Bhishma Ashtami 2025
Bhishma Ashtami 2025

Bhishma Ashtami 2025: भीष्म अष्टमी, माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, जो महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह की पुण्यतिथि है। भीष्म पितामह ने अपने पिता की खातिर ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ ली और जीवनभर ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लिया। महाभारत के युद्ध में, उन्होंने कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा और शिखंडी के सामने अपने हथियार डालकर बाणों की शैय्या पर मृत्यु का इंतजार किया। वह 58 दिनों तक जीवित रहे और उत्तरायण में 8वीं तिथि को अपनी आत्मा को शांति दी।

इस वर्ष, भीष्म अष्टमी 5 फरवरी, 2025 को रात 2:30 बजे से शुरू होगी और 6 फरवरी को रात 12:35 बजे तक रहेगी। यह दिन पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके तर्पण के लिए खास होता है।

शुभ मुहूर्त और योग:

सूर्योदय: 7:07 AM

सूर्यास्त: 6:04 PM

ब्रह्म मुहूर्त: 5:22 AM – 6:15 AM

विजय मुहूर्त: 2:25 PM – 3:09 PM

इस दिन शुक्ल और ब्रह्म योग का संयोग बन रहा है, जो तर्पण और श्राद्ध के लिए शुभ है।

भीष्म अष्टमी पर ‘एकोदिष्ट श्राद्ध’ और ‘भीष्म अष्टमी स्नान’ का महत्व है। भक्त इस दिन उपवासी रहते हैं, तर्पण करते हैं और ‘भीष्म अष्टमी मंत्र’ का जाप करते हैं, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

भीष्म, माता गंगा और भारतवर्ष के राजा शांतनु के आठवें पुत्र थे। जन्म के समय उन्हें उनके माता-पिता ने ‘देवव्रत’ नाम दिया था। बड़े होकर और महर्षि परशुराम से शास्त्र विद्या प्राप्त करने के बाद, वह एक अविजेय योद्धा बने। राजा शांतनु ने उन्हें हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया।

इसी बीच, शांतनु ने मछुआरे की कन्या सत्यवती से प्रेम किया और उससे विवाह का प्रस्ताव किया। लेकिन सत्यवती के पिता ने शर्त रखी कि वह तभी विवाह के लिए राजी होंगे, यदि शांतनु यह वचन दें कि सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न होने वाला पुत्र हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनेगा, न कि भीष्म। शांतनु ने यह शर्त स्वीकार नहीं की और दुखी रहने लगे।

भीष्म ने अपने पिता के दुःख का कारण पूछा और जब उन्हें सत्य बात का पता चला, तो उन्होंने गंगा नदी के किनारे अपने जीवन को ब्रह्मचारी बनाए रखने का संकल्प लिया। यह संकल्प ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस बलिदान से प्रसन्न होकर, शांतनु ने भीष्म को यह वरदान दिया कि वह अपने मृत्यु के समय को स्वयं तय कर सकेंगे। महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों की ओर से लड़े। उन्होंने युद्ध में पूरी शक्ति से भाग लिया, लेकिन उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि वह शिखंडी के सामने हथियार नहीं उठाएंगे। जब शिखंडी सामने आए, तो अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर गिरा दिया।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भीष्म पितामह उस दिन नहीं मरे थे। वह बाणों की शैय्या पर 58 दिनों तक पड़े रहे और उत्तरायण के आने का इंतजार किया। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण के समय से पहले कोई भी शुभ कार्य नहीं होता। जब माघ माह की शुक्ल पक्ष की आठवीं तिथि आई, तो पितामह की आत्मा शरीर को छोड़कर स्वर्ग की ओर यात्रा पर चली गई। यही कारण है कि इस दिन को ‘भीष्म अष्टमी’ के रूप में मनाया जाता है।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...