What Age Kid get Phone: जब बच्चों का स्कूली शैक्षणिक वर्ष (Academic year) शुरू हो जाता है तो ऐसे में मां-बाप के लिए एक बड़ा सवाल यह होता है की बच्चों को क्या एक स्मार्टफोन खरीद कर दे देना चाहिए या नहीं? क्या यह सही समय है? आपके बच्चे के किसी दोस्त के पास अगर फोन है तो इससे आपके बच्चे के मन में भी लालसा पनपने लगती है कि काश उसके पास भी अपना एक फोन होता, लेकिन कैसे जाना जा सकता है कि हमारा बच्चा स्मार्टफोन यूज करने के लिए तैयार है या नहीं? इसके लिए क्या ऑप्शन है और अगर हम अपने बच्चों को फोन भी देते हैं तो उसके लिए उसकी उम्र जरूरी है या समझदारी? इसके लिए बच्चे की मानसिकता, जिम्मेदारी, डिजिटल सेफ्टी और समझ का ज्ञान भी बेहद मायने रखता है, जिसके लिए हर बच्चा तैयार नहीं होता, क्योंकि हर फैमिली की ज़रूरतें एक जैसी नहीं होती। बच्चों के लिए पहला स्मार्टफोन इनबॉक्स किया जाए, इससे पहले उन 5 जरूरी बातों को जान लेना चाहिए।
बच्चों में भावनात्मक परिपक्वता (Emotional maturity in kids)

बच्चों में केवल उनकी उम्र ही तत्परता का निर्धारण नहीं करती बल्कि भावनात्मक परिपक्वता उससे भी ज्यादा बड़ा रोल अदा करती है। मोबाइल केवल एक गैजेट नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया से जोड़ने का एक बेहतरीन माध्यम है। एक बच्चा जो निराश हो जाता है या जिसे सोशल मीडिया ग्रुप चैट या ऑनलाइन गेम को संभालना मुश्किल हो सकता है। इसलिए यह देखना जरूरी है कि आपका बच्चा क्या वास्तविक जीवन में अपनी जिम्मेदारियां को अच्छी तरह संभाल पाता है। जैसे- घर के काम, होमवर्क इत्यादि शामिल होते हैं। स्मार्टफोन जिम्मेदारी की एक और लेयर को ऐड करता है, लेकिन इस बात को समझने के लिए हर यंग माइंड इसके लिए तैयार नहीं है।
ऑनलाइन सेफ्टी की समझ (Online safety for kids)
इंटरनेट और सोशल मीडिया का वर्ल्ड जितना ज्यादा फायदेमंद है। उतना ही अधिक कई खतरों से भरा हुआ भी है। ऐसे में कई बार बच्चे फ्रॉड, गलत कंटेंट और साइबर बुलिंग या कुछ फसाने या स्ट्रेंज लोगों से चैटिंग करने जैसे जोखिमों का शिकार भी बन जाते हैं। इसलिए अपने बच्चों को मोबाइल देने से पहले इस बात को समझें कि क्या आपका लाडला यह जानता है कि उसकी अपनी पर्सनल डिटेल्स किसी के साथ शेयर नहीं करनी चाहिए और किस तरह के कंटेंट से दूर रहने में ही भलाई है। साथ ही क्या वह अनजान लिंक या नंबर पर क्लिक करने से पहले सोचता है या नहीं और अगर आपके बच्चे को इन चीजों के बारे में जानकारी नहीं है तो उसे फोन देने से पहले डिजिटल सेफ्टी ट्रेनिंग जरूर दें।
स्क्रीन टाइम और मेंटल हेल्थ की भूमिका

बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम से बच्चों का ध्यान, नींद और इमोशनल हेल्थ पर भी प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि एक स्मार्टफोन अनलिमिटेड लिंक के दरवाजे खोलता है। गेमिंग ऐप, मैसेजिंग प्लेटफार्म और युट्यूब की वजह से स्क्रीन का समय तेजी से बढ़ सकता है। इसलिए फैमिली को स्क्रीन टाइम लिमिट समझाने से पहले खुद समझना भी चाहिए। इसके साथ ही खाते, समय परिवार के साथ समय बिताते हुए और सोते समय मोबाइल से दूर रहने की कोशिश करें, क्योंकि जैसा आप करेंगे आपका बच्चा भी उन्हीं चीजों को फॉलो करेगा। इसलिए जिम्मेदारी देने से पहले जिम्मेदारी को निभाना आपको भी सीखना पड़ेगा।
नियम तोड़ने पर अनुशासन तय है या नहीं?
अगर आपका बच्चा पहले से ही टीवी या गेम्स में अपना ज्यादा समय बर्बाद करता है, तो मोबाइल मिल जाने के बाद हालात और बिगड़ सकते हैं। तो पहले ही इस बात का पता लगाएं कि क्या आपका बच्चा पढ़ाई और मोबाइल के बीच बैलेंस बनाए रखने की आदत सीख चुका है। वहीं उसको इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि स्मार्टफोन यूज़ के रूल्स अगर तोड़े जाएं, तो उसका रिजल्ट क्या होगा। इसलिए यह सब पहले से तय होना चाहिए। इससे आपका बच्चा जान पाएगा कि डिजिटल आजादी के साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है।
स्मार्टफोन की असली जरूरत
आपको यह भी जान लेना चाहिेए कि क्या आपके बच्चे को सच में मोबाइल की आवश्यकता है। जैसे, स्कूल अकेले जाना, ऑनलाइन क्लासेज और ट्यूशन जाना। अगर आपके बच्चे को मोबाइल केवल गेम्स या दोस्तों के साथ चैटिंग के लिए चाहिए, तो स्मार्टफोन देने के लिए अभी थोड़ा रूकें।
