पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में यह कहते हुए मान्यता दी है कि ये भी भारत के नागरिक हैं इसलिए उन्हें भी संविधान से हर अधिकार प्राप्त होने चाहिए। फिर किन्नरों के अधिकारों से जुड़े सांसदों के निजी विधेयक को राज्यसभा में पारित किया गया और अब सामाजिक न्याय मंत्रालय ट्रांसजेंडरों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक सशक्तिकरण के लिए कानून बनाने की दिशा में अग्रसर है। हालांकि कानून किन्नरों को पहचान बनाने में मददगार साबित होगा लेकिन फिर भी किन्नर इसे पर्याप्त नहीं मानते। किन्नर होना अपने आप में कितनी बड़ी सजा है, यह उनसे ज्यादा और कोई नहीं जान सकता।
इधर पिछले कुछ समय से किन्नरों के अपने मांगने के धंधे से निकल कर पढ़ाई-लिखाई और कुछ अलग करने की अनेक खबरें मिल रही हैं जो मन को कुछ सुकून देती हैं। हमेशा से किन्नरों को देखकर अपने समाज की ओर से आत्मग्लानि का अनुभव किया है। किन्नर हमारे ही समाज का एक हिस्सा हैं लेकिन हमारा समाज है कि मानने को तैयार नहीं है। समाज उनका शोषण तो कर सकता है लेकिन अपना नहीं सकता। ह्रश्वयार और मान-सम्मान नहीं दे सकता, जिसके लिए किन्नर तरसते हैं। क्या ये किसी मां की संतान नहीं होते। उस मां का क्या हाल होता होगा जिसकी संतान को छीन लिया जाता है। क्यों हमारा समाज इन्हें अलग तरह से रहने को, अलग समाज में जीने को मजबूर करता है। किन्नर हट्टे-कट्टे होते हैं और अक्ल में भी कम नहीं इसलिए कोई भी काम कर सकते हैं। फिर क्यों इन्हें मांगकर पेट भरना पड़ता है।
अपने पारंपरिक धंधे से निकल कर साधारण लोगों से बढ़कर कुछ अलग काम करके जिन किन्नरों ने नाम रोशन किया है, उनमें मानबी बंधोपाध्याय भारत में पश्चिम बंगाल के एक कॉलेज की प्रिंसिपल बनी और जिन्होंने एक अनूठे फैशन शो में स्ट्रीट चाइल्ड को गोद में लेकर रैम्प पर वॉक किया। एक और किन्नर चेन्नई में एक सफल न्यूज एंकर है। देश की पहली ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर पद्मिनी प्रकाश इंडिया की मिस ट्रांसजेंडर भी रह चुकी हैं। पद्मिनी ने क्लासिकल डांसर, टीवी एक्ट्रेस और समाजसेवी की भूमिका में काम करके समाज में एक मिसाल पेश की है।
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में निर्दलीय प्रत्याशी मधु किन्नर कांग्रेस और बीजेपी प्रत्याशी को हराकर मेयर बनी। देश में किसी किन्नर ने पहली बार मेयर का पदभार संभाला है। मधु किन्नर की कामयाबी बड़ी इसलिए है क्योंकि उनकी जीत का अंतर 9 हजार वोटों से अधिक का था। इससे पहले देश में पहली बार वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश ने एक किन्नर शबनम मौसी को सुहागपुर से विधायक चुना गया था। इसी तरह राजधानी की मोनिका दास देश की पहली ट्रांसजेंडर बैंकर हैं। 24 वर्षीय मोनिका सिंडिकेट बैंक में क्लर्क हैं। पिछले साल उन्होंने बैंक ज्वाइन किया और अगले कुछ महीनों में ट्रांसजेंडर होने का कानूनी मान्यता का पत्र बैंक को सौंपा। मोनिका के इस कदम की सराहना करते हुए शाखा प्रबंधक पीकेएस चौधरी ने कहा कि मोनिका बहुत अच्छा काम कर रही हैं।
एक और पढ़ी-लिखी किन्नर अमृता अल्पेश सोनी से मैं पिछले दिनों दिल्ली में मिली। वे उस वक्त अमेरिका में हो रहे स्वास्थ्य सम्मेलन में शिरकत करने जाने वाली थीं। अमरीका के किसी सम्मेलन में शिरकत करने वाली पहली ट्रांसजेंडर हैं अमृता। उन्होंने वहां अपने समुदाय की स्वास्थ्य परेशानियों पर रोशनी डाली। देखने में सौम्य और शालीन अमृता हिंदुस्तान लेटेक्स फैमिली ह्रश्वलानिंग प्रमोशन ट्रस्ट (एचएलएफपीपीटी) से जुड़कर छत्तीसगढ़ में परिवार नियोजन और एड्स जागरूकता के लिए काम करती हैं। अमृता ने अपनी जिंदगी में अनेक उतार चढ़ाव देखे हैं। बचपन से परिवार से दूर होने का दर्द, गरीबी और शोषण की शिकार होने के बावजूद अमृता ने जामिया विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक और सिमबायोसिस पुणे से मार्केटिंग का डिप्लोमा किया। लेकिन अच्छी नौकरी नहीं मिलने पर उन्हें सेक्स वर्कर का काम करना पड़ा।
एचआईवी पॉजिटिव होने की बात पता लगने पर बजाय हार मानने के उन्होंने इसकी जागरूकता के लिए काम शुरू कर दिया। बाद में एचएलएफपीपीटी के प्रोजेक्ट विहान में काम करने का प्रस्ताव मिला और अब वे पिछले दो सालों से एचएलएफपीपीटी के साथ काम कर रही हैं। आपबीती सुनाते हुए आत्मविश्वास के साथ अमृता समाज में अपने साथ दूसरे किन्नरों की भी पहचान बनाने की वकालत करती हैं। किन्नरों को कानूनी अधिकार तो मिल गए हैं लेकिन सामाजिक पहचान का संकट अब भी बरकरार है। आज दरकार है दोहरा रवैया छोड़ किन्नरों को अपने समाज में मिलाने और अपनाने की। उन्हें अपने परिवार का साथ, प्यार, अपनत्व और सम्मान मिलेगा तभी यह समाज खुला और वास्तविक रूप से बड़ी सोच वाला समाज कहलाएगा।
