कार्तिक पक्ष की चतुर्थी का दिन यानि करवाचौथ का दिन है। इस दिन भारतवर्ष की हिन्दू धर्म की सभी महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं। पति-पत्नी के प्यार को दर्शाता ये दिन उनके रिश्ते को और भी मजबूत कर देता है। दिन-भर से भूखी-प्यासी महिलाएं अपना व्रत चांद निकलने के बाद कथा कहकर खोलती है। यहां हम आपको ऐसी ही कुछ बहु-प्रचलित कथा/कहानियां बताने जा रहें हैं – 

 

करवा चौथ की पहली कथा

 

एक गाँव में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई और बहन में बहुत प्यार था। करवा चौथ के दिन सेठानी ने सातों

बहुओं और बेटी के साथ करवा चौथ का व्रत रखा । सातों भाई हमेशा अपनी बहन के साथ ही भोजन करते थे। उस दिन भी भाईयो ने बहन को खाने के लिए बोला तो बहन बोली मेरा आज करवा चौथ का व्रत है इसीलिए चाँद उगेगा तब ही खाना खाऊँगी।

भाईयों ने सोचा कि बहन भूखी रहेगी इसलिए एक भाई ने दिया लिया और एक भाई चलनी लेकर पहाड़ी पर चढ़ गया। दिया जलाकर चलनी से ढक कर कहा कि बहन चाँद उग गया है अरग देकर खाना खा लो। बहन ने भाभीयों से कहा कि भाभी चाँद देख लो।

भाभी बोली कि बाई जी ये चाँद तो आपके लिए उगा हैं आप ही देख लो हमारा चाँद तो देर रात को उगेगा। बहन भाईयों के साथ खाना खाने बैठ गयी।

भोजन का पहला कौर खाने लगी तो उसमें बाल आ गया , दूसरा कौर खाने लगी तो उसमें कंकर आ गया तीसरा कौर खाने लगी तो ससुराल से बुलावा आ गया कि – बेटा बहुत बीमार है , बहु को जल्दी भेजो। माँ ने बेटी के कपड़े निकालने के लिए तीन बार बक्सा खोला तो तीनो बार ही सफ़ेद कपड़े हाथ में आये। लड़की सफ़ेद कपड़े ही पहन कर ससुराल के लिए रवाना होने लगी। माँ ने सोने का एक सिक्का उसकी साड़ी के पल्लू में बांध दिया और कहा – रास्ते में सबके पैर छूते हुए जाना और जो अमर सुहाग का आशीर्वाद दे उसे यह सिक्का देकर पल्लू में गांठ बांध देना।

रास्ते में बहुत लोगों ने आशीष दिए पर अमर सुहाग का आशीर्वाद किसी ने भी नहीं दिया। ससुराल पहुँचने पर उसने देखा की पलने में जेठ की लड़की झूल रही थी। उसके पैर छूने लगी तो वह बोली –

” सीली हो सपूती हो , सात पूत की माँ हो “

यह आशीष सुनते ही उसने सोने का सिक्का निकालकर उसे दे दिया और पल्ले से गाँठ बांध ली।

घर के अंदर प्रवेश किया तो कमरे में पति को मृत अवस्था में पाया । उसने पति को ले जाने नहीं दिया , वह अपने मृत पति को लेकर रहने लगी और पति की सेवा करती रही। सासु बचा हुआ ठंडा बासी खाना नोकरानी के हाथ यह कह कर भिजवाती कि जा मुर्दा सेवनी को खाना दे आ। कुछ दिन बाद माघ महीने की तिल चौथ आई तो उसने माता से प्रार्थना की और कहा – माता , मुझे मेरी गलती का पश्चाताप है। मुझे माफ़ कर दो। हे चौथ माता ! मेरा सुहाग मुझे लौटा दो। मेरे पति को जीवित कर दो।

माता ने कहा – ये मेरे हाथ में नहीं वैशाखी चौथ माता तुम्हारा सुहाग लौटाएगी। वैशाखी चौथ पर उसने फिर प्रार्थना की तो माँ ने कहा – भादुड़ी

चौथ माता तुम्हारा सुहाग तुम्हे देगी। भादुड़ी चौथ माता से प्रार्थना करने पर उन्होंने कहा – सबसे बड़ी कार्तिक चौथ माता की नाराजगी के कारण तुम्हारे साथ यह हो रहा है। उन्हें प्रसन्न करने पर ही तुम्हे जो चाहिए वह मिलेगा।

कार्तिक महीने में चौथ माता स्वर्ग से उतरी तो गुस्से में उससे कहने लगी –

” भाइयों की बहन करवा ले , दिन में चाँद उगानी करवा ले , व्रत भांडणी करवा ले “

उसने चौथ माता के पैर पकड़ लिए और विलाप करने लगी – हे चौथ माता ! मैं नासमझ थी इसलिए मुझसे भूल हुई। मुझे इतना बड़ा दंड मत दो। आप जग की माता है। सबकी इच्छा पूरी करने वाली है। मेरी बिगड़ी बनाओ माँ , मेरा सुहाग लौटा दो। मेरे पति को जीवित कर दो ।

माता ने खुश होकर उसे अमर सुहाग का आशीर्वाद दे दिया।

उसका पति उठा और बोला मुझे तो बहुत नींद आयी। तब उसने अपने पति को बताया कि वह बारह महीने से उसकी सेवा कर रही थी और चौथ माता ने उसका सुहाग उसे लौटाया है। पति ने कहा -हमें चौथ माता का उद्यापन करना चाहिए। उसने चौथ माता की कहानी सुनी और

उद्यापन कर चूरमा बनाया। दोनों खा पीकर चौपड़ खेलने लगे। नोकरानी खाना लेकर आई तो यह देखकर तुरंत जाकर उसकी सासु को बताया। सासु ने आकर देखा तो बहुत खुश हुई। बहु से पूछा यह सब कैसे हुआ। बहु ने साहू के पैर छुए और बताया की यह चौथ माता का आशीर्वाद है।

सभी लोग चौथ माता की कृपा देखकर बहुत खुश हुए। सभी स्त्रियों ने पति की दीर्घायु के लिए चौथ माता का व्रत करने का निश्चय किया।

प्रार्थना: हे चौथ माता ! जैसा साहूकार की बेटी का सुहाग अमर किया वैसा सभी का करना। कहने सुनने वालों को , हुंकारा भरने वालोँ को सभी को अमर सुहाग देना।

बोलो.. चौथ माता की जय।

 

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  करवा चौथ की दूसरी कथा

एक समय की बात है कि एक गांव में करवा नाम की पतिव्रता स्त्री रहती थी। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए। स्नान करते समय एक मगरमच्छ ने करवा के पति के पांव पकड़ लिए और नदी के अंदर खींचने लगा। प्राण पर आये संकट को देखकर करवा के पति ने करवा को पुकारना शुरू किया।

करवा दौड़कर नदी के तट पर पहुंची जहां मगरमच्छ उसके पति के प्राण लेने पर तुला था। करवा ने झट से एक कच्चे धागे से मगर को बांध दिया व भागकर यमराज के पास पहुंची। यमराज से कहा कि- मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है इसलिए उसे मेरे पति के पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में भेज दो।

यमराज ने कहा कि- मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मगरमच्‍छ की आयु अभी शेष है।

इस पर करवा बोली- अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी।

करवा के ऐसे वचन सुनकर यमराज डर गए और करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया, जिससे करवा के पति को दीर्घायु का आशीर्वाद मिला।

कथा पूरी होने के बाद महिलाएं प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

बोलो.. चौथ माता की जय।

 

करवा चौथ की तीसरी कथा

 

शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी।

उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा कर वीरवती को भोजन करा दिया।

परिणाम यह हुआ कि वीरवती के पति की मृत्यु हो गयी। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुन: जीवित हो गया व उसे लम्‍बी आयु का आशीर्वाद प्राप्‍त हुआ।

प्रार्थना: हे वीरवती माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

बोलो.. चौथ माता की जय।

 

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करवा चौथ की चौथी कथा

 

जब कुरूक्षैत्र का युद्ध हो रहा था तब द्रोपदी ने भगवान कृष्ण को याद कर के प्रार्थना की और कहा-

हे माधव… मेरे पति युद्ध क्षेत्र में है और मुझे उनके प्राणो कि चिंता सता रही है।

तब भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को अपने पति को लम्‍बी आयु प्रदान करने वाले इस करवा चौथ के व्रत को करने के लिए कहा था, जिसे द्रोपदी ने पूर्ण नियम के साथ किया और द्रोपदी के सुहाग अर्जुन युद्ध क्षैत्र से सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए इस करवा का चौथ व्रत करती हैं।

इस व्रत के संदर्भ में भगवान कृष्‍ण ने द्रोपदी को एक कहानी भी सुनाई थी कि-

प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके सात लड़के एवं एक करवा नाम की एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।

भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो।

बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया, इसीलिए यह कष्ट मिला। इसलिए यदि तू वर्ष भर चौथ का व्रत नियमपूर्वक करे, तो तेरा पति फिर से जीवित हो जाएगा।

उसने इंद्राणी के कहे अनुसार पूरे साल भर चौथ माता का व्रत किया और अन्‍त में अगले करवा चौथ पर फिर से सौभाग्यवती हो गई।

प्रार्थना: हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

बोलो.. चौथ माता की जय।

 

 

 

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