दिवाली का संबंध कई घटनाओं से है: Diwali Related Event
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Diwali Related Event: दीपावली का त्योहार केवल दीपोत्सव की प्रथा तक ही नहीं सिमटा है अपितु इस पर्व का ऐतिहासिक व पौराणिक महत्त्व भी है। आइये, जानते हैं दीपावली से जुड़ी अन्य रोचक बातों को।

1. दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का चलन सर्वप्रथम ऋग्वेद के ‘श्री सूक्त’ में मिलता है, जो कि भगवान राम के समय से काफी पूर्व का है। ‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण’ में इनकी स्वर्ण लक्ष्मी, गृह लक्ष्मी व जय लक्ष्मी के रूप में वन्दना की गयी है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व के जैन व बौद्ध ग्रन्थों में भी महालक्ष्मी, कुमारिका व चक्रेश्वरी के रूप में लक्ष्मी के पूजन का उल्लेख है। मौर्य वंश, गुप्त वंश, शुंग व सातवाहन काल में भी गज सेविका, गज लक्ष्मी स्वरूपा का अंकन प्राप्त होता है। लक्ष्मी के पद्म हस्ता, पद्मस्थता, पद्मवासिनी स्वरूप की मूर्तियां आज भी मथुरा के संग्रहालय में मौजूद हैं।

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2.मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता सहित इसी दिन रावणादि का संहार करके 14 वर्षों के वनवास से वापस अयोध्या लौटे थे। साथ ही उनका राज्याभिषेक हुआ था। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने समस्त अयोध्यापुरी को दीपों से सजाकर दीपावली का त्योहार मनाया था।
3. कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्रीकृष्ण सर्वप्रथम ग्वाल-बालों के साथ वन में गाये चराने गए थे। सायंकाल उनकी वापसी पर गोकुलवासियों ने घर-घर दीप जलाकर उनका स्वागत किया था।
4. कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने धरा धाम पर लीलाओं का संवरण कर गोलोक गमन किया था।

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Ram, Lakshman and Sita

5.दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था। इसके अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।
6. महाप्रतापी तथा दानवीर राजा बलि ने जब अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली तो बलि से भयभीत देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में मांगी थी। महाप्रतापी राजा बलि ने सब कुछ समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी थी। भगवान विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दान वीरता से प्रभावित हो विष्णु भगवान ने उन्हें पाताल लोक का राज्य तो लौटा ही दिया, साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उसकी स्मृति में भू-लोकवासी सदैव प्रति वर्ष दीपावली मनाएंगे।
7. दीपावली के ही दिन राक्षसों का वध करने के लिए देवी लक्ष्मी ने महाकाली का रूप धारण किया था। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ, तब भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इस घटना की स्मृति में उनके शांत रूप लक्ष्मी का पूजन आरम्भ हुआ। जो कि अब भी किया जाता है।
8. महाराज धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी दिन राजसूर्य यज्ञ किया था। अतएव रात्रि में उनकी पूजा में दीप जलाकर खुशियां मनाई गई थीं।
9. पौराणिक कथा के अनुसार जब महाराज गणेश स्वामी ने अपनी ऐहिक लीला समाप्त की, तब 18 राज्यों के राजाओं ने एकत्रित होकर कहा था कि ज्ञान की ज्योति बुझ गई है। अत: अब दीपों की ज्योति जलाई जाए।
10. ऋषि उद्दालक ने अपने पुत्र नचिकेता को यमराज को दान में दे दिया था। यमलोक में नचिकेता ने ब्रह्मïलोक का ज्ञान प्राप्त किया। इसी खुशी में इस दिन मृत्यु लोक में सर्वत्र दीप जलाकर प्रकाशोत्सव मनाया गया था।
11. ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार द्रविड़ जन कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मन्दिरों और घाटों पर बड़े पैमाने पर दीप जलाकर दीपदान महोत्सव मनाते थे। साथ ही मशालें लेकर नाचते थे और पशुओं (भैंसों और सांड़ों) की सवारी निकालते थे।
12. बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध जब 17 वर्ष बाद अपने गृह नगर कपिलवस्तु वापिस लौटे तो उनके अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। साथ ही महात्मा बुद्ध ने अपने प्रथम प्रवचन के दौरान ‘अप्पों दीपो भव’ का नारा देकर दीपावली को नया आयाम दिया था।
13. सम्राट अशोक ने दिग्विजय का अभियान इसी दिन प्रारम्भ किया था। इसी खुशी में दीपदान किया गया था।
14. सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के ही दिन हुआ था। इसलिए दीप जलाकर खुशियां मनाई गईं।
15. जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने भी दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए महावीर निर्वाण संवत इसके दूसरे दिन से शुरू होता है। इसीलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्षारम्भ की शुरुआत मानते हैं। प्राचीन जैन ग्रन्थ ‘कल्प-सूत्रÓ में कहा गया है कि महावीर स्वामी के निर्वाण के साथ जो अंतर्ज्योति सदा के लिए बुझ गई है, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए हम बहिर्ज्योति के प्रतीक दीप जलाएं।

Mahavir Swami
Mahavir Swami

16.आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी दिन सन् 1883 में अजमेर में अपने प्राण त्यागे थे। अत: आर्य समाज में इस दिन का विशेष महत्त्व है।
17. स्वामी रामतीर्थ भी दीपावली के दिन इस धरा पर अवतीर्ण हुए थे और उन्होंने इसी दिन सन् 1906 में अपना शरीर त्यागा था। इसके अलावा उन्होंने दीपावली के ही दिन संन्यास ग्रहण किया था।

Samrat Akbar
Samrat Akbar

18. दीन-ए-इलाही के प्रर्वतक सम्राट अकबर के शासन काल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊंचे बांस पर एक बड़ा आकाश दीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। गोवर्धन पूजा में अकबर स्वयं भाग लेते थे तथा गायों का निरीक्षण करते थे। शाह आलम द्वितीय के शासन काल में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था। लालकिले में एक मेले का आयोजन होता था, जिसमें हिन्दू-मुसलमान सभी भाग लेते थे। सम्राट जहांगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाता था। भारत के अन्तिम सम्राट बहादुरशाह जफर भी दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भी भाग लेते थे।
19. कार्तिक अमावस्या के दिन ही सिखों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह जी बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे।
20. अमृतसर के प्रख्यात स्वर्ण मन्दिर का निर्माण भी दीपावली के ही दिन प्रारम्भ हुआ था।
21. दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु भक्ति से अप्रसन्न हो उसे जान से मारना चाहा। इसके लिए उसने अनेक उपाय किए पर उसे सफलता नहीं मिल पाई तब वह कुपित हो खडग उठा कर उसे स्वयं ही मारने चला। दैत्यराज को वरदान प्राप्त था कि उनकी मृत्यु न दिन में होगी न रात में, न घर में होगी न बाहर, न अस्त्र से होगी न शस्त्र से। इसी वजह से वे स्वयं को अमर समझता था। कार्तिक अमावस्या के सायंकाल का समय था। विष्णु भक्त प्रहलाद खम्भे से बंधा हुआ था। जब दैत्यराज ने खडग से प्रहार किया तो भयंकर गर्जना के साथ खम्भा टूट गया और भगवान नरसिंह का प्रादुर्भाव हुआ। शीश सिंह के समान और शेष शरीर मानव जैसा। न पूरा मानव, न पूरा पशु, न अस्त्र न शस्त्र। भगवान नरसिंह ने केवल अपने नख से दैत्यराज का वध कर डाला। दैत्यराज की मृत्यु पर प्रजा ने घी के दिए जलाकर दिवाली मनाई थी।
22. दीपावली के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान महालक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। देवताओं ने उन्हें भगवान विष्णु की पत्नी स्वीकार कर उन दोनों का विवाह करा दिया था।
23. नचिकेता जब जन्म-मरण का रहस्य जानने के लिए यम के पास गए तब यमराज ने नचिकेता की कई प्रकार से परीक्षा ली थी। नचिकेता हर बार सफल रहे। यमराज नचिकेता की लगन और निर्भीकता से बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें मृत्यु पर विजय का ज्ञान दिया। नचिकेता की वापसी पर पृथ्वी वासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया। कहा जाता है कि आर्यव्रत की यह पहली दीपावली थी।

Golden Temple
Golden Temple

24. सम्राट समुद्र गुप्त अशोकादित्य प्रियदर्शन ने अपनी दिग्विजय की घोषणा दीपावली के ही दिन की थी।
25. सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ईसा से 269 वर्ष पूर्व दीपावली के ही दिन तीन लाख शकों व हूणों को युद्ध में खदेड़कर परास्त किया था। जिसकी खुशी में उनके राज्य के लोगों ने असंख्य दीप जलाकर जश्न मनाया था।
26. लोकनायक जयप्रकाश नारायण सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान दीपावली के ही दिन हजारी बाग सेन्ट्रल जेल से फरार हुए थे।
27. भूटान आंदोलन के प्रणेता आचार्य बिनोवा भावे का स्वर्गारोहण सन् 1982 को दीपावली के ही दिन हुआ था।
28. प्रख्यात मैथिली कवि विद्यापति ने सन् 1448 को दीपावली के ही दिन अपना शरीर त्यागा था।
29.प्रख्यात बौद्ध ग्रंथ ‘विनय पिटक’ के 33वें अध्याय में यह लिखा हुआ है कि भगवान बुद्ध जब कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को एक लम्बे अन्तराल के बाद अपने असंख्य अनुयायियों के साथ घर वापिस लौटे थे तब उन सभी के भोजनादि हेतु मेजबानों ने बहुत बड़ी मात्रा में चांदी के बर्तनों की खरीदारी की थी। तभी से कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) को नये बर्तन खरीदने की परम्परा पड़ी।
30. दीपावली के दिन आकाश दीप जलाने की प्रथा के सम्बन्ध में यह मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या से पितरों की रात प्रारंभ होती है। अत: वह सब कहीं पथ भ्रमित न हो जाएं इसलिए उनके निमित्त प्रकाश किया जाता है। इस प्रथा का बंगाल में विशेष चलन है।
31. औषधि विज्ञान से जुड़े व्यक्ति दीपावली के त्योहार को वातावरण की शुद्धता से जोड़ते हैं। उनका कहना है कि एक साथ असंख्य दीप के प्रकाश से अंधकार में व्याप्त विभिन्न व्याधियां और विकार स्वत: समाप्त हो जाते हैं।

भगवान नरसिंह ने केवल अपने नख से दैत्यराज का वध कर डाला। दैत्यराज की मृत्यु पर प्रजा ने घी के दिए जलाकर दिवाली मनाई थी।