गुरु भगवान से मिला सकता है या नहीं यह प्रश्न तो बाद की बात है। प्रश्न तो यह है कि तुम किस भगवान से मिलना चाहते हो? तुम किसे अब तक भगवान समझते आए हो? किसकी प्राप्ति से तुम्हें लगेगा कि हां मैं भगवान से मिल लिया हूं और मेरा किसी को गुरु बनाना सार्थक हुआ? गुरु को इस लालच में गुरु मत बनाओ कि वह तुम्हें भगवान दिखा देगा और यदि बनाओ तो तुमने अपने भीतर भगवान की जो छवि बना रखी है, पहले उसे शुद्ध करो। पूछो, जानो कि भगवान कौन है? यूं ही भगवान के लालच में भटको मत और न ही औरों को भटकाओ।
‘भगवान कौन है?’
जब भी यह प्रश्न उठता है कि ‘भगवान कौन है?’ तभी हमारी आंखों के सामने अपने धर्म से जुड़े भगवान की तस्वीर उभर आती है। फिर वह ईसा हो या नानक। क्योंकि हम हिंदू हैं और हिंदू धर्म को सबसे पुरातन व सनातन कहा गया है इसलिए ब्रह्मा, विष्णु, शिव, कृष्ण, राम, दुर्गा आदि अनेक हाथों वाले, गहनों से लदे, अपने अस्त्रों एवं आसनों के साथ सुसज्जित भगवानों की तस्वीर हमारे जेहन में उभर आती है। एक आदमी के जीवन में भगवान की यही परिभाषा है, यही उसका रूप है। इसलिए जब हम भगवान का जिक्र करते हैं मन-मस्तिष्क स्वत: ही वहां जाकर टिक जाता है, उसके आस-पास से एक इंच भी नहीं खिसकता। सच तो यह है कि युगों से और हमारे बचपन से हमें इसी मान्यता एवं भावना के साथ बड़ा किया जाता है।
कैसे हैं भगवान ?
जब भी हम दुखी होते हैं तो फटाक से मंदिर पहुंच जाते हैं या फिर आकाश की ओर देखकर उससे प्रार्थना करते हैं क्योंकि हम यही जानते हैं कि भगवान मूर्त रूप से मंदिर में रहता है परन्तु वह वस्तुत: आकाश में, बादलों में निवास करता है। भगवान को लेकर हमारी मान्यता या धारणा इतनी गहरी हो चुकी है कि भले ही इसके अलावा हम भगवान को किसी भी रूप में देखें परन्तु जैसे ही हम दुखों व कष्टों से भरते हैं तो सिर्फ उस चार हाथ वाले भगवान को ही याद करते हैं, उसी के मंदिरों एवं तीर्थों की ओर भागते हैं। हम कहते हैं कि उसका कोई आकार नहीं है। वह एक शक्ति है, एक ऊर्जा है। इसलिए कुछ लोग भगवान को भक्ति व कर्मकांड के माध्यम से पाने की कोशिश करते हैं तो कुछ लोग ध्यान, योग एवं साधना के द्वारा उस परम शक्ति की शक्ति को, उसके होने को महसूस करते हैं।

कैसे साधेंगे भगवान से संपर्क ?
कितना ही कहे कि भगवान परम शक्तिशाली है, वह सर्वशक्तिमान है आदि लेकिन वह उसकी शक्ति को कभी महसूस नहीं कर पाएगा। क्योंकि जब तक हम किसी को जानते ही नहीं होंगे तो उससे संपर्क कैसे साधेंगे? और जब किसी से कोई संपर्क या रिश्ता ही नहीं होगा तो उसकी तरफ से हमें कुछ मिलेगा भी क्यों? कोई चीज हमारी उस तक या उसकी हम तक पहुंचेगी ही नहीं। पहुंच ही नहीं सकती। परन्तु आदमी बहुत अजीब है बिना जाने, बिना महसूस किए उसे मानने लग जाता है। सच तो यह है, जो सब में है वही हम में हमारे भीतर है बस उसे ज्ञान की आंख से देखने की जरूरत है।
गुरु ही लगता है भवसागर पार
इस जगत में जो भी दिखता है वह सब कुछ उस भगवान का ही रूप है जो हमें विभिन्न आकारों एवं रूपों में, विभिन्न स्थिति-परिस्थितियों में दिखता है। इसलिए जब तुम ऐसे सवाल पूछते हो कि भगवान बड़ा है या गुरु या क्या गुरु हमको भगवान से मिला सकता है आदि? तो पहले तो यह तय करो कि तुम भगवान किसको कहते हो? तुम गुरु की शरण में जाकर किस भगवान के दर्शन करना चाहते हो? गुरु के माध्यम से तुम किस भगवान को खुश करने के रास्ते पूछते हो आदि? जरा सोचना। क्योंकि गुरु यदि सच्चा है तो वह तुम्हारी न केवल मान्यताओं को खंडित कर देगा बल्कि जिस भगवान की प्राप्ति की आस में तुम उसके पास आए हो वह उसे भी मार देगा। सच तो यह है कि गुरु के मिलने से पहले तुम सिर्फ मानते हो भगवान को कि वो है परन्तु भगवान कौन है, कैसा है, कहां है आदि? यह सब तुम गुरु के माध्यम से ही जान पाते हो।
(साभार-साधना पथ)
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