कुछ लोग जन्म से ही लोकप्रिय स्वभाव के होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति उन के प्रति आकर्षित हो जाता है। कुछ लोग कभी पसंद नहीं किए जाते। अन्य कुछ लोग न तो कभी पसंद किए जाते हैं और न ही कभी नापसंद किए जाते हैं, वे मात्र उपेक्षित कर दिए जाते हैं। क्यों? निष्पक्ष ईश्वर आकर्षक गुणों के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी नहीं है। यह बहुत ही बड़ा अन्याय होता यदि ईश्वर कुछ बच्चों को बुरे अप्रिय गुणों की असुविधा के साथ भेजने के लिए उत्तरदायी होते। परंतु ईश्वर ने कुछ बच्चों में बुरी प्रवृत्तियों को दूसरों में अच्छी प्रवृत्तियों को स्थापित नहीं किया, अत: हम ईश्वर को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते।

ईश्वर सभी मनुष्यों की रचना अपने प्रतिबिम्ब में समान रूप से करते हैं। मनुष्य की प्रकट रूप से दिखाई देने वाली असमानताओं की न्याय-संगतता को देखने के लिए हमें पुनर्जन्म के सिद्घांत को अवश्य समझना होगा। जीसस तब पुनर्जन्म का उल्लेख कर रहे थे जब उन्होंने कहा, ‘एलियास आ चुका है, और उन्होंने उसे नहीं पहचाना… तब चेले समझ गए कि उन्होंने धर्मगुरु जॉन के बारे में कहा है।’ जिस आत्मा ने एक जन्म में एलियास के रूप में जन्म लिया था, उसी आत्मा ने एक अन्य जन्म में धर्मगुरु जॉन के रूप में जन्म लिया।

जीवन का कोई अर्थ नहीं होगा यदि वह हमारी क्षमताओं के विकास तथा हमारी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हमें पर्याप्त अवसर प्रदान न करे। पुनर्जन्म के बिना ईश्वर का न्याय उन आत्माओं पर कैसे लागू होगा जिन्हें स्वयं को व्यक्त करने का अवसर ही नहीं मिला क्योंकि वे एक ऐसे शिशु के शरीर में बंदी बन गई जो मृत पैदा हुआ, या जो केवल छ: वर्ष की आयु तक ही जीवित रहता है? उन आत्माओं को नरक में नहीं धकेला जा सकता क्योंकि उन्होंने दण्डित होने योग्य कोई काम नहीं किया और न ही वे स्वर्ग जा सकते हैं क्योंकि पुण्य अर्जित करने का कोई अवसर उन्हें नहीं मिला। इसका उत्तर यह है कि यह संसार एक विशाल पाठशाला है, और पुनर्जन्म का सिद्घांत, वह न्याय है जो मनुष्य को तब तक यहां बार-बार वापस लेकर आता रहता है जब तक कि वह जीवन के सभी पाठों को सीख न लें। इस सत्य के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है: ‘अपने पथ का प्रयत्नपूर्वक अनुसरण करने वाला योगी, पिछले अनेक जन्मों के प्रयासों द्वारा शुद्घ हो, संपूर्ण पापों से रहित हो, अंत में परमगति को प्राप्त हो जाता है।’ मनुष्य ने स्वयं ही अपने अच्छे और बुरे गुणों को विकसित किया है। कभी, किसी काल में, इस जन्म में या अन्य जन्मों में, उसके अपने कर्मों द्वारा ही ये बीज बो दिए गए थे। यदि वह हानिकारक कर्मों के बीजों को उगने देता है, तो वे उसके द्वारा बोए गए अच्छे कर्मों के बीजों को उगने नहीं देंगे। जो बुद्घिमान हैं वे अपने जीवन की बगीया से बुरे कर्म-बीजों को निकाल फेंकते हैं। व्यक्ति को स्वयं अपना एवं दूसरों का विश्लेषण करना सीखना चाहिए जिससे पता चल सके कि क्यों कुछ लोग सभी के द्वारा पसंद किए जाते हैं, और कुछ लोग नहीं।

कभी भी कोई ऐसा काम न करें जिससे आपका मन दूषित हो जाए। गलत कार्य नकारात्मक या बुरे मानसिक स्पन्दन पैदा करते हैं तो आपके पूरे रंग-रूप और व्यक्तित्व में प्रतिबिम्बित होते हैं। ऐसे कार्यों और विचारों में व्यस्त रहें तो उन उत्तम गुणों का पोषण करें जिन्हें आप चाहते हैं। यदि आप इन सत्यों के अनुरूप आचरण करते हैं तो जो मैं आपको बता रहा हूं, उससे आप अपना जीवन सुंदर रूप से भिन्न पाएंगे।  

यह भी पढ़ें –हनुमान साधना के अद्भुत चमत्कार