chitthi aayi hai author views
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Author Views: मैं ‘चिट्ठी आई है’ स्तंभ के लिए अपने विचार ‘मुस्कान प्रकृति का वरदान’ आपकी सेवा में प्रेषित कर रही हूं। गृहलक्ष्मी का फेस्टिवल स्पेशल वाकई में स्पेशल लगा जो गृहलक्ष्मी की परंपरा हर बार कुछ नया को निभा रहा था। खिचड़ी से लेकर शादी की समस्याओं पर बारीक नजर अच्छी लगी। शादी के पहले फिटनेस, शादी के गहने और फैशन भी मन को अच्छे लगे पर सबसे अच्छी बात लगी परफेक्ट मुस्कान की। बिना मुस्कान के क्या गहने, क्या परिधान सब बेकार है। एक परफेक्ट मुस्कान जहां खूबसूरती को 100 गुना बढ़ा देती है वहीं चेहरे की मायूसी खूबसूरती से लड़ाई करती दिखती है। लहंगों के बारे में जानकारी सटीक लगी। खानपान के विषयों पर तो गृहलक्ष्मी की विशेषज्ञता का सभी भोजन प्रेमी लोहा मानते हैं। बच्चों की परवरिश पर लेख आज की सबसे बड़ी जरूरत को पूरा करता हुआ लगा। सटीक संपादन ने स्थाई स्तंभों को भी मनोहरी बना दिया।
गृहलक्ष्मी की सभी पाठिकाओं को शक्ति पर्व विजयदशमी व प्रकाश पर्व दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं।

  • मनीषा पांडे
    अंबाला (हरियाणा)

यह केवल एक पत्र नहीं, बल्कि उस सोच की झलक है जो हमारे समाज में निरंतर फैल रही है और आने वाले समय को भयावह बना देने वाली प्रतीक बन चुकी है। पति-पत्नी का रिश्ता जन्म-जन्मांतर का माना गया है। यह रिश्ता केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों, संस्कृतियों और परंपराओं का मिलन है।

लेकिन आज न जाने कैसी हवा चल रही है, जिसने इस पवित्र रिश्ते की गरिमा पर ग्रहण लगा दिया है। कहीं पति अपनी जीवनसंगिनी को प्रताड़ित कर उसे मानसिक और शारीरिक यातना देता है, तो
कहीं पत्नी अपने प्रेमी की मदद से पति की हत्या तक करवा डालती है। यह स्थिति न केवल रिश्तों की पवित्रता को कलंकित कर रही है, बल्कि समाज के नैतिक ढांचे को भी कमजोर बना रही है। प्रश्न यह है कि हम कहां जा रहे हैं? क्या रिश्तों की नींव अब विश्वास और त्याग पर नहीं, बल्कि स्वार्थ और वासना पर टिकने लगी है? क्या यह वही समाज है जहां ‘गृहस्थ जीवन’ को चारों आश्रमों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था? आज आवश्यकता है कि हम अपने भीतर झांकें और रिश्तों की गरिमा को फिर से समझें। पति-पत्नी का संबंध यदि आपसी विश्वास, संवाद और सम्मान पर टिकेगा, तभी यह समाज अपनी मूल जड़ों को सहेज पाएगा। पत्रिका का अंदाज है प्यारा, दिल की बातों का जैसे पिटारा। मन की गांठें खोल देती है यह, गृहस्थ जीवन को मिल जाता सहारा।

  • शाहाना परवीन ‘शान’
  • पटियाला, पंजाब
Creative Grehalakshmi
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आपकी जितनी तारीफ करूं कम है, आपके कॉलम्स और ब्लॉग पढ़ने मुझे एक सुखद अहसास देता है। सपनों के आकाश में मैं अक्सर उड़ान भरना चाहती थी, पर मेरे पंख जैसे कहीं थम गए थे। ख्वाहिशें तो बहुत थीं, मगर उन्हें दिशा देने वाला कोई मार्ग नजर नहीं आता था। मेरे जीवन के संघर्षों को आपने जुझारू गृहलक्ष्मी का टाइटल देकर 2023 में एक विशेष पहचान दिलाई, मेरे जैसे सपना
देखने वाले लोगों के सपने साकार करने के लिए एक मंच दिया है आपने। रोज नई कहानियां और कविताएं लिखते-पढ़ते ऐसा लगता है, जैसे मुझे नए गुरु मिल गए हों। हर क्रिएटिव विचार, हर नया कंटेंट मेरे भीतर एक अनोखी हलचल पैदा करता है- मानो मन में सोई हुई नदियां फिर से बहने लगी हों। यहां प्रेरणादाई औरतों के चित्र और उनका संघर्ष मेरे भीतर हिम्मत और ऊर्जा भरते हैं। उनकी कहानियां मुझे यह विश्वास दिलाती हैं कि कठिनाइयां चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हों, हमेशा आगे बढ़ने की राह मिल ही जाती है। मैं सोचती हूं यह कैसा अद्भुत मंच है जो एक
साधारण से इंसान को साधारण नहीं रहने देता।

जहां एक जीरो भी हीरो बन सकता है। गृह लक्ष्मी पत्रिका से मिली औरतों को नई पहचान,सपनों को दी उड़ान, ख्वाहिशों को मिला आसमान। संघर्ष की राहों में जो अक्सर रुक जाती थीं हार उन्हें नायिका, बना दिया दे कर के सम्मान। जुझारू गृहलक्ष्मी सरिता आपने मुझे अपनेपन से स्वीकार किया, मुझे उड़ान दी, पंख दिए और मेरी रचनात्मकता को नया आयाम दिया। इसके लिए मेरा हृदय से आभार।

  • डॉ. सरिता सिंह

सबसे पहले तो आपका धन्यवाद कि आप हम जैसी महिलाओं को अपनी भावनाएं और अनुभव साझा करने का मंच देती हैं। आपकी मैगजीन पढ़ते हुए हमेशा ऐसा लगता है जैसे अपने ही घर की बातें सुन रही हूं। मुझे सबसे अच्छा आपका ‘चिट्ठी आई है’ कॉलम लगता है, क्योंकि इसमें आम पाठकों की आवाज छपती है। यही आपकी सबसे बड़ी खूबी है कि आप हर किसी को जगह देती हैं। मैं चाहती हूं कि गृहलक्ष्मी में महिलाओं के स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता पर और अधिक लेख हों। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें खुद का ध्यान रखने की सबसे ज्यादा जरूरत है। अगर गृहलक्ष्मी इस दिशा में कुछ खास सुझाव और प्रेरणादायक कहानियां प्रकाशित करे तो यह और भी उपयोगी होगा। अंत में बस यही कहना चाहूंगी कि आप इसी तरह हम सबके दिलों में जगह बनाए रखें।

  • कविता श्रॉफ

मनीषा पांडे, अंबाला (हरियाणा)