श्रवण मात्र से बाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। जो अठासी हजार ब्राह्मïणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है, वही पुण्य एकादशी व्रत करने से मिलता है। जो समुद्र और वनों सहित सम्पूर्ण पृथ्वी को दान करता है, उससे प्राप्त होने वाले पुण्य से भी हजारगुना पुण्य एकादशी के महान व्रत का अनुष्ठान करने से सुलभ हो जाता है। 

दस पीढ़ियों का उद्धार

एकादशी के व्रत के पुण्य फल के बारे में बताया गया है कि सहस्रों अश्वमेध तथा सैकड़ों राजसूर्य यज्ञ भी एकादशी के उपवास की सोलहवीं कला के बराबर नहीं हो सकते। एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य मातृकुल की दस पितृकुल की दस तथा पत्नी के कुल की दस पीढ़ियों का उद्धार कर देता है। एकादशी व्रत करने वाले को दस हजार वर्ष की तपस्या का फल मिलता है। जो एकादशी के दिन भगवान विष्णु की कथा सुनता है, वह सात द्वीपों युक्त पृथ्वी के दान का फल पाता है। यदि मनुष्य शंखोद्वार तीर्थ में स्नान करके गदाधर देव के दर्शन का पुण्य संचित कर ले, तो भी वह पुण्य एकादशी के उपवास की सोलहवीं  कला की भी समानता नहीं कर सकता है। तीर्थ क्षेत्र प्रभास, कुरुक्षेत्र, केदार, वदरिकाश्रम, काशी तथा शूकर क्षेत्र में चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण तथा चार लाख संक्रान्तियों के अवसर पर मनुष्यों द्वारा जो दान दिया गया हो, वह भी एकादशी के उपवास की सोलहवीं कला के बराबर नहीं है। राधा जी ने गोपियों को बताया कि जैसे नागों में शेषनाग सर्वश्रेष्ठ हैं उसी प्रकार व्रतों में एकादशी तिथि सर्वोत्तम है। एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से गोपियों को श्रीकृष्ण सान्निधय की प्राप्ति हुई थी और भीमसेन को निर्जला एकादशी के व्रत के पुण्य से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हुआ था। 

कई राजाओं ने पुण्य  अर्जित किया

पूर्वकाल में भारतीय संस्कृति में कई राजाओं ने एकादशी व्रत रख कर पुण्य अर्जित किया। उनमें प्रमुख राजा इस प्रकार à¤¹à¥ˆà¤‚Ó à¤¸à¤°à¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® एकादशी व्रत का अनुष्ठान देवताओं ने अपने छीने गये राज्य की प्राप्ति तथा दैत्यों के विनाश के लिए किया था। राजा वैशन्त ने पूर्वकाल में यमलोकगत पिता के उद्धार के लिए एकादशी व्रत किया था। लुम्पक नामक राजा ने एकादशी व्रत के प्रभाव से अपने ही परिवार के द्वारा छीने गये राज्य को प्राप्त किया था। भद्रावती नगरी में पुत्रहीन राजा केतुमान् ने संतों के कहने पर एकादशी व्रत रखा था जिससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। एक ब्राह्मïणी को देव पत्नियों ने एकादशी व्रत का पुण्य प्रदान किया था जिससे उसे सम्पत्ति सुख तथा स्वर्ग प्राप्त हुआ। पुष्पदन्ती और माल्यान इन्द्र के शाप से पिशाच भाव को प्राप्त हो गए थे परन्तु एकादशी व्रत के करने से वे पुन: गन्धर्व बन गए। पूर्वकाल में श्रीराम ने समुद्र पर सेतु बांधने तथा रावण का वध करने के लिए एकादशी व्रत किया था। सृष्टि के प्रलय के अन्त में उत्पन्न हुए आंवले वृृक्ष के नीचे बैठकर देवताओं ने सबके कल्याण के लिए एकादशी व्रत किया था। अपने पिता की आज्ञा से मेधावी ने एकादशी व्रत किया था जिससे वे अप्सरा के साथ सम्पर्क के दोष से मुक्त हो गए थे। ललित नाम गन्धर्व अपनी पत्नी के साथ ही शापवश राक्षस हो गया था, किन्तु एकादशी व्रत के अनुष्ठान से उसने पुन: गन्धर्वत्व प्राप्त कर लिया। एकादशी के व्रत के पुण्य प्रभाव से ही राजा मांधाता, सगर, ककुत्स्थ और महामति मुचुकुन्द पुण्य लोक को प्राप्त हुए थे। धुन्धुमार आदि बहुत से राजाओं ने भी एकादशी व्रत के प्रभाव से ही सद्गति प्राप्त की परिवारजनों से उपेक्षित महादुष्ट वैश्य-पुत्र धृष्टबुद्धि एकादशी व्रत करके ही बैकुण्ठलोक में गया था। राजा रूक्मांगद एकादशी के व्रत के पुण्य से पुरवासियों सहित बैकुण्ठलोक में पधारे थे। राजा अम्बरीष ने भी एकादशी का व्रत किया था, जिससे कहीं भी प्रतिहत न होने वाला ब्रह्मïशाप उन्हें छू न सका। हेममाली नाम का यक्ष कुबेर के शाप से कोढ़ी हो गया था, किन्तु एकादशी व्रत का अनुष्ठान करके वह चन्द्रमा के समान कान्तिमान् हो गया था। राजा हरिश्चन्द्र ने भी एकादशी व्रत किया था, जिससे पृथ्वी का राज्य भोगकर वे अन्त में पुरवासियों सहित बैकुण्ठधाम को गये। पूर्वकाल में सतयुग में राजा मुचुकुन्द का दामाद शोभन भारत वर्ष में एकादशी का उपवास करके उसके पुण्य प्रभाव से देवताओं के साथ मन्दरांचल पर चला गया। विद्वानों का मत है कि वह आज भी वहां अपनीे रानी चन्द्रभागा के साथ कुबेर की भांति राज्य सुख भोगता है। भारतीय संस्कृति के व्रतों व पर्वों के आदर्शों में हर मर्ज की दवा है। आज की युवा पीढ़ी फिल्मी सभ्यता व पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंगी होने के कारण भारतीय संस्कृति के व्रतों के आदर्शों नैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान के महत्त्व को भूलती जा रही है। व्रतों के आदर्श नागरिकों को चरित्रवान बनाते हैं। चरित्रवान नागरिक ही किसी राष्ट्र की अमूल्य सम्पत्ति होते हैं। समय रहते अपनी संस्कृति का अनुसरण करें अन्यथा हमारा जीवन अंधकार में हो जाएगा। 

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