हिंदू धर्म में कई तरह की परंपराए हैं जिनका पालन किया जाता है। हमें भी अक्सर इन परंपराओं को निभाने की बात कही जाती है, लेकिन जब हम इसके पीछे का कारण मांगते हैं तो हमें कोई जवाब नहीं मिलता है। हालांकि इन पारंपरिक रस्मों के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी छिपे होते हैं जिनको जानना जरुरी है। आपको ऐसे ही कुछ परंपराओं के बारे में हम बताते हैं जिनके वैज्ञानिक आधार भी हैं।
 
हाथ जोड़कर नमस्कार करना
 
युगों से किसी को हाथ जोड़कर नमस्कार करना हमारी परम्परा में शामिल है। हमें जब भी प्रणाम करने को कहा जाता है तो साथ में सिखाया जाता है कि ऐसा करने से हम सामने वाले का आदर कर रहे हैं। हालांकि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। जब हम अपने दोनों हाथों को जोड़ते हैं तो हमारी हथेलियों और उंगलियों के उन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है जिसका सीधा संबंध आंख, नाक, कान और दिल पर पड़ता है। 
 
 
पैरों में बिछिया
 
पैर में बिछिया पहनने को सुहाग की सबसे बड़ी निशानी माना जाता है। इसका वैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल अंगूठे के बगल वाली उंगली की नस महिलाओं के गर्भाशय और दिल से संबंध रखती है और उसे मजबूत बनाती है। चांदी की बिछिया सेहत पर अनुकूल प्रभाव डालती है जो अच्छा होता है।
 
इसलिए लगाते हैं तिलक
 
हमारे यहां पूजा के समय या मेहमान के स्वागत करने पर माथे के बीच तिलक लगाया जाता है। दोनों भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से उस बिंदु पर असर पड़ता है जो हमारे तंत्रिका तंत्र का सबसे खास हिस्सा माना जाता है। तिलक लगाने से उस खास हिस्से पर दबाव पड़ता है जिससे ये सक्रिय हो जाते है और शरीर में नई उर्जा का संचार होता है। साथ ही तिलक लगाने से एकाग्रता बढ़ती है।
 
भोजन के बाद मीठा
 
खाना खाने के बाद मीठा खाना या किसी पूजा विशेष के बाद मीठा खाना भी सिर्फ शुभ नहीं होता बल्कि इसका वैज्ञानिक कारण भी होता है। भारतीय खाने में ज्यादातर मसालेदार खाना खाया जाता है। मसालेदार खाने के तेज को कम करने के लिए पाचन तंत्र का सही रुप से काम करना जरुरी है इसलिए मिठाई खाई जाती है जिससे पाचक रस और अम्ल सक्रिय होते हैं और पाचक क्रिया निंयत्रित होती है।
 
उपवास करना
 
हिंदु धर्म में उपवास करना भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उपवास करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और हम पर अपनी कृपा बनाते हैं, लेकिन इसका वैज्ञानिक महत्व भी होता है। दरअसल, हमें अपने शरीर को चलाने के लिए रोजाना भोजन की जरुरत होती है और पेट को लगातार काम करना पड़ता है। ऐसे में जब हम फलहारी या निर्जला व्रत करते हैं तो शरीर को कुछ पल का आराम मिलता है। साथ ही खतरनाक टॉक्सिन को दूर करने में मदद मिलती है।