Baisakhi 2023: भारत वभिन्न त्योहारों व परंपराओं वाला देश है। यहां प्रत्येक राज्यों में अलग-अलग त्योहार अपने रंग ढंग से बड़े ही उत्साह व उमंग के साथ मनाने का विधान है। इसी तरह बैसाखी का पर्व भी बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों में बैसाखी का महत्व बताया गया है। पंचांग के अनुसार, हर वर्ष मेष संक्रांति पर बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है। बैसाखी का पर्व विशेषतौर पर किसानों को समर्पित होता है। इसलिए इसका खासा उत्साह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में देखने को मिलता है। बैसाखी का त्योहार खुशहाली व समृद्धि का त्योहार है। इसे विभिन्न राज्यों में अलग अलग नाम से जाना जाता है। तो चलिए जानते हैं इस बार बैसाखी का पर्व कब है और इसका महत्व क्या है।
कब है बैसाखी 2023?
पंचांग के अनुसार, हर साल मेष संक्रांति के दिन बैसाखी का पर्व मनाया जाता है। इस बार मेष संक्रांति 14 अप्रैल 2023 को है। ऐसे में इस बार बैसाखी का पर्व 14 अप्रैल 2023 को मनाया जाएगा। आपको बता दें कि बैसाखी को सिख नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है।
बैसाखी का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सन् 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। जिसका लक्ष्य धर्म व नेकी के आदर्श के लिए तत्पर रहना था। ऐसे में इसका सबसे अधिक उत्साह पंजाब में देखने को मिलता है, जहां सिख समुदाय के लोग बड़े ही हर्ष व उल्लास के साथ बैसाखी का पर्व मनाते हैं। बैसाखी का पर्व किसानों को समर्पित है। बैसाखी अच्छी फसल की पैदावार की खुशी में मनाते हैं। इस दिन लोग अनाज की पूजा करते हैं और नई फसल के आगमन की खुशियां मनाते हैं और भगवान को धन्यवाद अर्पित करते हैं। बैसाखी पर सिख समुदाय के लोग भांगड़ा नृत्य करते हैं।
बैसाखी कैसे मनाते हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बैसाखी पर आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। ऐसे में विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं। बैसाखी पर गंगा स्नान व पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से अश्वेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर गुरूद्वारे जाकर प्रार्थना करते हैं। जहां गुरुग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल व दूध से शुद्ध किया जाता है। इस दिन श्रद्धालुओं के लिए कई प्रकार के अमृत तैयार किए जाते हैं और उनको प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इसके बाद प्रसाद को गुरू को चढ़ाकर अनुयायियों में वितरित की जाती है। विधिवत परंपरा के अनुसार, अनुयायी एक पंक्ति में लगकर अमृत को पांच बार ग्रहण करते हैं। इसके बाद अंत में लंगर चखा जाता है। इस तरह बैसाखी का पर्व मनाया जाता है।
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