हंसना मानव की स्वाभाविक क्रिया है, सृष्टि का कोई दूसरा प्राणी हंसता नहीं है, इसलिए विचारक मानव को हंसने वाला प्राणी भी कहते हैं, परंतु आज भागमभाग वाली जिंदगी ने इंसान को हंसना, गुनगुनाना भुला दिया है, इससे उसका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है इंसान मुसीबतों में जकड़ गया है, आज प्राय: हर चेहरे पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट दिखाई देती हैं, भौतिकता पाने के लालच में इंसान प्रसन्नता का सुख भूल गया है। पिछले दस वर्षों से अमेरिका के कॉरपोरेशन एवम् अस्पतालों में लोगों को हंसने का महत्त्व बताने वाले मनोचिकित्सा विज्ञानी जोयल गुडमैन का कहना है कि ‘जीवन में चाहे कितना ही संघर्ष क्यों ना आए पर इंसान को हंसना कभी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि हंसी का फव्वारा ही वह स्त्रोत है जो शरीर में रोगमुक्त करने वाली जीवन शक्ति को बढ़ाता है।’
भारत प्राचीन काल से इस रहस्य को जानता था इसलिए पुराने जमाने में राजा के तनाव को दूर करने लिए विदूषक हल्के-फुल्के हास्य प्रसंग राजा को सुनाता था। प्रत्येक इंसान को अपना कार्य भार विनोदपूर्ण व हल्के रूप में ही करना चाहिए इससे कार्यक्षमता बढ़ती है व कार्य जल्दी पूरा होता है। हंसना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा टॉनिक है शरीर में पेट व छाती के बीच एक ‘डायफ्राम’ होता है जो हंसते समय कम्पित होता है जिससे सारे आंतरिक अवयवों में गतिशीलता आती है इससे सारे अवयव मजबूत होते हैं खुलकर हंसने से रक्त संचार की गति बढ़ती है पाचन तंत्र अधिक सक्रियता से कार्य करता है इससे श्वसन क्रिया तेज होती है व फेफड़ों से दूषित वायु बाहर निकलती है।
आज लोग अपनी गंभीरता तथा उदासी का कारण उत्तरदायित्व एवम् चिंता बताते हैं आज हर एक के मुंह पर एक ही वाक्य होता है क्या करें जिम्मेदारियां पीसे जा रही हैं। चिंता ही चिंता बोझ है हमारे सर पर, ऐसे में कैसे हंसे? किंतु वे यह नहीं सोचते कि उदास रहने से चिंताएं और भी प्रबल हो जाती हैं जीवन कठिन व नीरस। जबकि हंसने व प्रबल रहने से उनका बोझ हल्का मालूम होता है व शारीरिक तथा मानसिक शक्ति बढ़ती है।
मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से ये भी सिद्ध हो चुका है कि अधिक हंसने वाले बच्चे अधिक कुशाग्र बुद्धि के होते हैं हंसना उनके शारीरिक व मानसिक विकास के लिए अधिक लाभकारी होता है। कभी-कभी माता-पिता बच्चों को हंसने पर टोकते हैं जो कि गलत है ये स्थिति बच्चों की विकास की क्रिया को रोकती है, इस स्थिति से बचने के लिए जापान में लोग अपने बच्चों को प्रारंभ से ही हंसते रहने का शिक्षण देते हैं । वे इस बात को मानते हैं कि सफलता और असफलता दोनों जीवन में धूप-छांव की तरह आती हैं, यदि दोनों परिस्थितियों में इंसान प्रसन्न रहे तो खुशी ही खुशी होगी जीवन में चारों और वैज्ञानिकों ने शोध करके बताया है कि अगर रोगी व्यक्ति हंसता ना हो तो उसके ठीक होने की संभावना काफी कम रहती है क्योंकि हास्य शरीर को झकझोर कर रख देता है जिससे शरीर में अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली अत:स्त्रावी प्रणाली सुचारू रूप से कार्य करने लगती है । अत: दिन में एक बार खुलकर हंसना जरूरी होता है ।
जब ठहाका लगाया जाता है तब उदर, फेफड़े, यकृत सभी का मसाज होता है हंसमुख व्यक्ति को सब पसंद करते हैं जबकि रोनी सूरत वाले की सभी निंदा करते हैं व उससे बचने के प्रयास करते है हंसता मुस्कुराता चेहरा व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है उदासी को जीवन से हटाने का प्रमुख उपाय है कि जीवन को खेल की तरह जिया जाएं पर हंसने में भौड़ापन ना लाएं क्योंकि सहज, सरल, निश्चल हंसी व्यक्तित्व में विकास लाती है उसे सुंदरता प्रदान करती है ।
तो आइए खुशियां बांटे अपनी हंसी से चारों ओर पराओं को भी अपना बनाएं और सबको ये मूलमंत्र दें कि खुलकर हंसिए और तनाव से बचिए।
