कहीं हमारी रसोई कैंसर की वजह तो नहीं: Cancer and Kitchen
Cancer and Kitchen

Cancer and Kitchen: आमतौर पर सदियों से घरों में स्टेनलस स्टील पीतल और लोहे के कुकवेयर इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। पीतल के बर्तनों को कलई करवाने और लोहे के बर्तनों को रगड़ कर साफ करने से बचने के लिए दूसरे कुकवेयर का प्रचलन बढ़ा है। इनमें कार्सिनोजेनिक, म्यूटेजन जैसे तत्व कैंसरकारक होते हैं, जो शरीर में पहुंच कर कैंसर सेल्स के रूप में विकसित होते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं। यही कारण है कि एल्युमिनियम नॉन स्टिक जैसे बर्तनों का लंबे समय तक इस्तेमाल करने के बजाय इन्हें 2-3 साल बाद बदल देना बेहतर है। आइए जानते हैं कि उन सभी कारणों के बारे में जिनसे कैंसर होने की संभावना बनी रहती है-

नॉन स्टिक कुकवेयर

कम घी या तेल का इस्तेमाल करके खाना बनाए जाने की विशेषता के चलते फीगर कॉन्शियस लोगों में नॉन स्टिक कुकवेयर का चलन बहुत बढ़ गया है। लेकिन इन पर की जाने वाली पीटीएफई यानी पॉली टेटरा फ्लोरो इथाइली या स्टैफलॉन की कोटिंग सेहत के लिए नुकसानदायक होती है। तेज आंच पर पकाने पर निकलने वाले धुएं में कैडमियम और मरकरी के कण फेफड़ों और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।

एल्युमिनियम बर्तन

टिकाऊ और रख-रखाव में आसान होने के कारण खाना पकाने के लिए कूकर, कढ़ाई जैसे एल्युमिनियम बर्तनों का चलन बढ़ा है। वैज्ञानिक मानते हैं कि एल्युमिनियम के बर्तन प्रोसेस्ड नहीं होते जिसकी वजह से काले पड़ जाते हैं। ये धीमे जहर की तरह काम करते हैं। गर्म होने पर एल्युमिनियम धीरे-धीरे खाने में मिलकर शरीर में जमा होता जाता है और लंबे समय में स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं पैदा करता है।

प्लास्टिक के बर्तन और रैपर

रसोई में स्टोरेज बॉक्स, बोतल, टिफिन, माइक्रोवेव बर्तन, प्लास्टिक रैपर जैसी प्लास्टिक की चीजें इस्तेमाल की जाती हैं। ये बिस्फिनॉल ए (बीपीए) या बिस्फिनॉल एस (बीपीएस), पॉलीविनाइल क्लोराइड जैसे टॉक्सिक मैटेरियल से बनते हैं। खाना पकाने या गर्म खाना डालने पर इनसे मीथेन गैस और करीब 60 केमिकल्स रिलीज होते हैं, जो ओवेरियन, ब्रेस्ट, कोलोन, प्रोस्टेट कैंसर का कारण बनते हैं।

डिस्पोसेबल बर्तन

स्टायरोफोम यानी पॉली स्टायरिंग प्लास्टिक से निर्मित होते हैं। यह एक तरह का सख्त और मजबूत थर्माकोल है। इसे बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली गैस और कार्सोजेनिक केमिकल्स हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं। गर्म खाद्य पदार्थ डालने पर पॉली स्टायरिंग प्लास्टिक घुलने लगता है और केमिकल्स खाद्य पदार्थ में शामिल होकर शरीर में पहुंच जाते हैं। ये केमिकल्स न्यूरोटॉक्सिक भी बन जाता है।

एल्युमिनियम फॉयल या प्लास्टिक रैप

खाना पैक करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला फॉयल या प्लास्टिक रैप भी नुकसानदायक है। डब्ल्यूएचओ के हिसाब से एल्युमिनियम के संपर्क में कोई भी खाना पकाते हैं या पैक करते हैं, तो उसके केमिकल्स खाने में आ जाते हैं। संतुलित आहार भी नुकसान करता है। एल्युमिनियम का ज्यादा इस्तेमाल करने से हमारा शरीर जिंक मिनरल को अवशोषित नहीं कर पाता जो ब्रेन की गतिविधियों और बोन डेंसिटी के लिए जरूरी है।

पाक-कला के विभिन्न तरीके

आजकल खाना पकाने के लिए कई अन्य तरीके अपनाए जाते हैं जैसे- ग्रिल करना, डीप फ्राई करना, भूनना या बार्बेक्यू, माइक्रोवेव में पकाना। ओवरकुक करके बनी चीजें भले ही इनसे खाने का स्वाद बढ़ता है, सेहत के लिए नुकसानदायक होते हैं। ग्रिलिंग और बार्बेक्यू या भूनते वक्त हमारा खाना आग के संपर्क में ज्यादा आता है, जिससे इनमें केमिकल रिएक्शन होता है, जिनसे हैटरोसाइकलिक एमिनो (एचए), एडवांस ग्लाइसेशन एंड-प्रोडक्ट (एजीई), एमीनो एसिड, पॉलिसाइकलिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन जैसे कई नुकसानदायक कंपाउंड निकलते हैं। ये कंपाउंड शरीर में सूजन और मोटापा बढ़ाते हैं, जिससे कैंसर बढ़ता है। स्टीम करके, उबाल कर, मेरिनेड करके आप अपने खाने को स्वादिष्ट बना सकते हैं लेकिन डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के हिसाब से माइक्रोवेव रेडिएशन का उत्सर्जन करता है जिससे ब्रेन कैंसर का खतरा रहता है। तंदूर, अंगीठी या चूल्हे पर बने खाद्य पदार्थ बहुत चाव से खाए जाते हैं लेकिन इनसे निकलने वाले धुएं में कई कार्सोजेनिक केमिकल्स होते हैं। सांस लेने पर धुएं के साथ इन कार्सोजेनिक केमिकल्स को भी इन्हेल करते हैं। आगे चलकर इनमें फेफड़े, इसोफेगस कैंसर की संभावना रहती है।

प्रोसेस्ड मांसाहारी खाद्य पदार्थ

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) के हिसाब से प्रोसेस्ड मांसाहारी पदार्थ भी सेहत के लिए अच्छे नहीं हैं। प्रोटीन और वसा में उच्च स्तर के रेड मीट में मौजूद कार्सोजेनिक केमिकल्स की वजह से यह कैंसरकारक है। नमक और केमिकल लगाकर इन्हें प्रीजर्व किया जाता है। इन प्रोसेस्ड फूड को जब हाई टेम्परेचर पर पकाया जाता है, तब उनमें  मौजूद कंपाउंड कैंसर के रिस्क को बढ़ाते हैं। इनमें मौजूद सोडियम नाइट्रेट और सोडियम नाइट्राइट जैसे प्रीजर्वेटिव आंत कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।

फार्म में विकसित साल्मन मछली

इसमें दूसरी साल्मन मछली की तुलना में विटामिन डी और ओमेगा-3 की कमी होती है। साथ ही इसे कई तरह के पेस्टीसाइड, केमिकल, एंटी बायोटिक्स और कार्सोजेनिक केमिकल्स से भरपूर आहार से विकसित किया जाता है, जिससे उनका मांस कैंसरकारक पॉलीक्लाराइनेटेड बाइफिनाइल्स (पीसीबी), मरकरी और डाइऑक्सिन से भरपूर होता है। ऐसी मछली खाना कैंसर को न्योता देना है।
(डॉ. उमंग मित्तल, चीफ सॢजकल ऑन्कोलोजिस्ट, मेरठ कैंसर अस्पताल से बातचीत पर आधारित)