एक मां, कामकाजी महिला, लेखिका, सामाजिक कार्यकता और एक शिक्षाविद के तौर पर अनीता भारती सिंह इस सबके साथ-साथ कई सामाजिक और साहित्यिक मंचों से जुड़ी हैं। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया है।
संघर्षों से हारी नहीं, लड़ती रही
अनीता का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ। सात भाई-बहनों में वो पांचवीं हैं। वो कहती हैं, हम भाई-बहनों को हमारे माता-पिता ने बड़े कष्ट सहकर पढ़ाया लिखाया। पिता टेलर थे और मां घर में लिफाफे बनाती थी। एम.ए. दाखिले के समय भी फीस न होने के कारण पढ़ाई छूटते-छूटते बची। इन हालात में भी आत्मविश्वास में कमी नहीं आई, और यही सोचा कि जिंदगी में कुछ करना है।
चुनौतियों से जीता सफर
अनीता कहती हैं, हाशिये के समाज की महिला होने के नाते पहली चुनौती तो यही है कि हमेशा हर दिन अपनी योग्यता प्रमाणित करनी होती है। एक सामान्य वर्ग की महिला को जो इज्जत खुद मिल जाती है वह हमें कमानी पड़ती है। हाशिये की औरतों के लिए पूर्वाग्रह ज्यादा है। आप जो काम अपने बलबूते और आत्मविश्वास से बिना किसी सहारा, चापलूसी किए करते हैं, तब आपके सामने बाधाएं खड़ी की जाती हैं ताकि आप टूटकर अपना वजूद खो दें और खुद पर भरोसा करना छोड़ दें।
सफलता का मंत्र
- प्रतिबद्धता, ईमानदारी, सच्चाई, लगन और मेहनत पर बल देती हूं।
- एक बार काम हाथ में लेने के बाद मेहनत और ऊर्जा खर्च करने से न डरें।
- काम में डूबकर उसे पूरी ईमानदारी और शिद्धत से पूरा करती हूं।
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